पहाड़ की कहानियां जो पिछली सदी में बैगा हुड़किया ने सुनाई थी पादरी ई एस ओकले और तारा दत्त गैरोला को :
एक समय की बात है कि लखीमपुर नामक स्थान में काला भंडारी नाम का व्यक्ति रहता था, उसके पिता का नाम वीरू भंडारी था. काला भंडारी जब बच्चा था तभी से वह शानदार ताकत वाले करतब किया करता था, जब वो बारह वर्ष का था तो उसने सपने में देखा कि एक बहुत सुंदर लड़की उसके सामने खड़ी है और उसे स्नेहिल प्रस्ताव दे रही है! वह अति उत्साह में जागा.
उस लड़की का नाम उदयमाला था. उसकी सुंदरता दूर-दूर तक विख्यात थी. उसके पिता का नाम धामदेव था, वह कलनीकोट (गढ़वाल का एक दुर्ग) में रहते थे. काला भंडारी पागलों की तरह उसे खोजने लगा. अंततः वह कलनीकोट पहुंचने में सफल हुआ. वह उदयमाला के कमरे में दाखिल हो गया, दोनों छुप कर कुछ दिनों तक साथ रहे. काला भंडारी वहां से निकलकर धर्मदेव के पास गया और उदयमाला के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. धर्मदेव एक शर्त के साथ शादी के लिए राजी हो गया कि यदि काला भंडारी उन्हें एक सूप भर रूपये दे तो वह उदयमाला की शादी काला भंडारी से कर देंगे. काला भंडारी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और अपने घर लखीमपुर लौट आया.
इसी बीच चार विख्यात योद्धा चंपावत (कुमांऊ) पहुंचे जो कि गुरु ज्ञान चंद की राजधानी थी. उन्होंने गुरु ज्ञान चंद को ललकारा कि वह कोई योद्धा भेजें उनसे लड़ने के लिए. उन्होंने गुरु ज्ञान चंद धमकाया कि यदि वह ऐसा नहीं करते हैं तो उनके राज्य को वह तबाह कर देंगे. गुरु ज्ञान चंद बहुत बड़ी आफत में पड़ गये. उन्होंने मंत्रणा के लिए सभी दरबारियों व मंत्रियों को इकठ्ठा होने का आदेश दिया. सभी ने एक सहमति में काला भंडारी का नाम लिया कि वही एक व्यक्ति है जो इन योद्धाओं से लड़ सकता है, हालांकि वह बारह बरस का बालक ही था. किंतु वह अनंत शक्तियां रखता था और बहादुर भी था. तुंरत एक हरकहरा भेजा गया किंतु काला भंडारी के पिता ने पुत्र-मोह में काला को उनके साथ नहीं जाने दिया.
आखिरकार उन्हें इस बात के लिए मना लिया गया कि काला भंडारी उन चार खूंखार योद्धाओं से युद्व लड़ेगा. इस तरह काला भंडारी चंपावत पहुंचा और राजा गुरु ज्ञान चंद के पास गया. वह उसकी कम उम्र देखकर हतोत्साहित हो गए. उन्हें विश्वास न हो रहा था कि ये छोटा सा बालक उन खतरनाक योद्वाओं से कैसे लड़ पाएगा. काला भंडारी ने अपने सम्मान में महल में रखे युद्ध के वाद्य यंत्रों को बजवाने का आदेश दिया. बजाय उन चार योद्वाओं के सम्मान के, क्योंकि शायद भविष्य में काला भंडारी के सम्मान में ही ये वाद्य यंत्र विजयघोष करने वाले थे. इस अपमान से अपमानित उन चार खूंखार योद्धाओं ने इसका कारण पूछा? राजा गुरु ज्ञान चंद ने कहा कि उन्होंने लड़ने के लिए योद्धा भेजा है वो अपने सम्मान में ये युद्व के वाद्य यंत्र बजा रहा है.
अब काला भंडारी युद्व भूमि में प्रकट होता है और उन योद्वाओं से युद्ध की घोषणा करता है. वे चारों योद्वा एकाएक काला भंडारी पर टूट पड़ते हैं, काला भंडारी यह कहकर इसका विरोध करता है, कि क्या ये न्यायोचित है कि चार व्यक्ति एक साथ एक व्यक्ति से लड़ें. फिर उन्होंने अपने दो योद्वाओं के चुना काला भंडारी से लड़ने के लिए. बहुत लंबी लड़ाई के बाद काला भंडारी ने उन दोनों को जमीन पर गिरा दिया और उन्हें मारा डाला. यह वीभत्स दृश्य देखकर बचे हुए दो योद्वाओं ने खौफ के मारे खुद को ही मार डाला.
गुरु ज्ञान चंद काला भंडारी की वीरता पर बहुत प्रसन्न् और कृतज्ञ हुए और उसे बहुत से रूपयों का पुरुस्कार व आशीर्वाद दिया. काला भंडारी बहुत सारा पुरुस्कार रूपी धन लाद कर अपने घर लौटा और उदयमाला के पिता को संदेशा भिजवाया और उन्हें उनकी शपथ याद दिलाई.
इसी मध्य रिपु गंगोला जो कि गंगासारी हाट का रहने वाला था, ने धामदेव के पास जाकर उनकी बेटी उदयमाला का हाथ मांगा. उसने बहुत सारा धन धामदेव के दरबारियों को बांटा और बहुत सारी बहुमूल्य चीजें धामदेव को दी ताकि वह उनका पक्ष हासिल कर सके. इस तरह धामदेव उदयमाला का विवाह रिपु गंगोला से करने को राजी हो गया. विवाह की तारीख पक्की हो गयी और रिपु बहुत बड़ी बारात लेकर वहां पहुंचा.
