चम्पावत से ढकना गांव (चम्पावत-अल्मोड़ा पुराना पैदल मार्ग) तक तीन किमी. और ढकना से चम्पावत-मायावती पैदल मार्ग से लगभग चार किमी. की दूरी पर प्राचीन कुमाऊँ की स्थापत्यकला के एक अत्यंत उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में ‘एक हथिया नौला’ बना है. स्थानीय लोगों का विश्वास है कि इस नौले का निर्माण एक हाथ वाले शिल्पी ने किया था. एक अन्य मान्यता के अनुसार यह माना जाता है कि नौले का निर्माण करने वाले शिल्पी का हाथ राजा ने कटवा दिया था ताकि वह अन्यत्र ऐसी कलाकृति न कर सके. (Famous Ek Hathiya Naula Champawat)
इस अनूठी कलाकृति के रूप में विद्यमान नौले (बावड़ी) के रचना काल और निर्माणकर्ता दोनों के सम्बन्ध में इसके अतिरिक्त स्थानीय लोगों के पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. संभव है कभी यहाँ अच्छे संपन्न खेतिहरों की बस्तियां रही होंगी और यह किसी राजमार्ग के मध्य पड़ता होगा. अब तो यहाँ देवदार और बांज के वृक्षों का घना वन है. आबादी और पर्याप्त आवाजाही के बिना इतनी महत्वपूर्ण कलात्मक, साथ ही उपयोगी वस्तु के निर्माण का कोई औचित्य नहीं ठहरता है. (Famous Ek Hathiya Naula Champawat)
कला की दृष्टि से यह कुमाऊँ की बेजोड़ कलाकृतियों में से एक है. इसकी भित्तियों में चुनी गयी शिला-मूर्तियों के साथ राहगीरों और कौतुहलप्रिय ग्वालों ने काफी छेड़छाड़ की है. नितांत सन्नाटे वाले स्थान में होने के कारण इसकी रोकथाम संभव नहीं हो सकी. इसकी छत के कुछ पटाल (छत के पटाव में युक्त पत्थर) दुबारा चढ़ाए गए प्रतीत होते हैं. संभव है पहले कभी छत गिरी हो जिसकी बाद में मरम्मत कर दी गयी होगी.
भित्ति पर लगी मूर्तियों तथा उस पर उकेरे गए अभिप्रायों से प्रतीत होता है कि नौले का निर्माण बालेश्वर मंदिर से कुछ पहले किया गया होगा. इसके शकों के काल की कलाकृति होने में भी संदेह नहीं है क्योंकि औदीच्य वेशधारी सूर्य की प्रतिमा इस नौले की पर्मुख प्रतिमा है जबकि बालेश्वर के मंदिर में बूटधारी कोई प्रतिमा नहीं है. सभी मूर्तियों में पुरुषों को धोती पहने नंगे पैर दिखाया गया है. इस नौले की सभी स्त्री मूर्तियों में उनको लहंगानुमा कोई अधोवस्त्र धारण किये हुए दर्शाया गया है. कुछ प्रतिमाओं को छोड़कर अधिकांश पुरुष प्रायः घुटनों तक अधोवस्त्र पहने हैं. लोकजीवन के वैविध्यपूर्ण दृश्य नर्तक, वादक, गायक, फल ले जाती स्त्री, राजा, सेवक, सिपाही आदि अनेक प्रकार के समाज के महत्वपूर्ण अवसरों से सम्बंधित व्यक्तियों की आकृतियाँ बड़ी प्रभावोत्पादक हैं. अनेक प्रकार के चित्रणों के साथ-साथ कहीं पर स्त्री-पुरुषों के सहज आकर्षण के अभिप्राय भी अंकित किये गए हैं. स्त्री-पुरुषों के जूड़ों में केशसज्जा की विविधता, पर्वतीय महिलाओं की भांति पिछौड़ी (ओढ़नी) से सर ढंकना भी संभवतः उस समय प्रचालन में रहा होगा. उभरे हुए गाल, कुछ की चपटी नासिका विशेष प्रकार के अभिप्राय को व्यक्त करती है. भित्तिगत मूर्तियों में अधिक संख्या नृत्य एवं उल्लास की विविध मुद्राओं वाली है. (Famous Ek Hathiya Naula Champawat)
एक हथिया नौले के वास्तु-शिल्प पर पिथौरागढ़ से निकलने वाले ‘पर्वत पीयूष’ के अंक-24 में चंद्रमोहन वर्मा के लेख ‘कुमाऊँ का ऐतिहासिक एक हथिया नौला’ से निम्न उद्धरण पठनीय है:
कला, शिल्प एवं स्थापत्य का अनोखा उदाहरण है तलछंद योजना के अनुसार किसी देवालय के गर्भगृह में वर्गाकार सोपान युक्त छोटा नौला (जलाशय) एवं प्राग्रीव के सामान इसके सम्मुख दो स्तम्भों पर समतल वितानरहित बरामदा बनाया गया है. ऊर्ध्व-विन्यास में कुण्ड के चारों तरफ प्रस्तरों द्वारा दीवारें बनाई गयी हैं जिसके ऊपर गुम्बदाकार पंक्ति वितान बनाकर पद्मयुक्त पत्थर रख दिया गया है.
एक हथिया नौले की आंतरिक भित्तियों में वितान अनुपम रूप से अलंकृत हैं; गर्भगृह का जंघा 3 अलग-अलग पट्टियों में बांटा गया है. नीचे के उपान में ज्यामितीय अलंकरण किया गया है. इसके ऊपर दो सादी पट्टियों से विराम देकर मानव के विभिन्न अभिप्रायों को बनाकर सज्जा पट्टी का निर्माण किया गया है. इसके बाद दो सादी पट्टियाँ बनाकर तत्पश्चात डेढ़ मीटर ऊंची लघु देवालयों की साज पट्टिका बनाई गयी है.
लघु मंदिर से युक्त साज पट्टिका के ऊपर वितान का वर्गाकार आरम्भ हो जाता है.
जलाशय के प्रवेशद्वार के दोनों ओर रथिकाओं में गणेश की प्रतिमा स्थापित की गयी है. बरामदा भी लघु देवालयों से अलंकृत किया गया है. इसको तीन भागों में विभाजित कर विभिन्न मुद्राओं से सुसज्जित किया गया है. जलाशय पर बनाई गयी प्रतिमाओं व अलंकरणों के आधार पर इस एक हथिया नौले को चम्पावत के बालेश्वर मंदिर के समकालीन रखा जा सकता है. इसका निर्माण लगभग 13वीं-14वीं शताब्दी ई. में कलाकार द्वारा किया गया था.
(डॉ. राम सिंह के महत्वपूर्ण ग्रन्थ ‘राग-भाग काली कुमाऊँ’ से साभार उद्धृत.)
चम्पावत का बालेश्वर मंदिर: कमल जोशी के फोटो
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
2 Comments
Vijay Sagar Singh
Thanks for the great content sir. I will also share with my friend – Uttarakhandi
Vijay Sagar Singh
Nice information sir. Negi Uttarkhandi