पहाड़ के खाने में शरीर की जरूरत के लिए पर्याप्त ऊर्जा और पोषण के साथ-साथ मौसम का भी विशेष ध्यान रखा गया है. अपने अनुभव से हमारे पूर्वजों द्वारा गर्मियों के लिए तय किया गया भोजन ठंडी तासीर वाला है, जो पौष्टिक होने के साथ सुपाच्य भी होता है और मन को शीतलता पहुंचाने वाला तो है ही. ठण्ड के मौसम के लिए जिस किस्म के भोजन को विकसित किया गया है वह पर्याप्त कैलोरी और पौष्टिकता देने के अलावा गर्म तासीर वाला भी है.
जाड़े के मौसम में पहाड़ में खाई जाने वाली दालों में से एक है गहत या गौथ. गहत की दाल का वानस्पतिक नाम है मैक्रोटाइलोमा यूनीफ्लोरम (Macrotyloma uniflorum.) खरीफ की फसल में पैदा होने वाली गहत काले व भूरे रंग की होती है. गहत की दाल उत्तर भारत के उत्तराखण्ड, हिमाचल के अलावा उत्तरपूर्व और दक्षिण भारत में भी खूब खाई जाती है. नेपाल, बर्मा, भूटान, श्रीलंका, मलेशिया और वेस्टइंडीज में भी चिकित्सकीय गुणों वाली गहत भोजन का अभिन्न अंग है. विभिन्न प्रदेशों, देशों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है और इससे तैयार होने वाले व्यंजन भी भिन्न हुआ करते हैं. भारत में इसके बहुप्रचलित नाम हैं –गहत, गौथ, कुलथी, हुराली और मद्रास ग्राम. भारत के इन राज्यों में इस अनाज से दाल, डुबके/फाणू, रस, खिचड़ी, चटनी, रसम, सांभर, सूप और भरवां परांठे आदि बनाये जाते हैं. आयुर्वेद में गहत को चिकित्सकीय गुणों वाले भोजन का दर्जा दिया गया है.
आयुर्वेद के अनुसार चिकित्सकीय गुणों से भरपूर गहत में पौष्टिक तत्त्वों की भरमार है. गहत में उच्च गुणवत्ता के पौष्टिक तत्व जैसे कि प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और कई तरह के विटामिन पाए जाते हैं.
गहत की दाल में दवाओं के भी कई गुण पाए जाते है जिस वजह से यह कई बीमारियों के इलाज में भी कारगर मानी जाती है. यह इन्सुलिन के रेजिस्टेंस को कम करती है. वजन को नियंत्रित करने के साथ ही यह लिवर के लिए भी फायदेमंद है. यह दाल एंटी हायपर ग्लायसेमिक गुणों से भरपूर है. इस दाल के बारे में एक तथ्य, जिसे हम सब हमेशा से जानते हैं, यह कि इसमें गुर्दे की पथरी को गलाने की अद्भुत क्षमता है. गहत की दाल को रात भर भिगोकर सुबह इसका पानी पी लिया जाए, फिर इसी दाल में दोबारा पानी मिलाकर दिन में और ऐसे ही रात को भी पीने के बाद बची हुई दाल को फेंक दिया जाय, तो ऐसा करने से गुर्दे की पथरी के कमजोर होकर बाहर निकलने की संभावना काफी बढ़ जाती है. किवदंती है कि गहत की दाल को एक जमाने में भारी पत्थरों को गलाकर चटखाने के लिए भी उपयोग में लाया जाता था. कहा जाता है कि औजारों से न टूटने वाले बड़े पत्थरों में छैनी-हथौड़ी से छेद कर उसमें गहत की दाल को उबालकर प्राप्त गर्म पानी उड़ेल दिया जाता था. ऐसा करने से उस पत्थर में दरार आ जाया करती थी और इस तरह उसे आसानी से तोड़ लिया जाता था.
आज हम गहत की दाल के बारे में इतनी बात इसलिए कर पा रहे हैं कि विभिन्न वानस्पतिक और चिकित्सकीय अनुसंधानों ने इसके इन औषधीय गुणों को पुष्ट कर दिया है. जानकारी के अभाव में हमारे पूर्वजों द्वारा भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाये गए इस व्यंजन को गरीबों का भोजन मानकर तिरस्कृत कर दिया गया था. खान-पान की प्रचलित शैली की वजह से बढ़ती बीमारियों ने हमें हमारी परंपरागत भोजन शैली के बारे में सोचने को मजबूर किया. तब यह तथ्य सामने आया कि हमारे बुजुर्गों ने प्रकृति से एकाकार होने के कारण अपने अनुभव से जो भोजन शैली विकसित की वह बहुत सामान्य सी दिखाई देने के बावजूद हमारे स्वस्थ जीवन के लिए बेहद कारगर है. इसी वजह से आज हम अपने परंपरागत भोजन की तरफ लौटते दिखाई पड़ रहे हैं.
ठण्ड चाहे पिछले कई सालों के रिकार्ड ध्वस्त कर रही हो गर्म तासीर वाली गहत की दाल से बने व्यंजन इससे लड़ने में हमारी मदद करेंगे. तो देर किस बात की गहत की दाल रात भर भिगोने की बाद सुबह किसी अभी अन्य दाल की तरह लहसुन, प्याज का तड़का मारने के बाद हल्दी, नमक, मिर्च, धनिया और गरम मसाला डालकर गहत को उसमें उबाल लें. ठीक से गल जाने के बाद घी के साथ जम्बू का छौंका लगा लें. जम्बू के सुलभ न होने की स्थिति में हींग का कामचलाऊ तड़का भी लगाया जा सकता है. मसाले सिलबट्टे में पिसे हों तो स्वाद और लाजवाब होगा. हरे धनिये से सजाकर गर्मागरम भात के साथ खाने का लुत्फ़ लें. हरा धानिया, हरी मिर्च, टमाटर और लहसुन की चटनी स्वाद को दिव्य बना देगी. थोड़ा फुर्सत हो तो डुबके/फाणू या फिर गहत के भरवां परांठे भी बनाये जा सकते हैं.
-सुधीर कुमार
सभी फोटो, साभार: यू ट्यूब
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
1 Comments
Anonymous
nice article! very informative.