21वीं सदी में एक तरफ भारत जहां चांद और मंगल ग्रह पर इंसानी बस्तियां बसाने की तैयारी कर रहा है वहीं दूसरी तरफ ज़मीनी हकीकत यह है कि इसी भारतीय समाज में महिलाओं के साथ अन्याय और अत्याचार बदस्तूर जारी है. दुर्भाग्य यह है कि महिलाओं के साथ शारीरिक और मानसिक शोषण पढ़े लिखे सभ्य समाज में सबसे अधिक देखने को मिल रहे हैं. भ्रूण हत्या से लेकर छोटी बच्चियों के साथ दुर्व्यवहार की घटना गांव से लेकर दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों तक रोज़ाना हो रहे हैं. हालांकि महिलाओं के साथ होने वाले किसी भी प्रकार के अत्याचार को रोकने के लिए सरकार ने कानून सख़्त कर दिए हैं, वहीं दूसरी तरह महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ जैसी कामयाब योजनाएं भी चलाई जा रही हैं, इसके बावजूद समाज की दृष्टिकोण में बहुत ज़्यादा बदलाव देखने को नहीं मिल रहे हैं.
हालांकि इसी भारत में जम्मू-कश्मीर का लेह एक ऐसा क्षेत्र भी है जहां महिलाओं को देश के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक आज़ादी है. जहां लड़कियों और लड़कों के बीच कोई भेदभाव नहीं है. देश के बाकी हिस्सों की तुलना में लेह में लड़के और लड़कियों दोनों के लिए समान अवसर उपलब्ध हैं. यह अवसर उन्हें जन्म से ही प्रदान किया जाता है. लालन-पालन से लेकर शिक्षा और सामजिक प्रतिष्ठा के मामले में भी लेह समाज में महिलाओं को समान अवसर प्रदान किये जाते हैं. घरेलू मामलों से लेकर पंचायत स्तर और नौकरियों तक में उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त हैं.
लेह में महिलाओं की शिक्षा और उनके शैक्षणिक स्तर के बारे में बताते हुए राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर थाइलिस लोटस कहती हैं कि “भारत के अन्य जिलों की तुलना में लेह में महिलाओं की शिक्षा की व्यवस्था बहुत बेहतर है. यहां की समाज में लड़कों और लड़कियों के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाता है. यही वजह है कि यहां की महिलाएं हर क्षेत्र में और यहां तक कि शीर्ष पदों पर भी तैनात हैं. लेह की कई लड़कियां देश के अलग-अलग क्षेत्रों में न केवल कामयाबी की इबारतें लिख रही हैं बल्कि भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा भी प्राप्त कर रही हैं. वे पुरुषों से किसी प्रकार पीछे नहीं हैं. कुछ क्षेत्रों में वे उनसे बेहतर कर रही हैं. इस उपलब्धि के पीछे बालिकाओं के प्रति लेह समाज का निष्पक्ष दृष्टिकोण है. लेह में महिलाओं की शिक्षा का भविष्य बेहतर रहा है और आने वाली पीढ़ियों के लिए यह एक अच्छा अवसर है.”
फ़ोब्रंग गाँव की रहने वाली 22 वर्षीय डिचेन आंग्मो स्थानीय एलबर जॉर्डन मेमोरियल कॉलेज की छात्रा है. महिला शिक्षा की महत्ता पूछने पर वह पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती है कि “शिक्षा हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है. क्योंकि आजकल बिना उचित शिक्षा के अपना जीवन बिताना मुश्किल है. लेह समाज में लड़कियों को लड़कों के समान शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है. मैं बहुत खुश हूं कि मुझे लेह में अपने कॉलेज में पढ़ने की सभी सुविधाएं प्राप्त हैं.” इसी कॉलेज में पढ़ने वाली 19 वर्षीय युवा छात्रा फुंत्र्रोग पाल्मो के अनुसार लेह समाज की शिक्षा प्रणाली में लड़के और लड़कियों के लिए समान अवसर हैं. यहां बालिका शिक्षा को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है. हर लड़की को स्कूल जाने और एक अच्छी शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति है ताकि वह पुरुषों के साथ सभी क्षेत्रों में समान भागीदारी निभा सके. यहां तक कि लड़कियों को लड़कों की तरह खेल प्रतियोगिताओं में भी समान रूप से भाग लेने के अवसर प्रदान किये जाते हैं. लेह की कई प्रसिद्ध महिलाएं हैं, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया है. पर्वतारोहण, मैराथन, तीरंदाज़ी और आइस हॉकी जैसे खेलों में लेह की महिलाओं ने अंतर्राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाये हैं. वहीं दूसरी ओर देश के प्रतिष्ठित पदों पर लेह की महिलाएं सफलतापूर्वक अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभा रही हैं.