जब शादी के दिन निकट आने लगे तभी उदयमाला काला भंडारी के सपने में आई और बताती है कि उसकी शादी बहुत जल्द रिपु के साथ होने वाली है और कहती है कि वह आए और उसे यहां से ले जाए. जब काला भंडारी की आंख खुली तो वह विकलता से भर गया. उसने यह बात अपने पिता वीरूभंडारी को बताई. पिता ने उसे वहां जाने से मना किया और कहा कि वह उदयमाला से विवाह का विचार वह त्याग दे. लेकिन काला भंडारी नहीं माना, उसने अपने शरीर में राख लपेटी और भेष बदलकर साधू के रूप में वह कलनीकोट के लिए रवाना हुआ और वह ठीक शादी के दिन वहां पहुंचा. जब उदयमाला व रिपु की शादी होने वाली थी उसने उदयमाला के कक्ष में दाखिल होने का प्रबंध किया. उदयमाला के कक्ष में जाकर, उन दोनों के बीच में गुप्त मन्त्रणा हुई. काला ने उदयमाला से कहा कि नवां फेरा तुम तब तक न लेना जब कि तुम्हारे गुरु (साधु के भेष में काला भंडारी) सामने न आ जाएं, जो कि एक साधु हैं.
समयानुसार विवाह अनुष्ठान की शुरुआत हुई, बहुत ही वैभवशाली समारोह, जिसमें बेशकीमती हीरे जवाहरात, ब्राह्मणों व गरीबों में वितरित किये गए, तभी अचानक उदयमाला ने आठंवे फेरे के बाद नवां फेरा लेने से मना कर दिया, जो कि विवाह को सम्पन्न करता. ये कहते हुए कि वो नवां फेरा तब तक नहीं लेगी जब तक उसके गुरु उसके सामने नहीं आ जाएंगे जो कि एक साधू हैं.
वहां एक वैभवशाली समारोह चल रहा था. चारण और भाट गा बजा कर विवाह समारोह का आनंद ले रहे थे. इस प्रकार लोग गंगा माई के तट पर पहुंचे नाचते गाते, बाराती और जनाती ताकि उदयमाला को उसके गुरु के दर्शन को सके और फिर नवां फेरा होकर विवाह संपन्न हो.
इसी बीच काला भंडारी साधू के वेश में वहां प्रकट होता है. जब उदयमाला उसे देखती है और कहती है कि हमारे गुरु आ चुके हैं और यह तलवार और ढाल के साथ नृत्य करने में बहुत निपुण हैं. उन लोगों ने उस साधू से याचना की कि वह इस समारोह में अपना नृत्य दिखाकर लोगों का मनोरंजन करें. साधू ने वर पक्ष और कन्या पक्ष को एक रेखा खींचकर अलग अलग कर लिया और तब साधू ने अपना नृत्य शुरू किया. अचानक साधू ने रेखा के दूसरी तरफ खड़े सभी बरातियों के सिर काटना शुरु कर दिये. देखते-देखते सारे बाराती मारे गए. जिसमें उदयमाला का होने वाला पति रिपु भी मारा गया. रिपु का छोटा भाई लूला गंगोला ही अपनी जान बचा पाया और उसने काला भंडारी से अपनी जान की भीख मांगी कि वह उसे न मारे काला भंडारी न उसे क्षमा कर दिया.
काला ने अपने सारे शत्रुओं को मारने के बाद उदयमाला के पास गया. काला को बहुत प्यास लगी थी, उदयमाला ने लूला गंगोला को आदेशित किया कि वह उसके लिए पानी लेकर आए. लूला ने एक झरने से पानी भरा और उसने अपने कपड़ों में एक बड़ा पत्थर भी वहां से छुपा लिया. जब थका हारा काला भंडारी पानी पीने लगा तभी लूला ने उसी पत्थर से काला के सिर पर जोरदार प्रहार किये, काला अधमरी स्थिति में था लेकिन उसने अपने हाथ से ढाल व तलवार नहीं गिरने दी और अनतः मरने से पहले काला भंडारी ने अपनी तलवार से लूला गंगोला का सर कलम कर दिया.
उदयमाला अकेले रह गई. बहुत रोने पीटने व हतोत्साहित होने के बाद उसने अपने भीतर के आत्मविश्वास को इकठ्ठा किया, दाहसंस्कार का प्रबंध किया और काला के सिर को अपने दायें घुटने पर रखा और बांये पर रिपु का सिर और वह अग्नि में समाहित होकर सती हो गई.
अनुवाद: कृष्ण कुमार मिश्र ऑफ मैनहन
साभार: किताब “हिमालयन फॉल्कलोर” (ई एस ओकले एवं तारा दत्त गैरोला) प्रकाशित- इलाहाबाद सुपरिन्टेन्डेन्ट प्रिंटिंग एंड स्टेशनरी 1935
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लखीमपुर खीरी के मैनहन गांव के निवासी कृष्ण कुमार मिश्र लेखक, फोटोग्राफर और पर्यावरणविद हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहने वाले कृष्ण कुमार दुधवालाइव पत्रिका के संपादक भी हैं. लेखन और सामाजिक कार्यों के लिए पुरस्कृत होते रहे हैं.
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1 Comments
कृष्ण कुमार मिश्र
अंततः श्रंगार की कथा वीरगति को प्राप्त हुई..