समाज

1888 में अंग्रेजी मिडिल स्कूल की तरह शुरू हुआ था हल्द्वानी का एम. बी. कॉलेज

[पिछली क़िस्त: 1901 में बाबू रामप्रसाद मुख्तार ने बनवाया था हल्द्वानी का आर्य समाज भवन]

आज जिस एम. बी. राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में 10 हजार से अधिक विद्यार्थी अध्ययन करते हैं, लाला बाबू लाल जी के सहयोग से सन 1888 में एक अंग्रेजी मिडिल स्कूल के रूप में स्थापित हुआ था. 1961 में यहां बी.ए. तक की प्रातःकालीन कक्षाएं प्रारंभ की गईं. उस समय यह आगरा विश्विद्यालय से सम्बद्ध था. फिलहाल यह एक स्नातकोत्तर महाविद्यालय है और कुमाऊँ विश्वविद्यालय से जुड़ा है. उन समय नौकरीपेशा लोग भी प्रातःकालीन कक्षाओं में अध्ययन कर सकते थे. तब अध्यापक रविवार अथवा छुट्टी के दिन भी अपना समय देकर कक्षाएं पढ़ाने आ जाया करते थे. बाबूलाल गोयल इस महाविद्यालय के प्रिंसिपल थे. प्राध्यापकों को उस जमाने में तीन-चार सौ रुपये वेतन मिलता था. छात्र मन लगाकर पढ़ते थे और शिक्षक मन लगाकर पढ़ाते थे.
सन 1980-81 में कॉलेज का प्रान्तीयकरण हो गया. शिक्षकों की तनख्वाहों में कई गुना बढ़ोत्तरी हो चुकी है लेकिन अब न छात्र पढ़ना चाहते हैं न शिक्षक पढ़ाना. अब नवाबी रोड में एक राजकीय कन्या महाविद्यालय भी स्थापित हो गया है लेकिन अधिकांश लड़कियां एम. बी. महाविद्यालय में प्रवेश लेने को ही तरजीह देती हैं.

प्रसंगवश एम. बी. कॉलेज के एक अध्यापक एम. सी. त्रिवेदी का ज़िक्र करना अनुचित नहीं होगा. उन्हें लोग ‘बॉक्सर’ के नाम से जानते थे. वे बड़े शांत स्वाभाव के धीर-गम्भीर व्यक्ति थे. खाली समय में स्टाफ रूम में न बैठकर वे विद्यालय के बाहर पेड़ की छाया में कुर्सी लगाकर पुस्तक पढ़ते रहते थे. उनका नाम सुनते ही इस विद्यलाय के ही नहीं अन्य विद्यालयों के बच्चे भी शरारत करना छोड़ देते थे. यद्यपि उन्होंने कभी किसी को पीटा नहीं लेकिन उनका रौबीला व्यक्तित्व मानसिक रूप से सब पर हावी था. कहा जाता है कि एक बार किसी दूसरे शहर से आया कोई बॉक्सर मुकाबले के लिए शहर भर में चुनौती देता घूम रहा था. उसकी चुनौती को किसी ने भी स्वीकार नहीं किया लेकिन शांत स्वाभाव के त्रिवेदी जी से यह बर्दाश्त न हुआ और उन्होंने चुनौती स्वीकार कर उसे हरा दिया. तब से उन्हें बॉक्सर नाम से पुकारा जाने लगा.

1968 से पहले हल्द्वानी में पब्लिक स्कूलों का बोलबाला नहीं था. जेल रोड, राजपुरा, बद्रीपुरा, सदर बाजार और रामपुर रोड में नगरपालिका के प्राइमरी स्कूल थे जबकि काठगोदाम में एक इंटर कॉलेज था. इन विद्यालयों में शिक्षस पाये लोग बड़े-बड़े पदों पर आसीन रहे किन्तु आज इन की दशा बहुत शोचनीय है. इनके अलावा सरस्वती शिशु मंदिर, लक्ष्मी शिशु मंदिर, मिशन स्कूल, टिक्कू मॉडर्न स्कूल तथा भारतीय बाल विद्या मंदिर के अलावा कुछ एनी छोटे-छोटे व्यक्तिगत स्कूल भी थे.

