28 सितंबर को फेसबुक ने एक प्रेस नोट जारी करके बताया कि उसके सरवर से पांच करोड़ लोगों की प्रोफाइल हैक हो चुकी हैं. हैक बोले तो चोरी. उन प्रोफाइल्स में जो कुछ भी था, वह सब चोरी हो गया. यह चोरी किसने की, फेसबुक का कहना है कि उसे इस बारे में कुछ भी नहीं पता. पांच करोड़ लोगों की प्रोफाइलों से क्या क्या चोरी गया, यह भी फेसबुक को नहीं पता. अलबत्ता फेसबुक को यह जरूर पता है कि इस बार जिन पांच करोड़ लोगों की फेसबुक प्रोफाइल्स चोरी हुई हैं, उसका असर फेसबुक पर मौजूद चार करोड़ दूसरे लोगों पर पड़ा है. इसके चलते फेसबुक ने कुल मिलाकर नौ करोड़ लोगों को उनके मोबाइल या कंप्यूटरों से लॉगआउट करा दिया है. सन 2016 में जब अमेरिका में चुनाव हो रहे थे, तब कैंब्रिज एनालिटिका ने फेसबुक पर मौजूद 8.7 करोड़ लोगों की प्रोफाइल का डाटा चुराया था. सन 2016 में हुई फेसबुक की पहली सबसे बड़ी डाटा चोरी के बाद दुनिया ने देखा कि कैसे अमेरिकी चुनाव में खेल हुआ और कैसे किसी के भी न चाहते हुए डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बन बैठे. अब अमेरिका में मध्यावधि चुनाव होने वाले हैं और भारत में राजस्थान मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव तो होने ही वाले हैं, कुछ ही महीनों में लोकसभा चुनावों के लिए वोटिंग होने वाली है. ऐसे वक्त में फेसबुक ने ऐलान किया है कि उसपर मौजूद नौ करोड़ लोगों का डाटा या तो चोरी हो चुका है, या फिर हैकर उनके डाटा तक पहुंच चुके हैं. हालांकि फेसबुक ने बताया है कि जिस रास्ते चोरी हुई है, उसने वह रास्ता बंद कर दिया है, लेकिन इंटरनेट की तकनीकी दुनिया में सभी जानते हैं कि यह रास्ता बंद नहीं हुआ है और अब इसे बंद कर पाना सिर्फ एक ही सूरत में संभव है. और वह है कि फेसबुक को ही बंद कर दिया जाए. दुनिया को अगर बचाना है, दुनिया को अगर साफ सुथरा रखना है, जैसी दुनिया बनाने का सपना हमारे बुजुर्गों ने देखा और हमारी उंगली थामकर हमें देखना सिखाया है, फेसबुक को बंद करने के अलावा और कोई भी दूसरा रास्ता नहीं है.
फेसबुक ने बताया है कि इस चोरी के लिए हैकरों ने फेसबुक प्रोफाइल पर मौजूद व्यू एज बटन का इस्तेमाल किया. इस बटन के जरिए फेसबुक यूजर अपने आपको बिलकुल वैसे देख सकते हैं, जैसा कि दूसरे उनकी प्रोफाइल पर उनको देखते हैं. पिछले साल यानी कि जुलाई 2017 में फेसबुक ने अपने वीडियो फीचर में कुछ बदलाव किए थे, जिसकी वजह से उसकी साइट में तीन तरह के कीड़े यानी कि बग लग गए. इन्हीं कीड़ों ने फेसबुक की सीक्योरिटी को कुतरकर हैकरों के लिए वह रास्ता तैयार किया, जिसके जरिए फेसबुक की नौ करोड़ प्रोफाइलों का डाटा चोरी हो गया.
