गांव के उपजाऊ खेतों, फलदार बगीचों से इतना हो जाता था कि उसे संपन्न कहा जा सकता था. सुखी वैवाहिक जीवन से उसे सात लड़के मिले. पत्नी के आख़िरी प्रसव के दौरान मृत्यु ने उसे तोड़ दिया लेकिन बच्चों की खातिर उसने खुद को संभाल लिया. गांव वाले उसे सलाह देते कि वह शादी कर ले. लेकिन दूसरी पत्नी बच्चों के लिए जाने कैसी माँ साबित हो इस डर से उसने दूसरा ब्याह नहीं किया. घर-बाहर के सारे कामकाज गांव वालों और पड़ोसियों की मदद से होते रहे. सभी लड़के बड़े हुए और फिर सबकी शादियाँ हो गयीं. खेती-बाड़ी, बाग़-बगीचे बेटों ने संभाल लिए. (Folklore of Uttarakhand)
बुढ़ापे में उसे क्या नहीं देखना पड़ा. बहुओं में आपस में खूब क्लेश होता. वक़्त बीता तो घर में सात अलग-अलग चूल्हे भी हो गए. चूल्हे बढ़े और बूढ़े की दुर्गति भी. अब जब वह खुद ज्यादा काम करने के लायक नहीं था और उसे सेवा की जरूरत थी तो सारी बहुएं उसे कहतीं कि तुम्हारी सेवा करना हमारा अकेले का ठेका नहीं है बाकि भी छह हैं उनके पास जाओ. इस तरह उसे तीन बखत का भोजन भी नसीब नहीं होता.
पूरे गांव की उस बुड्ढे के साथ बहुत हमदर्दी थी जिसने अपने बच्चों को सौतेली माँ के कोप से बचने के लिए कभी दूसरी शादी के बारे में नहीं सोचा और सबकी परवरिश की.
उसकी दुर्गति के बारे में चार गांव दूर के उसके साहूकार मित्र को जानकारी मिली तो वह उससे मिलने चला आया. उसने कहा कि मेरे पास इस सबसे निपटने का उपाय है जो उसके घर आने पर उसे बताएगा. कुछ दिनों बाद ही बूढ़ा अपने दोस्त के पास पहुंचा तो उसने उसे एक पत्थरों से भरा संदूक और पांच सोने की अशर्फियाँ दीं. उसने बूढ़े से कहा— घर पहुंचकर यह संदूक मोटा सा ताला लगाकर अपने कमरे में रख देना. और दरवाजा बंद कर लेना. जब कौतुहल के कारण कोई दरवाजा खटखटाए तो सोने की अशर्फियाँ हाथ में लेकर बाहर आना और बक्से के बारे में पूछने पर कहना कि बुरे बखत में अपने साहूकार दोस्त को कुछ कर्ज दिया था जो उसने लौटा दिया है. मेरी मदद से वह बुरे समय से भी बाहर निकला और दोबारा खूब धन भी कमाया.
बूढ़ा बक्सा लादकर घर पहुंचा तो बड़े से ताले को देखकर बक्से के बारे में खुसर-पुसर शुरू हो गयी. बूढ़े ने बक्सा कमरे के भीतर रखा चिटकनी चढ़ाई और बक्से का ताला खोला. बहुओं की सलाह से बड़ी बहू ने दरवाजा खटखटाया. बूढ़े ने चिटकनी खोली सोने की अशर्फियाँ हाथ में पकड़े बाहर निकला और दरवाजा बंद कर दिया. बड़ी बहू इतना ही देख पायी कि बक्सा खुला हुआ था. उसने बहू से कहा कि साहूकार मित्र ने बरसों पुराना कर्जा लौटाया है तो उसे ही जांच रहा हूं. दोबारा अंदर जाकर पत्थरों के ऊपर उन पांच अशर्फियों को रखकर बक्से बंद कर लोहे का मोटा ताला लगा दिया.
अब तो बेटे-बहुओं के सुर बदल गए. बूढ़े की सेवा करने की होड़ लग गयी. सभी ने सोचा बुड्ढे के पास तो अभी बहुत धन है, जो ज्यादा सेवा करेगा उसे ही ज्यादा प्राप्ति होगी. अब बूढ़े का बचा हुआ समय ठीक से बीतने लगा. जब बूढ़े का शरीर अशक्त हुआ तो उस लगा कि अंतिम बेला निकट है तो उसने अपनी सभी बहुओं को बुलाया कि वह पांच ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहता है. सभी फटाफट राजी हो गयीं.
बेटों ने आसपास के गाँवों से पांच ब्राह्मणों को भोज पर आमंत्रित किया. बढ़िया भोज के बाद बूढ़ा अपने कमरे में गया बक्सा खोला पाँच सोने की अशर्फियाँ लेकर बाहर आया और हर ब्राह्मण को एक-एक दक्षिणा में दे दी.
कुछ दिनों बाद बूढ़े की मृत्यु हो गयी. सारे बेटे-बहुएं इकठ्ठा हुए और चाभी ढूँढ़कर बक्सा खोला गया. भीतर पत्थर भरे देखकर वे हैरान रह गए.
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