गढ़वाल के चित्र भी कांगड़ा के समान ही लघुचित्र हैं ओर पहली दृष्टि में कांगड़ा और गढ़वाल के चित्रों को पृथक करना कठिन है, परन्तु फिर भी गढ़वाल की स्थानीय वनस्पति, घरेलू वातावरण और रेखा की विशिष्टता ने गढ़वाल शैली में एक निजत्व स्थापित कर दिया है. गढ़वाल शैली में सरल विधान और शक्तिशाली शिथिल रेखा से अंकित आकृतियां या काली रेखा से अंकित आकृतियां उसको कांगड़ा शैली से स्पष्ट पृथक कर देती हैं.
(Features of Garhwali painting)
गढ़वाल शैली के चित्रों में प्राकृतियों को कांगड़ा शैली की अपेक्षा सरल और सपाट बताया गया है और रेखा भी उतनी कोमल, गोलाईयुक्त और डोलपूर्ण नहीं है. गढ़वाल शैली के चित्रों में रेखा पधिक बलवती धोर प्रवाहपूर्ण है. गढ़वाल शैली को आकृतियों में अधिकांश वक्रीय आकृतियों को अपनाया गया है. स्त्रियों को सुन्दर और भावपूर्ण मुद्रा में बनाया गया है. बड़े-बड़े कमल नेत्र, लम्बी सीधी नाक, गोल चिबुक, भावाभिव्यंजक हस्त मुद्रायें तथा अंग भंगिमायें गढ़वाल शैली की स्त्री-आकृतियों की विशिष्टता है. कुछ चित्रों में काली स्याही से चित्र की आकृतियों की खुलाई की गई है जो रूहेला प्रभाव है.
स्त्रियों को कोहनी तक आस्तोनदार चोली, लहंगा तथा पारदर्शी दुपट्टा ओढ़े बनाया गया है. कपड़ों की शिकनें, तथा मोड़ों को अंकित करने में चित्रकार ने कुशलता का परिचय दिया है. पुरुषों के पहनावे में विशेषतया लम्बा जामा चुस्त तथा पाजामा और पगड़ी, पटका आदि बनाये गये हैं.
गढ़वाल शैली के अधिकांश चित्रों में प्रकृति को विशेष महत्व दिया गया है परन्तु किसी-किसी चित्र उदाहरण में रूहेला नक्काशीदार द्वारों का भवन में प्रयोग है. पर्वतों का पृष्ठभूमि में चित्रण किया गया है जिनमें स्थानीयता है. गढ़वाल के चित्रों में घरेलू दृश्य जैसे शयनकक्ष स्नान, शृंगार तथा रसोई श्रादि से सम्बन्धित दृश्य प्राप्त होते हैं. एक चित्र उदाहरण में यशोदा कृष्ण के लिए भोजन पका रही है. इस चित्र में रसोई का वातावरण सुन्दरता से दिखाया गया है. इसी प्रकार एक अन्य चित्र में प्रातःकाल की पूजा का दृश्य अंकित किया गया है जिनमें एक पुजारी को पूजा-उपासना में लीन अंकित किया गया है.
(Features of Garhwali painting)
गढ़वाल के चित्रकार ने स्थानीय प्रकृति की सुरम्य छवि को अपने चित्रों में बड़ी कुशलता से संयोजित किया है. चित्रकार ने यमुना नदी को मैदान के समतल धरातल पर प्रवाहित सरिता के समान नहीं बनाया है, बल्कि पहाड़ी सरिता यमुना को ऊंचे-नीचे गढ़वाली धरातल के क्षेत्र से प्रवाहित होते दिखाया गया है. चित्रकार ने सरिता के दोनों किनारों पर मैदानी भाग न दिखाकर ऊंचे-ऊंचे, टेढ़े-मेढ़े गहरे रंग के टीले बनाये हैं, जो वृक्षों से आच्छादित हैं. गढ़वाल शैली के चित्र में ऊंची पर्वत चोटियों को बनाया गया है.
गढ़वाल शैली के चित्रों में पृष्ठभूमि में दृश्य चित्रण की पद्धति बहुत कुछ मुगल शैली से प्रभावित है. दृश्यों में अधिकांश आम, गुलमोहर, केला, अमलताश, वट आदि वृक्षों का अंकन किया गया है.
गढ़वाल शैली के चित्रों में कभी-कभी हाशियों को भी बनाया गया और इन हाशियों में आलेखन बनाये गए हैं जिसमें सोने चांदी के रंगों का प्रयोग किया गया है. कुछ चित्रों में संगरफी तथा सवज (हरे) रंग को पट्टियों से हाशिए बनाये गये हैं जो रुहेला चित्र है. गढ़वाल शैली की इन विशेषताओं के अतिरिक्त अधिकांश प्रविधि काँगड़ा शैली के समान है.
गढ़वाल के चित्रकारों का चित्रण-विषय भागवत पुराण, रामायण, बिहारी सतसई, मतिराम, तथा रागमाला है. इन विषयों के अतिरिक्त चित्रकार ने अनेक देवी देवताओं के चित्रों का निर्माण किया है. यहाँ रुकमिणी मंगल, नल दमयन्ती, गीत गोविन्द, नायिका भेद, दशावतार, अष्टदुर्गा, कामसूत्र शिव पुराण, आदि पर भी चित्र बनाये गये.
टिहरी गढ़वाल के चित्रकारों ने कांगड़ा के चित्रकारों के समान ही राधाकृष्ण का प्रेम-सम्बन्ध लेकर शृंगार के अनेक पक्षों पर चित्र बनाए हैं. अतः गढ़वाल की कला को धार्मिक-कला माना जा सकता है.
(Features of Garhwali painting)
प्रकाश बुक डिपो बरेली से प्रकाशित डॉ. अविनाश बहादुर की किताब ‘भारतीय चित्रकला का इतिहास’ से साभार
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