अपने यहां अक्सर लोग यह पूछते हैं कि डाटा चोरी हुआ तो उनपर क्या फर्क पड़ेगा. इसका बड़ा ही सीधा जवाब है कि पहले यह जान लिया जाए कि फेसबुक के पास हमारा ऐसा कौन सा डाटा है जिसे पाने के लिए दुनिया भर के हैकर, तानाशाह और चुनाव में जीतने के लिए साम दाम दंड भेद अपनाने वाले नेता मरे जा रहे हैं. इसका बड़ा आसान तरीका है. अपने फेसबुक प्रोफाइल की सेटिंग्स में जाइए. वहां आपको डाउनलोड योर इन्फॉरमेशन नाम से एक बटन दिखेगा. यहां पर क्लिक करके आप अपना सारा फेसबुक डाटा डाउनलोड कर सकते हैं. इसे डाउनलोड करने के बाद जब आप इस फाइल को खोलेंगे तो पाएंगे कि यहां पर आपके बारे में अबाउट अस है, आप कब कहां गए, उसकी अलग फाइल है. आपने कब और कहां कौन सी तस्वीर फेसबुक पर अपलोड की, उसकी अलग फाइल है. आपने कब कौन सी वीडियो अपलोड की, उसकी अलग फाइल है. आपने कब कहां और क्या कमेंट किया, उसकी अलग फाइल मिलेगी. आपके दोस्तों की अलग फाइल मिलेगी तो आपके फॉलोवस और आप जिसे फॉलो करते हैं, उसकी अलग फाइल मिलेगी. लेकिन जो सबसे संवेदनशील फाइलें मिलेंगी, वह हैं आपकी चैटिंग का पूरा डाटा और आपने फेसबुक पर जो सर्च किया है, उसका पूरा डाटा. चैटिंग और सर्च की भी आपको फाइलें वहां मिल जाएंगी. चैटिंग में हम सभी अक्सर बेहद संवेदनशील जानकारियां बांटते हैं और इस विश्वास के साथ कि कम से कम इसे कोई और नहीं देख रहा है. सिर्फ वही देख रहा है, जिससे बात की जा रही है. इस चैटिंग में हम सभी ने अक्सर अपने बैंक अकाउंट, पासवर्ड, पैन कार्ड, आधार कार्ड और अपने बारे में लगभग सारी संवेदनशील जानकारियां अपने किसी ऐसे जाननेवाले को दे रखी हैं, जिसपर कि हमें पूरा भरोसा है. यह ऐसी जानकारियां होती हैं, जो किसी क्रिमिनल टाइप के आदमी के हाथ लग जाए तो वह हमें कंगाल बना देने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगा. हमारी दूसरी सबसे संवेदनशील जानकारी है कि हमने सर्च क्या किया? हमारे दिमाग में जो सवालात आते हैं, वह हम सर्च करते हैं. हम जो कुछ भी जानना चाहते हैं, हम वह सर्च करते हैं. हमारे दिमाग में जो कुछ भी चल रहा है, वह इन्हीं सर्च से सामने आता है.
अब हमारे दिमाग में क्या चल रहा है, इसका सीधा फायदा दो लोग उठाते हैं. पहला बिजनेसमैन यानी कि धंधा पानी करने वाले. अगर हमारे दिमाग में चलती चीजें उनके प्रोडक्ट से मेल खाती हैं तो वह अपना प्रोडक्ट हमें बेचने पहुंच जाते हैं. दूसरे हैं हमारी राजनीतिक पार्टियां. हमारे दिमाग की थाह लेकर ही वह हमारी भावनाओं से खेलती आई हैं. फेसबुक ने इस खेल को और भी ज्यादा आसान बना दिया है. यही वजह है कि फेसबुक के आने के बाद से दुनिया भर की राजनीति में गंदगी और भी बढ़ गई है. इस गंदगी के चलते दुनिया भर के उन देशों में, जहां जनता का राज है, यानी कि जहां लोकतंत्र है, वहां के लोकतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर बहुत ही बड़ा खतरा मंडरा रहा है. वक्त वक्त पर फेसबुक के जरिए इसे भारी चोट भी पहुंचाई गई है. अमेरिका से लेकर म्यांमार और यूरोपियन यूनियन से लेकर मिडल ईस्ट तक हमने इसी फेसबुक के जरिए लोकतंत्र को घायल होकर कराहते देखा है.
