1962 में डॉक्टर हेमचंद्र जोशी जाड़ों में नैनीताल से हल्द्वानी रहने आया करते थे और कालाढूंगी रोड स्थित पीतांबर पंत के मकान में टिका करते थे. वे बहुत वृद्ध हो गए थे और उनकी आंखें बहुत कमजोर हो गई थी. उन दिनों वे हिंदी के साथ साथ कुमाऊनी भाषा का एक ऐसा शब्द कोष बनाना चाहते थे जिसमें शब्दों की व्युत्पत्ति के बारे में बताए जा सके. दुर्भाग्य से उनका यह कार्य आधा-अधूरा ही रह गया. उनके भाई इलाचंद्र जोशी भी इलाहाबाद से कभी-कभी हल्द्वानी आया करते थे. उनका पूरा कमरा कई भाषाओं की बहुमूल्य किताबों से भरा पड़ा था. उन्होंने अपने अंतिम समय में नैनीताल डिग्री कॉलेज को 5000 किताबें दी किंतु जो काम वह कर रहे थे उनकी पांडुलिपियां उनके पास ही रही. डिग्री कॉलेज की लाइब्रेरी में हुए भीषण अग्निकांड में वह बहुमूल्य संपदा जलकर खाक हो गई. Forgotten Pages from the History of Haldwani-36
नैनीताल शहर की कई बहुमूल्य विरासतों का अग्नि के हवाले हो जाना भी यहां के प्रयास को खाक में मिला गया है. 145000 रुपये की लागत से 1898 में निर्मित 112 वर्ष पुरानी ब्रिटिशकालीन ऐतिहासिक इमारत 5 अक्टूबर 2010 को प्रातः करीब 7:30 बजे से 12:30 बजे तक जलकर राख हो गई. यूरोपियन स्थापत्य कला की गोथिक शैली का यह भवन इतिहास बनकर रह गया. यहां रखे ब्रिटिश काल से अब तक के ऐतिहासिक दस्तावेजों का जल जाना कम बड़ी बात नहीं है. यह आजादी की लड़ाई के इतिहास का भी साक्षी रहा है.
आजादी के समय नैनीताल में ब्रिटिश कालीन 127 भवन होने की बात कही जाती है. बाद के दशकों में अनेक भवनों में बदलाव किए जा चुके हैं किंतु कुछ महत्वपूर्ण भवन आग के हवाले होकर या तो अपना स्वरूप हो चुके हैं या खाक में मिल गए हैं. 1982 में कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी परिसर का भौतिक विज्ञान विभाग आग में जलकर खाक हो गया. इसमें करोड़ों रुपए के उपकरण, महत्वपूर्ण शोध दस्तावेज, बहुमूल्य पुस्तकें जलकर समाप्त हो गई.
1978 में नैनीताल क्लब की घटना भुलाई नहीं जा सकती है. जब लकड़ी की नीलामी का विरोध कर रहे आंदोलनकारियों ने क्लब को आग के हवाले कर दिया. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी जब अपनी महत्वपूर्ण धरोहर को आग लगा दी गई. गुस्सा सरकार के खिलाफ हो सकता है लेकिन उसे एक विरासत को मिटा डालने से शांत नहीं किया जा सकता है. कुछ ही साल पहले मल्लीताल फांसी गधेरे के निकट रॉक हाउस आग के हवाले हो गया.
वर्तमान उच्च न्यायालय, जहां पूर्व में ग्रीष्मकालीन सचिवालय हुआ करता था, का एक भाग भी 70 के दशक में आग की भेंट चढ़ गया. इसी दौरान आयारपाटा का प्रायरी लॉज और हटन हॉल भी आग की भेंट चढ़ गया. 60 के दशक में जिम कॉर्बेट का भवन कैलाश व्यू (हांडी मांडी) तथा शेरवुड के निकट क्लिफटन जलकर नष्ट हो गए. बियाना लॉज, धर्मपुर हाउस आग के हवाले हो गया. 2003 में राजभवन के एक भाग में आग लगी किंतु उसे बचा लिया गया. ब्रिटिश कालीन यह इमारत उस समय की ईमानदार निर्माण कला और ईमानदार व्यवस्था का उत्कृष्ट नमूना हैं. कलेक्ट्रेट भवन में लगी आग में वह ऊपरी हिस्सा जला है जहां लकड़ी का काम था. शेष दीवारें उत्कृष्ट निर्माण कला की गवाह बनी जस की तस खड़ी रही. Forgotten Pages from the History of Haldwani-36
(जारी)
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