[पिछ्ला भाग: हल्द्वानी का प्राचीन मंदिर जिसकी संपत्ति का विवाद सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा गया]
सन 1901 में बाबू रामप्रसाद मुख्तार ने आर्य समाज भवन बनवाया तथा संवत 1985 में श्रीमती त्रिवेणी देवी ने आर्य अनाथालय बनवाया. सन 1924 में चौधरी कुंदन लाल वर्मा ने सेवा समिति का भवन बनवाया. सन 1902 में पं. छेदालाल पुजारी तथा पं. रामदत्त ज्योतिर्विद के प्रयासों से सनातन धर्म सभा की स्थापना हुई. 1938 में यहाँ सनातन धर्म समाज नाम की संस्था बनाई गयी जिसके अध्यक्ष पं. रामदत्त जोशी ज्योतिर्विद और मंत्री देवीदत्त बेलवाल थे. (Haldwani History)
तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. गोविन्द बल्लभ पन्त, नन्दकिशोर खंडेलवाल एडवोकेट और पं. घनानंद पाण्डे भी इस संस्था में रहे. इस संस्था का उद्देश्य संस्कृत विद्यालय चलाना भी था. फिर उत्तर मध्यमा तक संस्कृत विद्यालय शुरू कर दिया गया. लोगों से चंदा व नगर पालिका के सहयोग से टिन का दुमंजिला भवन स्कूल के लिए बना और पहले प्रधानाचार्य के रूप में पं. केवलानंद शास्त्री ने पदभार ग्रहण किया. (Haldwani History)
इसी विद्यालय के प्रथम छात्र पद्मश्री प्रोफेसर डी. डी. शर्मा रहे हैं. विद्यालय के दूसरे प्रधानाचार्य पं. मदन नारायण त्रिपाठी रहे. सन 1970-75 के बीच इस विद्यालय को शास्त्री की मान्यता मिली जो बीच में टूट भी गयी. सन 1990 से यह स्कूल स्थाई रूप से है.
तमाम कार्यक्रमों के लिए राममंदिर का खुला स्थान था, जिसमें संस्कृत विद्यालय संबंधी बड़ी बैठकों का आयोजन हुआ करता था. मन्दिर के पहले पुजारी राम चन्द्र वशिष्ठ थे. सन 1975 के बाद रेलवे बाजार स्थित संस्कृत महाविद्यालय का नया भवन बनाया गया. भवन में 20-25 किरायेदार भी हैं. दुमंजिले में विद्यालय और छात्रावास हैं.
मूल रूप से चितई (अल्मोड़ा) के प्रेमबल्लभ पन्त के पुत्रों केशवदत्त-भोलादत्त ने रामलीला मोहल्ले में ही 1925-26 में एक आलीशान नक्काशीदार मकान बनवाया. बाद में जीर्णशीर्ण अवस्था में पहुँच जाने के बाद भी उसकी पुरानी शान देखने लायक रही. ये दोनों भी लकड़ी के कारोबारी थे. इसी मकान के एक कमरे में कम्यूनिस्ट पार्टी का दफ्तर भी हुआ करता था जिसमें कॉमरेड लीलाधर पाठक रहा करते थे. के. एम. ओ. यू. वर्कर्स यूनियन के साथ कई अन्य ट्रेड यूनियनों के वे लीडर थे.
केशवदत्त-भोलादत्त की टिम्बर कम्पनी में मुनीम रहे डोतढुंगा, बीरभट्टी निवासी बहादुर सिंह बिष्ट के पुत्र दीवान सिंह ने नेवी से रिटायर होकर इसी मकान के भूतल में मौन पालन हेतु बक्से बनाने का कारोबार शुरू किया.
मंगल पड़ाव के निकट सन 1932 में बेनीराम पाण्डे ने एक शिव मंदिर बनवाया जिसका नाम बेनीरामेश्वर मंदिर है. यानी तत्कालीन स्थितियों के अनुरूप उन लोगों की जरूरतों को देखते हुए ऐसे के कार्य यहाँ हुए. आज की स्थितियों में इन तमाम निआं कार्यों व स्थापनान को भुला सा दया गया है और ये सारी चीज़ें भीड़ में गम सी होकर रह गयी हैं लेकिन इनका महत्त्व कम नहीं आंका जा एकता है. सामाजिक चेतना के ये सारे केंद्र थे जिनके सहारे हल्द्वानी का वर्तमान खड़ा हुआ है.
(स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी-स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर)
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