इस साल यानी कि 2018 के सितंबर में फेसबुक ने जिन पांच करोड़ प्रोफाइलों का डाटा चोरी होने की बात बताई है और जिन दूसरी चार करोड़ प्रोफाइलों पर उसका असर होने की बात बताई है, अगर फेसबुक का पिछला रिकॉर्ड देखें तो पूरी संभावना है कि यह चोरी खुद फेसबुक ने कराई है. कैंब्रिज एनालिटिका में जब फेसबुक पकड़ा गया तो उसका मालिक मार्क जकरबर्ग पहले तो यह मानने के लिए तैयार ही नहीं हो रहा था कि ऐसी कोई चोरी हुई है. अमेरिकी संसद ने जब उसे हाजिर होने का समन भेजा, तब भी वह हाजिरी से बचने के लिए बहाने बनाता रहा. जब अमेरिकी संसद ने अपने तेवर कड़े किए, जब कहीं जाकर वह अमेरिकी संसद के सामने हाजिर हुआ. अमेरिकी संसद की पूरी कार्यवाही मैंने इसी चैनल पर अपलोड कर रखी है. उसे देखें तो आपकी आंख खुल जाएगी कि फेसबुक ने दुनिया को जोड़ने के नाम पर कैसे दुनिया को तोड़ताड़कर अलग थलग कर दिया है. भाई भाई में दुश्मनी पैदा करा दी है, पति पत्नी में फेसबुक के नाम पर अलगाव पैदा करा दिया है. लोग हत्याओं का सीधा प्रसारण फेसबुक पर कर रहे हैं और फेसबुक के अंदर बैठे लोग अपनी टीम को ट्रेनिंग देते पकड़े गए हैं कि इन हत्याओं का उल्टा सीधा या कैसा भी प्रसारण हो, उसे फेसबुक से नहीं हटाना है. यही हाल फेसबुक का यूरोपियन यूनियन में चले मुकदमे में हुआ है, जहां वह आईएसआईएस के लोगों को आगे बढ़ाता पकड़ा गया है. इंग्लैंड ने तो मार्क जकरबर्ग के ईंग्लैंड में घुसने पर तब तक के लिए पाबंदी लगा दी है, जब तक कि वह वहां की संसद के सामने हाजिर नहीं होता. आज की तारीख में मार्क जकरबर्ग इंग्लैंड से बिलकुल वैसे ही तड़ीपार कर दिया गया है, जैसे अपने यहां कभी अमित शाह को गुजरात से तड़ीपार किया गया था
फेसबुक ने इस बार की यह चोरी तो घोषित कर दी, लेकिन जो चोरी वह चौबीसों घंटे कर रहा है, उसे वह छुपाने की पूरी कोशिश करता रहा है. जिस चोरी को वह छुपाने की कोशिश करता रहा है, वह कैंब्रिज एनालिटिका और अब की हुई चोरी से भी कहीं बड़ी चोरी है. मैंने पहले ही बताया कि फेसबुक हमारा दिमाग पढ़ता है. हम पर्सनली क्या बातें करते हैं, हर एक चीज वह पढ़ता है. ऐसा वह सिर्फ फेसबुक पर ही नहीं करता, बल्कि व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर भी करता है. यह सारी जानकारियां वह इन तीनों माध्यमों यानी कि व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर विज्ञापन देने वालों को बेचता है. अमेरिकी संसद में यह सवाल उठा तो मार्क जकरबर्ग ने जवाब दिया कि वह यह जानकारियां सीधे सीधे नहीं बेचता. बल्कि लोग अपनी पसंद उसे बताते हैं, जिसके हिसाब से वह इन जानकारियों में उनकी पसंद की चीजें खंगालता है और सीधे वहीं पर उनका विज्ञापन दिखाता है, जहां लोग उसे देखना चाहते हैं. लेकिन जो लोग फेसबुक पर विज्ञापन का काम करते हैं, वह जानते हैं कि मामला सिर्फ इतना ही नहीं है. विज्ञापन देने वालों को फेसबुक इसके अलावा भी ऐसा बहुत कुछ बताता है जो कि पूरी तरह से गैरकानूनी है. अमेरिकी संसद ने फेसबुक की इस हरकत पर कड़ी नाराजगी भी जताई है, इसके बावजूद उसका खुला खेल फर्रुखाबादी चालू है.