लेह सौभाग्यशाली है कि यहां की कई महिलाएँ अपने-अपने क्षेत्रों में उपलब्धि हासिल कर इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं. ग्यामों दीक्षित वांग्मों 1977-80 में छठी लोकसभा में लद्दाख से निर्वाचित पहली महिला सांसद हैं. प्रो ताज़िन जोल्दन जम्मू कश्मीर के शिक्षा विभाग में पिछले 35 वर्षों से कार्यरत हैं. वह लद्दाख की पहली महिला लेक्चरर और कॉलेज की प्रिंसिपल हैं. 26 जनवरी 2019 को जम्मू कश्मीर के राज्यपाल द्वारा सम्मानित 13 रोल मॉडलों में एक रिगज़िन आंग्मो सीआरपीएफ अधिकारी हैं. वह 1994 में कुआलालंपुर अंतर्राष्ट्रीय मैराथन तथा 1995 के काठमांडू और बैंकॉक अंतरराष्ट्रीय मैराथन की स्वर्ण पदक विजेता रह चुकी हैं. डॉ शेरिंग लांडोल लद्दाख की पहली महिला स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं. भारतीय चिकित्सा में उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए वर्ष 2006 में उन्हें नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है.
लेह के सुदूर चाछूत गांव के एक साधारण किसान की बेटी ओवेसा इक़बाल 2011 में अखिल भारतीय सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली जम्मू कश्मीर की पहली मुस्लिम महिला हैं. उनका चयन विदेश सेवा के लिए किया गया है. 2009 में उन्होंने कश्मीर प्रशासनिक सेवा परीक्षा भी उत्तीर्ण किया था. वर्त्तमान में वह नई दिल्ली स्थित विदेश मंत्रालय में अवर सचिव के पद पर नियुक्त हैं. वहीं थिन्लस चोरोल लद्दाख की पहली पेशेवर प्रशिक्षित महिला ट्रैकिंग गाइड बन कर इतिहास रच चुकी हैं. वह लद्दाखी महिलाओं की ट्रैवल एजेंसी का सफलतापूर्वक संचालन भी कर रही हैं. 2007 में चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क की ओर से संजय घोष लद्दाख महिला लेखक पुरस्कार से सम्मानित थिन्लस को ‘वूमेन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ सहित ग्रामीण उद्यमिता पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.
यह लेह, लद्दाख की उन कई सफल महिलाओं के उदाहरण मात्र हैं जिन्होंने बड़ी बड़ी ऊंचाइयां प्राप्त कर महिलाओं के प्रति लद्दाखी समाज के वृहत दृष्टिकोण को उजागर किया है. लेह की एक साधारण लड़की के रूप में, मैं लड़कियों को उनकी पसंद का क्षेत्र चुनने, अवसर और सुविधाएं प्रदान करने के लिए लद्दाखी समाज के सहयोग और दृष्टिकोण के लिए खुश हूँ. यहां लड़कियों के लिए कोई क्षेत्र प्रतिबंधित नहीं है बल्कि हमेशा बेहतर करने और अधिक से अधिक ऊंचाइयों को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. यह लद्दाखी लड़कियों और महिलाओं के लिए निश्चित रूप से अच्छा समय है और मुझे विश्वास है कि यही दृष्टिकोण आने वाली पीढ़ी में भी जारी रहेगी. अब समय आ गया है कि देश के अन्य क्षेत्रों का समाज भी महिलाओं के प्रति इस सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाए. बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा उस वक़्त तक सफल नहीं हो सकता है जबतक समाज लड़का और लड़की के बीच भेद को मिटा नहीं देता है. लेह समाज इस मंत्र को अपनाता रहा है अब देश के अन्य क्षेत्रों की बारी है. (साभार: चरखा फीचर्स)
लेह, लद्दाख में रहने वाली सेवांग लामो का यह लेख हमें चरखा फीचर्स से प्राप्त हुआ है
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