कुमाऊंनी लोकसाहित्य में अनेकानेक पक्षियों का उल्लेख है. मोनाल, तीतरी, शुक, कव्वा, गौतेली, कफुआ, हुट-हुटिया आदि. लेकिन घुघुत का उल्लेख कुमाऊंनी लोकसाहित्य में खुल कर हुआ है. एक लोकगीत में घुघुत के अंडे से पृथ्वी के निर्माण की कथा कही गई है. इस लोकगीत में घुघुत के अन्डे से पृथ्वी तथा आकाश के निर्माण सम्बन्धी विचार मिलता है. लोकगीत के अनुसार:
(Folk Song about Ghughut)
देवताओं के बारम्बार प्रयासों के बाद भी पृथ्वी तथा आकाश का निर्माण नहीं हो सका. दो घुघुत पक्षी सहोदर थे. नर की छाया से मादा गर्भवती हुई. प्रसव काल नजदीक आया, अण्डे देने के लिए वृक्ष की आवश्यकता हुई. पर वहाँ अण्डे देने के लिए कोई स्थान नहीं था. क्योंकि यह सतयुग था, सभी प्राणी निर्मल व धार्मिक थे.
मादा घुघुत ने सत् का आहवान किया, जिसके फलस्वरूप शून्य से शाखाएँ उत्पन्न हुई. मादा ने दो शाखाएँ तोड़ी और घोंसले का निर्माण किया. पहला अंडा प्रथम/आदि पुरूष को उपहार स्वरूप दिया. दूसरा अंडा नीचे गिरा और दो भागों में विभक्त हो गया. ऊपरी भाग से आकाश का और निचले भाग से पृथ्वी का निर्माण हुआ.
(Folk Song about Ghughut)
लोकगीत का मूल स्वरूप पढ़िये:
घुघुत रौत्याली द्वि भाई बहिनीं पंखी पंख्यानी
भाई स्ल लै पंख्यानी को गरभ सिटझो
अन्ड दीनीं को महिनाँ ऐग्यो, पेड़ दरसन नी भयो,
पंख्यानी असन्द आई ग्यो.
सतयुग में सब सतबन्दी थिया,
पंख्यानी लै सत् फुकार्यो .
पंख्यानी सत लै बीच तलों में गोगिना डाली उपजिग्यो,
यो पंख्यानी लै द्वी हाड़ो टोरी बेर टन-मन बनायो
एक अण्ड पैद करी बेर भगीवान कैं चडायो.
दुसरो अन्ड पैद करी पानीं में गिरी ग्यो.
अन्डो फुटी बेर दो कपिया होइग्यो-
माथ को कुपिया आसमान बनियो
मुनिको कुपिया पिरथी बन्गियौ.
(जोशी 1971 : 41)
संजय घिल्डियाल
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संजय घिल्डियाल द्वारा लिखा गया यह लेख पहाड़ पत्रिका के 18वें अंक में प्रकाशित उनके लेख कुमाउंनी लोकसाहित्य में घुघुत का एक हिस्सा है. काफल ट्री में यह लेख पहाड़ के 18वें अंक से साभार लिया गया है.
(Folk Song about Ghughut)
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