गिज्मोडो डॉट कॉम ने खुलासा किया है कि फेसबुक विज्ञापनों पर रिसर्च करने वालों ने पाया है कि फेसबुक हमारा बेहद संवेदनशील डाटा ही नहीं बेच रहा है, बल्कि वह हमारे मोबाइल नंबरों के साथ-साथ हमारे जानने वालों के भी मोबाइल नंबर विज्ञापन देने वालों को बेच रहा है. इसके अलावा नंबरों से ही जुड़ा एक और खुलासा किया है. अक्सर लोग अपना मोबाइल नंबर बदलते रहते हैं. अपने यहां जिस तरह से कनेक्टिविटी की प्रॉब्लम है, लोगों की मजबूरी बन जाती है कि वह किसी और कंपनी का नंबर लेकर अपना काम चलाएं. दुनिया के दूसरे देशों में भी कनेक्टिविटी की प्रॉब्लम खूब है. ऐसे देशों में भारत, पाकिस्तान, कंबोडिया, श्रीलंका, पोलैंड, इजरायल, लेबनान सहित थोड़ा बहुत अमेरिका भी शामिल है. इन सभी देशों में इस प्रॉब्लम के चलते लोगों को अपना मोबाइल नंबर बदलना पड़ता है, वरना वह बात ही नहीं कर पाते हैं. अब सवाल उठता है कि जब हम नंबर बदलते हैं तो हमारे पुराने नंबर का क्या होता है? जाहिर सी बात है कि कंपनियां वह नंबर किसी दूसरे को बेच देती हैं. अब जैसे मैंने अपना मोबाइल नंबर बदला और फेसबुक पर स्टेटस अपडेट किया कि अब मेरा ये वाला पुराना नंबर नहीं है बल्कि ये मेरा नया नंबर है. वहीं से फेसबुक पुराना वाला नंबर ट्रेस कर लेता है और विज्ञापन देने वाले चुनिंदा लोगों को बता देता है कि मेरा पुराना नंबर किसी नए आदमी के पास है. नया आदमी अपना नया नंबर अपनी फेसबुक प्रोफाइल से कनेक्ट करता है और फेसबुक उसकी सारी रुचियां जानकर विज्ञापन देने वाली उन्हीं चुनिंदा कंपिनयों को बता देता है. इस तरह से जो कोई भी नया नंबर लेता है, उसके नंबर पर तरह तरह की स्पैमिंग शुरू हो जाती है.
कुल मिलाकर बात इतनी है कि फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर आप चाहे जो करें, भले ही वह सबके सामने हो या इनबॉक्स की चैटिंग हो, फेसबुक वह सबकुछ रिकॉर्ड कर रहा है. यह सारी रिकॉर्डिंग वह विज्ञापन देने वालों को बेच रहा है. काफी कड़ाई से हुई पूछताछ में फेसबुक ने अमेरिकी संसद के सामने यह बात मानी है, लेकिन साजिशन यह बात उसने दुनिया के सामने नहीं आने दी है.
दिल्ली में रहने वाले राहुल पाण्डेय का विट और सहज हास्यबोध से भरा विचारोत्तेजक लेखन सोशल मीडिया पर हलचल पैदा करता रहा है. नवभारत टाइम्स के लिए कार्य करते हैं. राहुल काफल ट्री के लिए नियमित लिखेंगे.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें