ललित मोहन रयाल

बयालीस साल पहले इसी हफ्ते रिलीज हुई थी ‘डॉन’

वर्ष 1978 का साल, एक महीने में अमिताभ बच्चन की पाँच फिल्में रिलीज हुईं, जिनमें से तीन डॉन, त्रिशूल और मुकद्दर का सिकंदर सुपरहिट साबित हुईं. अब डॉन की थोड़ी सी चर्चा: Don Movie Memoir Lalit Mohan Rayal

फिल्म डॉन की कहानी बहुत कसी हुई थी. रिलीज के बाद उसके कई डायलॉग लोगों की जुबान पर चढ़े. एक बानगी-

-डॉन का इंतजार तो 11 मुल्कों की पुलिस कर रही है … लेकिन डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.

-ये तुम जानती हो कि ये रिवॉल्वर खाली है  … मैं जानता हूं कि ये रिवॉल्वर खाली है … लेकिन पुलिस नहीं जानती कि ये रिवॉल्वर खाली है.

-इंसान ये जान सकता है कि चांद और सूरज में क्या छिपा है … लेकिन ये कभी नहीं जान सकता कि एक लड़की के दिल में क्या छिपा है

-डॉन जख्मी है तो क्या … फिर भी डॉन है.

-इंसान अपनी बुरी आदतें छोड़ सकता है … लेकिन इंसान की बदनामी हमेशा उसके साथ रहती है.

-नीचे तुम्हारी आंटी बहुत से अंकल्स को लेकर आई हैं.

-मुझे जंगली बिल्लियां पसंद हैं.

-इस पिस्तौल की गोली से तुम्हारे माथे पर एक तीसरी आंख बना दूंगा.

-डॉन हमारे पेशे में दोस्त कम और दुश्मन ज्यादा होते हैं.

-गिरफ्तार होने की आदत मुझे बिलकुल नहीं है.

-कोई गोली न चलाए डॉन मुझे जिंदा चाहिए.

शुरू में इस कहानी को वैसे कद्रदान नहीं मिले. कई लोग ने इसे नकार चुके थे. आखिर में प्रोडूस्यर नरीमन ने हिम्मत दिखाई. फिल्म को अभिनय और गायन की तीन-तीन श्रेणियों में फिल्मफेयर अवार्ड्स मिले. रिलीज से पहले नरीमन का देहांत हो जाने के कारण अमिताभ बच्चन ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अवार्ड उनकी पत्नी को सौंप दिया. फिल्म में खूब इंप्रोवाइजेशन हुए-

ऑल टाइम सुपरहिट ‘खईके पान बनारस वाला…’ मूल रूप से देवानंद अभिनीत ‘बनारसी बाबू’ के लिए लिखा गया था. मनोज कुमार की सलाह थी कि थ्रिल, सस्पेंस से भरपूर यह कहानी कुछ ज्यादा ही कसी हुई है. इसमें एक आइटम सॉन्ग शामिल हो जाए तो फिल्म का नजारा बदल जाएगा. उनकी सलाह पर अमल हुआ. कहानी में यूपी के भैया लोगों के तबेले में होली के माहौल में भंग घुटने का दृश्य शामिल किया गया. लक्ष्मी-प्यारे फेम के ‘प्यारे लाल# ने पुरबिया धुन पर जोरदार ढोलक बजाई. Don Movie Memoir Lalit Mohan Rayal

‘खई के पान बनारस वाला … में अमिताभ बच्चन पूरब के खास अंदाज में सिर पर कपड़ा बाँधे एक खास लय में नाचते हैं. दरअसल उन दिनों अमिताभ बच्चन के पैर में फ्रैक्चर था. नाचने में उन्हें पैरों में तकलीफ हो रही थी. गौर से देखें तो वे पंजे उचकाकर एक खास अंदाज में नाचते हैं. तकलीफ में उनका नाचना इतना कुदरती लगा कि वह ठेठ गंगा किनारे वाला ट्रेडमार्क स्टाइल बनकर रह गया.

विजय के किरदार के लिए अमिताभ बच्चन सेट पर बीस-पच्चीस जोड़ा पान चबाते थे. मेकअप में वो बात नहीं आ पा रही थी, तो उन्होंने कुदरती बनारसी दिखने के लिए जमकर पान खाया.

फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले प्राण के पैर में फ्रैक्चर था. शूटिंग शुरू हो गई, लेकिन उनका पैर ठीक नहीं हुआ. तारीख ज्यादा मुल्तवी करना मुमकिन नहीं था. नतीजतन मूल कथा में बदलाव करते हुए जेजे के किरदार को फिजिकली चैलेंज्ड दिखाया गया. Don Movie Memoir Lalit Mohan Rayal

फिल्म प्रोड्यूसर के आकस्मिक देहावसान से सितारों ने फीस लेने से इनकार कर दिया. इसके बदले में उन्होंने शेयर लिए. हालांकि फिल्म को आशातीत सफलता मिली. उस समय प्राण की फीस अमिताभ बच्चन से बढ़कर होती थी.

ललित मोहन रयाल

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उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

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