किसी जंगल में एक बकरा और बकरी साथ रहा करते थे. बकरी का नाम था मनमंजरी. दोनों बहुत दुखी थे, उनके दुःख का कारण था उसी जंगल में रहने वाला एक सियार. जब भी मनमंजरी बच्चों को जनम देती तो सियार उन बच्चों को उठा कर ले जाता और मार कर खा लेता. इस वजह से मनमंजरी बहुत दु:खी रहती थी और उसके दुःख से बकरा भी. (Folk Tale of Uttarakhand)
एक बार फिर मनमंजरी ने दो बच्चे जने. उसे भय हुआ कि इस बार भी सियार मेरे इन दोनों बच्चों को उमार कर खा जाएगा. उसने बकरे से कहा — तुम ऐसे कब तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहोगे. अबकी बार कोई ऐसी युक्ति करो कि स्याव मेरे नन्हें बच्चों को न खा सके. बकरे ने बहुत दिमाग़ लगाया तो उसे एक तरकीब सूझी.
उसने बकरी से कहा इस बार जब सियार आता दिखाई देगा तो मैं सामने की चट्टान पर चला जाऊंगा. जब सियार पास पहुँचने वाला होगा तो मैं पूछुंगा— मनमंजरी ये बच्चे रो क्यों रहे हैं? इन्हें चुप तो कराओ. सुनकर तुम बच्चों को जोर से चिकोटी काट देना और वो जोर से रोने लगेंगे. जब बच्चे रोने लगेंगे तो तुम कहना — कैसे चुप कराऊँ? सियार का ताजा कलेजा खाने की जिद पकड़ कर रो रहे हैं.
जब सियार आता दिखाई दिया तो बकरा सामने धार पर चढ़ गया. उसने कहा “मनमंजरी ये बच्चे रो क्यों रहे हैं? इन्हें चुप तो कराओ.” मनमंजरी ने बच्चों को जोर से चिकोट दिया तो बच्चे जोर-जोर से रोने लगे. तब मनमंजरी ने जवाब दिया “कैसे चुप कराऊँ? “बासी शिकार खाते नहीं ताजा पाते नहीं. सियार का ताजा कलेजा खाने को कहकर रो रहे हैं.” बकरे ने तुरंत कहा “ सियार आता ही होगा मैं उसका कलेजा लेकर आता हूं, तुम बस इन्हें चुप कराओ.” सुनकर सियार की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी वह किसी तरह जान की भली मनाता बागा.
भागते सियार को रास्ते में एक लंगूर मिला. लंगूर ने सियार से इस तरह बदहवास भागने की वजह पूछी तो उसने सारा किस्सा सुना दिया. लंगूर ने हँसते-हँसते पेट पकड़ लिया ओर कहा “भला बकरी का बच्चा भी सियार का कलेजा खा सकता है?”
लंगूर ने सियार को बहुत समझाया और उसकी हिम्मत बाँधी. लंगूर ने सियार से कहा चलो मैं तुम्हारे साथ चलता हूं. लंगूर ने सियार की पूँछ से अपनी पूँछ बाँध दी और बकरा-बकरी के पास चल दिए.
जब वहां पहुंचे तो बकरा लंगूर को डांटते हुए बोला — ओ रे! लंगूर तू बड़ा दुष्ट निकला रे. तू तो कह रहा था सात सियार लेकर आता हूं करके और एक ही सियार साथ में लाया. बकरे की बात सुनकर सियार ने लंगूर का षड्यंत्र समझा और भागने लगा. दोनों की पूँछ बंधी होने से वे उछलते-कूदते लुढ़क कर भ्योव में चले गए और मर गए. बकरा-बकरी अपने बच्चों के साथ हंसी-खुशी जीवन बिताने लगे. (Folk Tale of Uttarakhand)
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