पिता की तस्वीर
मंगलेश डबराल
पिता की छोटी छोटी बहुत सी तस्वीरें
पूरे घर में बिखरी हैं
उनकी आँखों में कोई पारदर्शी चीज
साफ चमकती है
वह अच्छाई है या साहस
तस्वीर में पिता खाँसते नहीं
व्याकुल नहीं होते
उनके हाथ पैर में दर्द नहीं होता
वे झुकते नहीं समझौते नहीं करते
एक दिन पिता अपनी तस्वीर की बगल में
खड़े हो जाते हैं और समझाने लगते हैं
जैसे अध्यापक बच्चों को
एक नक्शे के बारे में बताता है
पिता कहते हैं मैं अपनी तस्वीर जैसा नहीं रहा
लेकिन मैंने जो नए कमरे जोड़े हैं
इस पुराने मकान में उन्हें तुम ले लो
मेरी अच्छाई ले लो उन बुराइयों से जूझने के लिए
जो तुम्हें रास्ते में मिलेंगी
मेरी नींद मत लो मेरे सपने लो
मैं हूँ कि चिंता करता हूँ व्याकुल होता हूँ
झुकता हूँ समझौते करता हूँ
हाथ पैर में दर्द से कराहता हूँ
पिता की तरह खाँसता हूँ
देर तक पिता की तस्वीर देखता हूँ
वाट्सएप में पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
16 मई 1948 को उत्तराखंड के गढ़वाल इलाके के एक गाँव काफलपानी में जन्मे मंगलेश डबराल हिन्दी की समकालीन कविता में एक महत्वपूर्ण नाम हैं. साहित्य अकादेमी पुरुस्कार समेत अनेक बड़े सम्मान पा चुके मंगलेश ने लंबा समय पत्रकारिता में गुजारा है. उनकी सबसे महत्वपूर्ण रचनाओं में शामिल हैं ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’, ‘मुझे दिखा एक मनुष्य’, ‘नए युग में शत्रु’, ‘कवि ने कहा’ और ‘एक बार आयोवा’.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
1 Comments
कमल लखेड़ा
दिल को गहराई तक छूने वाली कविता । उकेरती, पिता की सांसों और उनके सदा बरसते आशीषों को ।