न कोई ब्रांडिंग, न विज्ञापन, न चमक-दमक वाला आउटलेट. इसके बावजूद नैनीताल की नमकीन इस कदर मशहूर हो गयी, कि लोग इसके दीवाने हैं. जिसने नैनीताल की नमकीन का स्वाद चखा, वह आज भले ही महानगरों में बस चुका हो, नैनीताल आने-जाने वाले अपने परिचितों से नमकीन मंगाना नहीं भूलता. (Famous Namkins of Nainital)
बिना प्रचार-प्रसार के किसी उत्पाद के मशहूर होने का एक मात्र कारण है, उसका बेजोड़़ स्वाद. यों बाजार में नमकीन की वैरायटी की बहुत बड़ी रेंज है, हल्दीराम व बिकानो से लेकर कितने ब्राण्ड व कितनी किस्में, लेकिन नैनीताल की नमकीन के जो दीवाने हैं, उनके सामने यह हल्दीराम व बिकानों जैसे ब्राण्डों से भी टक्कर देती नजर आती है. कीमत की अगर बात करें तो इन ब्राण्डेड नमकीन से काफी किफायती भी.
कभी नैनीताल की छड़ियां मशहूर मानी जाती थी, यहां तक की नैनीताल की एक दुकान का नाम ही लाठी वाले सौज्यू की दुकान पड़ गया था, लेकिन आज बाजार में एक से एक फैन्सी व सुविधाजनक लाठियां बाजार में आ चुकी है.
कभी नैनीताल की मोमबत्तियां, सीनरी एवं लकड़ी के डेकोरेटिव शो पीस बिका करते थे, लेकिन आज इनकी आज ये भी चलन से दूर होती दिख रही हैं. लेकिन पिछले छः-सात दशकों में नैनीताल की नमकीन ने ग्राहकों में जो पैंठ बनायी है, उसके पीछे इसका लाजवाब जायका है, जो दूसरी जगह नमकीन में आपको नहीं मिल सकता.
मल्लीताल बाजार में राम सेवक सभा के भवन के पीछे से जो खड़ी गली उतरकर अण्डा मार्केट पर मिलती है, उसी गली में एक छोटी सी दुकान की शुरुआत आज से कोई 70 बरस पहले खीमानन्द बवाड़ी ने की थी. ठीक उसी बकरा हलवाई की दुकान के बराबर, जहां की मशहूर जलेबी भी अपना परचम लहरा चुकी है. नैनीताल में शेरवानी लौज के पन दा की कड़क चाय
दुकान में न कोई होर्डिग्स हैं, न ज्यादा चमक-धमक. एक ओर एक भाई नमकीन तल रहा है, तो दूसरा काउण्टर पर बैठकर ग्राहकों से निबट रहा है. कोई डिब्बा बन्द पैंकिंग नहीं. शीशे के शोकेस में रखी नमकीनें आप पसन्द कर लीजिए और जिस तरह की नमकीन आपको पसन्द है, मिलवा लीजिए.
प्रतिष्ठान का संचालन खीमानन्द के बाद उनके दोनों पुत्र अखिलेश बवाड़ी व संजय बवाड़ी करते हैं. अखिलेश बवाड़ी बताते हैं कि पिता जी ने बारह तरह की नमकीन बनाने से शुरुआत की थी, और अब हम लगभग 20 तरह की नमकीन बनाते हैं. लेकिन ज्यादातर लोगों की मांग मिक्स्ड नमकीन की ही रहती है. अखिलेश बताते हैं, कि इस नमकीन्स में किसी स्पेशल मसाले का इस्तेमाल हम नहीं करते. रात को काली मलका, मूंग अथवा चने की दाल को भिगाकर, सुबह पानी निखारकर तल लिया जाता है, लेकिन तलने के लिए आंच पर विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि जले नहीं. तलने के बाद स्वादानुसार इसमें नमक मसाले मिक्स किये जाते हैं. जबकि बेसन व मैदे से निर्मित होने वाली नमकीन में सारे मसाले, नमक आदि तलने से पूर्व ही मिला दिये जाते हैं.
यों आज नमकीन उद्योग की लोकप्रियता देखकर इन्हीं के ठीक सामने नन्दन सिंह व बीच की बाजार में जगदीश बवाड़ी द्वारा भी नमकीन का कारोबार किया जा रहा है, लेकिन खीमानन्द बवाड़ी का नमकीन प्रतिष्ठान शहर का पायनियर उद्यम कहा जा सकता है.
नमकीन में नमक होने से खुले में रखने में इसमें सीलन आना स्वाभाविक है, जिससे इसका जायका बिगड़ सकता है. सिंगल यूज पॉलिथीन’ की मुहिम का स्वागत करते हुए प्रतिष्ठान पहले की तरह अब हवा बन्द पॉलिथीन के बजाय कागज की थैलियों की पैकिंग में आपको नमकीन देंगे, इसलिए यदि आप नमकीन्स का स्वाद बरकरार रखना चाहें तो घर जाकर इसे ’एअर टाइट’ डिब्बों में बन्द कर रखें, वरना इसका कुरकुरापन व लजीज स्वाद जाता रहेगा.
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भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं
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