दूर देश से यह तीर्थ यात्री केदारनाथ धाम की यात्रा पर पहुंचा. बाबा केदार के दर्शन कर वह वापस लौट रहा था कि उसके रुपये कहीं गुम हो गए. वह यात्री या तो अपने यात्राखर्च के शेष रुपये कहीं भूल गया था या फिर वे कहीं गिर गए. अब वह बहुत परेशान हुआ कि किस तरह वापस अपने घर लौटे. तब आज की तरह संचार के साधन इतने सुलभ थे नहीं कि घर से मदद मंगवाना संभव होता. फिर उसका घर तो मीलों दूर था. केदारघाटी के इस इलाके में भी उसकी पहचान का दूर-दूर तक कोई नहीं था. (Folk Tale of Uttarakhand)
मजबूरी में उस व्यक्ति ने सोनप्रयाग के इर्द-गिर्द के ग्रामीणों से मदद मांगनी शुरू की. उसकी तलाश जल्द ही पूरी हुई और सुजान सिंह नाम का एक ग्रामीण उसे अपने घर ले गया. सुजान ने तीर्थ यात्री को पानी पिलाया, भोजन कराया और उसकी जरूरत भर के रुपये दे दिए. कृतार्थ तीर्थ यात्री ने भीगी पलकों से सुजान का शुक्रिया अदा किया. जल्द पैसे लौटने का वादा कर वह अपने घर को चल पड़ा.
घटना को काफी साल बीत गए. वह तीर्थ यात्री सुजान सिंह का उधार चुकता करने नहीं आया. रक़म भी बहुत बड़ी थी नहीं तो सुजान भी वक़्त बीतने के साथ उसे भूल चला.
इस बीच सुजान की दुधारू गाय ने एक बैल को जन्म दिया. पास की थोड़ी बचत से सुजान जल्द ही एक बैल खरीद लाया और अब उसके लिए खेती करना ज्यादा आसान हो गया. दो बलिष्ठ बैलों की जोड़ी ने सुजान के भकार भर दिए. उसका घर संपन्न और खुशहाल हो गया.
समय बीता और इस जोड़ी का एक बैल मर गया. सुजान दोबारा से एक बैल खरीद लाया. लेकिन इस जोड़ी में वैसे रंगत नहीं दिखाई दी. बाजार से आया बैल जवान था और सुजान के घर जन्मा बैल अब बूढ़ा और अशक्त हो चला था. इन बैलों का आपसी तालमेल बन ही नहीं पा रहा था. इस वजह से सुजान के लिए खेती करना बहुत मुश्किल हो रहा था.
इस बीच एक व्यक्ति गांव में पहुंचा और सुजान का पता पूछते हुए उससे मिलने आया. उसने सुजान सिंह से पूछा कि क्या वह वही सुजान है जिससे बरसों पहले किसी तीर्थयात्री ने घर लौटने के लिए रुपये उधार लिए थे.
सुजान उस घटना को भूल गया था लेकिन अजनबी के याद दिलाते ही उसे वह घटना फौरन याद आ गयी. उसने अजनबी को बताया कि केदारनाथ धाम से लौटते तीर्थ यात्री को उसने ही कभी कुछ रुपये उधार दिए थे, लेकिन उस घटना को वह भुला चुका है. उस मामूली सी रक़म को न लौटाने के बावजूद उस यात्री के लिए उसके मन में कोई शिकवा-शिकायत नहीं है. लेकिन तुम्हें यह बात कैसे मालूम है? सुजान ने उससे पूछा. अजनबी ने बताया कि मैं उस यात्री का बेटा हूं. उसने बताया कि तीर्थ यात्रा से लौटने के बाद उसके पिता की मृत्यु हो गयी. मृत्यु से पहले वे कुछ कहना चाहते थे लेकिन काफी कोशिश के बाद भी ख नहीं पाए.
अब सुजान सोचने लगा कि फिर पुत्र को अपने पिता के कर्ज के बारे में कैसे मालूम हुआ. उसने अपनी हैरानी अजनबी पर जाहिर की.
अजनबी ने बताया कि — कुछ दिनों पहले मेरे पिता स्वप्न में आये. उन्होंने बताया कि मैं केदारघाटी के सुजान नामक सज्जन व्यक्ति के ऋण से मुक्त नहीं हो पा रहा हूं. पिताजी ने मुझे पूरी घटना बतायी और आपका पता भी दिया. उन्होंने बताया कि मरने से पहले आपका कर्ज न चुका पाने की वजह से उन्होंने आपके घर बैल के रूप में पुनर्जनम लिया. बैल के रूप में जी-जान से आपकी सेवा करते हुए उन्होंने काफी कर्ज चुकता भी कर दिया है. लेकिन अब चाहते हुए भी वे बूढ़े होने की वजह से अपनी सेवाएँ नहीं दे पा रहे हैं. अब उनका शरीर जल्द ही निढाल हो जाता है. वे बीमार शरीर और आपके ऋण दोनों से मुक्त होना चाहते हैं. उन्होंने सपने में मुझे आपका बचा हुआ कर्ज चुकाकर ऋणमुक्त करने का आदेश दिया है.
इसके बाद उस अजनबी ने सुजान को कर्ज के रुपये लौटा दिए. सुजान चाहता नहीं था कि उन्हें ले लेकिन ऐसा किये बगैर एक आत्मा की मुक्ति संभव नहीं थी. सुजान ने भारी मन से पैसे हाथ में लिए. ऐसा करते ही सुजान के अशक्त बैल ने भी अपनी आखरी सांस भरी और इस संसार से विदा ले ली. (Folk Tale of Uttarakhand)
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