‘जय हिंद’ का नारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस या किसी अन्य ने नहीं बल्कि अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के जैंती निवासी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सिंह धौनी जी ने नेता जी से भी काफी पहले 1920-21 में दिया था. वे तभी से अपनी सामान्य भेंट-मुलाकात, बोलचाल तथा पत्रों में ‘जय हिंद’ का प्रयोग अभिवादन के तौर पर करने लगे थे.
(Ram Singh Dhauni Jai Hind)
भ्रांतिवश तथा जानकारी के अभाव में प्राय: यह कहा जाता कि ‘जय हिंद’ का नारा नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने दिया था. कुछ लोग यह भी प्रचारित करते हैं कि यह जोशीला नारा नेता जी को आबिद हुसैन मकरानी ने सुझाया था. जबकि यह दोनों बातें ऐतिहासिक रूप से गलत हैं.
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मन नौ-सेना में जूनियर अफसर रहे और तिरुवनंतपुरम में जन्मे चेम्बाक रमण पिल्लई की मुलाकात 1933 में वियना (आस्ट्रिया) में नेताजी से हुई, तब पिल्लई ने ‘जय हिंद’ से नेताजी का अभिवादन किया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी द्वारा बंदी बनाये गये ब्रिटिश सैनिकों में शामिल भारतीय सैनिकों को 1941 में नेताजी ने सम्बोधित किया व अंग्रेजों का पक्ष छोड़ आजाद हिंद फौज में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया. जर्मनी में रह रहे भारतीय विद्यार्थी आबिद हुसैन पढ़ाई छोड़ नेताजी के सेक्रेट्री बन गये. बाद में हुसैन के सुझाव पर ही ‘जय हिंद’ को आजाद हिंद फौज का अभिवादन का शब्द बनाया गया.
(Ram Singh Dhauni Jai Hind)
उत्तराखंड में कुमाऊं मंडल के अग्रणी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामसिंह धौनी के जन्मस्थान व अल्मोड़ा जिले के मध्यवर्ती क्षेत्र में लोग आज भी सामान्यत: ‘जय हिंद’ से ही परस्पर अभिवादन करते हैं, जिसका उदाहरण शायद देश में अन्यत्र नहीं मिलेगा. इसका एकमात्र कारण यहां के आमजन में देश की आजादी के आंदोलन के समय बहुत गहराई तक घर कर गई सामाजिक चेतना ही थी. जो आज भी उन्हें अनुप्राणित करती है. राष्ट्रवाद की इसी भावना से ओत-प्रोत उत्तराखंडवासियों ने वर्षों तक चले पृथक राज्य आंदोलन में एक रुपये की भी सरकारी सम्पत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया. यह एक वैश्विक रिकॉर्ड है.
संभवत: उसी माटी में जन्मे राम सिंह धौनी जी के भीतर ब्रिटिश उत्पीड़न से देश को आजाद कराने की जो उद्दाम ललक थी, ‘जय हिंद’ उसी से उद्भूत हुआ और नेता जी के प्रभाव से राष्ट्रीय फलक पर छा गया.
(Ram Singh Dhauni Jai Hind)
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
यह लेख काफल ट्री की इमेल आईडी पर श्यामसिंह रावत द्वारा भेजा गया है. 73 वर्षीय श्यामसिंह रावत अपने परिचय के विषय में लिखते हैं : लिखना आता ही नहीं क्योंकि ‘मसि कागद छुयो नहीं, कलम गह्यो नहिं हाथ.’ मस्ती की पाठशाला में ऐसा पाठ पढ़ा कि खुद का परिचय जानने के चक्कर में यायावरी जो अपनाई तो इस में ही जीवन के 73 बसंत न जाने कब और कैसे निकल गये पता ही नहीं चला. आज भी ‘अपनी’ तलाश जारी है.
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
-अशोक पाण्डे पहाड़ों में आग धधकी हुई है. अकेले कुमाऊँ में पांच सौ से अधिक…
हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…
जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी ‘नीचे के कपड़े’ उसका नाम…
एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…
https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…
-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…
View Comments
लेख में लेखक का नाम नहीं दिया है।