लक्ष्मी शिशु मंदिर एम. बी. कॉलेज के प्रबंधन का ही एक हिस्सा था. बाबूलाल जी की पुत्री और जगमोहन गर्ग की पत्नी लक्ष्मी के नाम से यह विद्यालय बरेली रोडमें खोला गया था. एम. बी. इंटर कॉलेज के मैनेजर रहे एडवोकेट हरप्रसाद गर्ग ने लेखक को बताया था कि उनके पिता शंकर लाल व माता सरमाती अंगन देवी बुलंदशहर जिले के हातमाबाद गाँव के रहनेवाले थे. पिता की मृत्यु के बाद हरप्रसाद जी अपनी माता के साथ अपने निहाल हल्द्वानी आ गये. उनके नाना गणेशीलाल और उनके भाई प्रेमराज की मशहूर फार्म उन दिनों भी थी.

अपने नानाजी के संरक्षण में 14 वर्षीय हरप्रसाद गर्ग ने पठन-पाठन के साथ साथ व्यवसाय में हाथ बंटाना भी शुरू किया. प्रारम्भिक पढ़ाई के बाद उन्होंने बरेली और इलाहाबाद से उच्चशिक्षा ग्रहण की. एलएलबी करने के बाद वे हल्द्वानी की सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हो गए. नगरपालिका के चेयरमैन डी. के. पाण्डे के ज़माने में श्री गर्ग पालिका के सदस्य और एजूकेशन कमेटी के अध्यक्ष थे. वकालत के पेशे में वे घनानंद पाण्डे को अपना गुरु मानते थे. एडवोकेट घनानंद पाण्डे और एडवोकेट नंदकिशोर खंडेलवाल दोनों ही हल्द्वानी नगरपालिका के चेयरमैन रहे. आई. एन. टंडन भी पुराने वकीलों में रहे हैं. शहर की तमाम संस्थाओं में सदस्य के रूप में योगदान देने वाले गर्ग जी एम. बी. एजूकेशन ट्रस्ट के सचिव भी रहे. इनके नाना गणेशीलाल भी ट्रस्ट के सदस्य थे. मोतीराम बाबूराम ट्रस्ट की तीन विद्यालय शाखाएं बनीं – लक्ष्मी शिशु मंदिर, एम. बी. मिडिल और एम. बी. डिग्री कॉलेज. बरेली रोड से विद्यालय की शुरुआत हुई. ट्रस्ट के पास आज भी काफी संपत्ति है. एक छोटे से स्कूल को आगे बढाने में हेडमास्टर बाबूलाल गोयल का मह्त्वपूर्ण हाथ है. गोयल जी ने ही एम. बी. कॉलेज को सफलता की सीढ़ी पर चढ़ाया.

महात्मा गांधी इंटर कॉलेज, एच. एन. विद्यालय, राजकीय कन्या विद्यालय, ललित महिला विद्यालय, खालसा स्कूल, गुरु तेगबहादुर विद्यालय के अलावा बाद में सेंत पॉल, निर्मला कॉन्वेंट और बीयरशीबा आदि स्कूल खुले किन्तु बढ़ती छात्र संख्या तथा पब्लिक स्कूलों में बच्चों को भेजने का क्रेज बढ़ जाने से सरकारी स्कूलों में पठन-पाठन मजाक बन कर रह गया. अब तो हल्द्वानी की गली-गली में पब्लिक स्कूल खुल गए हैं.

(जारी है)

स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी-स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर

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यह भी देखें : हल्द्वानी का प्राचीन मंदिर जिसकी संपत्ति का विवाद सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा गया

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