आज का नैनीताल डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड जिस शान से खड़ा है और अपने कारोबार के डंक के बजा रहा है उसकी शुरुआत हीरा बल्लभ पांडे जी द्वारा की गई थी. स्वर्गीय हीरा बल्लभ पांडे भाबर क्षेत्र में सहकारिता के जनक के रूप में जाने जाते हैं. सहकारिता का सूत्र पात 1904 में थारू जनजाति के कुछ लोगों के प्रयास से 2 ग्राम स्तरीय प्रारंभिक समितियों तथा एक खटीमा ग्राम बैंक की स्थापना के साथ शुरू हुआ. भारतवर्ष के द्वितीय सहकारी अधिनियम 1912 के लागू होते ही, 1913 तक जब विश्व प्रथम विश्व युद्ध से जूझ रहा था वस्तुओं की कालाबाजारी भी जोर पकड़ चुकी थी, ऐसी स्थिति में तराई भाबर में सहकारिता आंदोलन ने जोर पकड़ा और 1920 में खटीमा ग्राम बैंक को हल्द्वानी में स्थानांतरित कर दिया गया. पीरू पधान एवं मिढई पधान द्वारा तराई भाबर सेंट्रल को ऑपरेटिव बैंक हल्द्वानी के नाम से रजिस्टर्ड कराया गया. इस बैंक का संचालन जिला मजिस्ट्रेट की ओर से खाम सुपरिटेंडेंट की देखरेख में किया जाता था. इनकी सहायता के लिए लिपिकीय एवं रोकड़ीय कार्य हल्द्वानी तहसील स्तर पर नियुक्त नाजीरों तथा अकाउंटेंट व शाखा प्रभारी कार्य क्रमशः नायब एवं पेशकार द्वारा सन 1957 तक संपन्न किया जाता रहा, जिन्हें इस कार्य के लिए अतिरिक्त भत्ता मिलता था.
खटीमा से हल्द्वानी तक बैंक आने की कहानी लंबी है लेकिन यह सबसे बड़ा सच है कि कुमाऊं में सहकारिता के बीच में पिता में हीरा बल्लभ पांडे की धाक सहकारिता के आंदोलन को हरा-भरा कर गई. हीरा बल्लभ जी के पिता बेनी राम पांडे हल्द्वानी टाउन एरिया कमेटी के चेयरमैन और बड़े विचारवान लोगों में रहे हैं.
1947 में भारत स्वतंत्र हुआ और सहकारिता के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र भी शामिल कर लिया गया रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की सरल क्रेडिट सर्वे रिपोर्ट को अपनाए जाने पर तथा बैंक के निक्षेपों एवं अल्पकालीन फसली, ऋण मध्यकालीन ऋण वितरण में प्रगति आने लगी. बैंक का कार्यक्षेत्र बढ़ जाने पर सरकार द्वारा सहकारिता विभाग के अंतर्गत इसका पंजीयन किया गया तथा नैनीताल डिस्ट्रिक्ट को ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड हल्द्वानी का प्रधान कार्यालय हल्द्वानी में स्थापित किया गया बैंक की प्रथम शाखा खटीमा में 1962 में तथा दूसरी शाखा रामनगर में 1964 में खुली. वर्ष 70-71 तक उक्त के अतिरिक्त रुद्रपुर काशीपुर भवाली तथा बाजपुर में शाखाएं खुल चुकी थी. जिनकी वर्ष संख्या 2003 तक 46 हो गई सन 57-58 तक बैंक के कुल कर्मचारियों की संख्या मात्र 9 थी जो वर्ष 2004 तक 263 हो गई. जनवरी 2005 को बैंक का विभाजन होकर उधम सिंह नगर जिला सहकारी बैंक का गठन हुआ.
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स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर
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