तिदांग रंचिम के युग की समाप्ति के बाद तिदांग में सिम कच्यरो पैं (तीन कच्यरो भाई) का युग शुरू होता है. ये सिम कच्यरो पैं तिदांग के निवासी थे. तीनों भाई बलवान के साथ आसापास में उड़ान भी भर सकते थे. लेकिन स्वभाव में क्रूर मिजाज के थे. बड़ा भाई कच्चा मांस खाता था अपने निवास स्थान से 5 मील गोतौधार तक उड़ान भर सकता था. मझेला भाई आग में भुना मांस खाता था वह 2 मील बुकांग तक तथा तीसरा भाई जो पकाया मांस खाता था वह 1 मील हिमचिक तक उड़ सकता था. ये तीनों भाई अधिकतर अपने बन्द कमरे में छील्लू (शिप दाना) फैंक कर जुआ खेलते थे. ये अपने गांव के रास्ते से आने जाने वाले लोगों के साथ मारपीट करते थे और आने-जाने नहीं देते थे. लोग पहाड़ों के रास्ते में छिपकर जाते थे. इलाके के लोग इन तीन भाइयों से परेशान थे.
इन तीन भाइयों की एक बहिन थी जो ग्राम ढाकर में ब्याही थी उस बहिन का एक लड़का था. समय बीतता गया लेकिन सिम कच्यरो पैं का आने जाने लोगों को मारना पीटना कम नहीं हुआ तभी चौदह गांव के लोग मिल कर इन तीन कच्यरों पी के साथ लड़ाई लड़ने की तैयारी करते हैं. यह खबर (चौदह गावं वालों की योजना) कच्यरो भाइयों की बहिन को मालूम हो जाती है. अपने भाइयों को सावधान करने हेतु अपने पुत्र को लाल हरा धागा (एक प्रकार का चिन्हात्मक रूप) के साथ हिदायत (समझाकर) देकर तिदांग अपने मामाओं के पास भेजती है कि पुत्र तुम तिदांग पहुंच कर अपने मामाओं के मकान के छत पर चढ़ जाना छत पर कमरे में उजाला व हवा के लिए चंठिम (हवदानी, रोशनदान) बनाया होगा उसी रास्ते से यह लाल हरा धागा धीरे-धीरे नीचे फेंकना तुम्हारे मामा लोग समझ जायेंगे कि अपना कोई आया है. ऐसा न करने पर तुम्हारे मामा लोग तुम पर हमला कर सकते हैं. लड़का तिदांग पहुंचता है और मामाओं के मकान के छत्त पर चढ़ जाता है और रोशनदान से धीरे-धीरे लाल-हरा धागा नीचे गिराता है ठीक उसी समय कमरे में मामा लोग छिल्लू (शिपी) फैंक खेल रहे थे. तभी धागा छिल्लू के ऊपर गिर जाता है. मामा लोग छत पर दुश्मन आया समझ कर छत में छलांग लगा कर अपने ही भांजे पर हमला बोल देते हैं कि उन्हेांने अपने ही भान्जे की हत्या कर दी तो तीनो भाई दुख से बेहला हो जाते हैं. और बहिन को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाते हैं. साथ-साथ बहिन अपने लड़के की शोक (दुख) में अपने भाइयों पर यंगलू (श्राप देकर) करके, तुम तीनों भाई मेरी तरफ से मर चुके हो कभी भी मुझे अपना मुंह मत दिखायें आज से ढ़ाकर और तिदांग का ब्याह शादी का रिश्ता समाप्त हो गया.
तीनों भाइयों को अपने हाथ से अपने ही भान्जे की मौत का अथाह दुःख तो था ही उसके ऊपर से अपनी बहिन की यंगलू (श्राप) शब्दों (वचन) सुनकर जीना मरना बराबर हो गया. तभी तीनों भाइयों ने यह तय किया कि अपने ऊपर से इस कलंक उतारने के लिए मरना ही ठीक रहेगा. इस प्रकार बड़ा भाई 5 मील गोतौधार उड़ान भर कर, मझेला भाई 2 मील बुकांग उड़ान भरकर, तीसरा भाई 1 मील हिमचिंक उड़ान अपना शरीर त्याग देते हैं. साथ-साथ सिम कच्यरो पैं ( तीन कच्यरो भाइयों) का युग समाप्त हो जाता है.
नोटः (शायद कच्यरो नाम इसलिए पड़ा था कि तीनों भाई जंगली कच्यरो पक्षी (हिमालयी तीतर) के बराबर उड़ते थे. )
अमटीकर 2012, दारमा विशेषांक से साभार. यह लेख विजय सिंह तितियाल द्वारा लिखा गया है.
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