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2 Comments

  1. गोविन्द गोपाल

    सम्पादक जी, लेख बहुत सटीक लगा . जनताको इसकी आवश्यकता थी . उत्तराखंड विषयों पर उभरती व व्यापक लोकप्रियता को प्राप्त करने वाले इस समाचार, संस्कृति , इतिहास व सामयिकी पर लेख प्रस्तुत करने के इतर टुच्ची आर्थिक नीति को लेकर उत्तराखंड में पैठ बनाने की कोशिश करने वालों को ये लेख छापकर आपने आइना दिखाया है उन लोगों को जो पढ़े-लिखे का ढोंग कर सस्ती लोकप्रियता प्राप्त कर राज्य में पुनः दिल्ली से चलने वाली सरकार स्थापित करना चाहते हैं. ये दो रुपैया का चावल और धोती बाँट कर सता हथियाने का ज्ञान कब का निचले दर्जे का मान लिया गया है. न तो ये सरकारों के पक्ष में साबित हुआ न ये उस प्रदेश की आर्थिकी के लिए अच्छा साबित हुआ . आर्थिक विषयों पर बौधिक खोखला पन लेकर आप ये कहाँ आ गए ?? हमें ये नहीं चाहिए . हमें चाहिए था पलायनं रोकने का चिंतन ? क्या आपने एक राजनैतिक विकल्प देने के लिए पलायन पर कोई अध्ययन की टीम बनायी ? क्या ऐसे किसी अध्यौं पर ध्यान दिया ? यदि दिया तो उसका समाधान एक बहुत बड़ी गिफ्ट हो सकती है . और यदि इस और ध्यान ही नहीं दिया तो फिर आप यहाँ आ ही क्यों रहे हैं? कोई भी यहाँ की पलायन की समस्या का अध्ययन करेगा तो उसे जो कारण मिलेंगे उनका ही समाधान करने का मन यहाँ शासन करने के लिए चाहिए . हम उत्तराखंड में राजनैतिक उठापटक का नाटक नहीं देखना चाहते . यहाँ मतदाता देश के अन्य क्षेत्रों से कही अधिक विवेकशील साबित हुआ . इन मतदाताओं ने उठापटक के चलते यहाँ के क्षेत्रीय दलों को मुख्य राजनीति से सदैव के लिए विदा कर दिया . और ऐसा देश के अन्य राज्यों में ना हुआ ना होगा . जिस प्रदेश के मतदाता स्थायित्वा ना मिलने से, क्षेत्रीय संकुचन की भावना को हटा सकते हैं वे आर्थिक नौटंकी का झुनझुना देकर सत्ता चाहने वालों को भी कुछ नया और मौलिक सोचने को मजबूर कर सकते हैं .

  2. Kamal lakhera

    लेखक ने उचित बात उठाई है । केवल फ़्री बांटने की राजनीति से किसी राज्य या देश का भला नहीं होने वाला है। हालांकि कांग्रेस और भाजपा ने हमेशा उत्तराखंड की अनदेखी की है जिसका परिणाम पलायन के रूप में दिखाई देता है । अतः परिवर्तन समय की मांग है । रही बात दिल्ली मॉडल की, तो बिजली पानी में सुधार के साथ ही शिक्षा वी स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी पहले की अपेक्षा आप सरकार ने अच्छा काम किया है ।

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