चोरी करना बुरी बात है पर यह बात ककड़ी चोरी पर भी लागू हो, कहा नहीं जा सकता. इसलिये तो हमारे पहाड़ में कहा जाता है, ककड़ी चोरी करने वाले को किसी भी प्रकार की गालियां नहीं लगती हैं. पहाड़ में स्कूल पढ़ने वाले दो यारों के किस्सों में ककड़ी चोरी का किस्सा न हुआ तो यारी ही क्या हुई. क्या लड़के क्या लड़कियां, सिलबट्टे में पिसे तेज मिर्च वाले हरे नमक और ककड़ी के बिना एक पूरी पीढ़ी यादें अब भी अधूरी ही मानी जाती हैं. वैसे एक समय स्कूल जाते लड़के-लड़कियों से अपनी ककड़ी बचा पाना अपने आप में ही एक चुनौती हुआ करता था.
(Cucumber in Uttarakhand)
स्कूली जाने वाले लड़के लड़कियां ककड़ी चोरी करने को एक सीक्रेट मिशन की तरह अंजाम देते थे. गांव में ककड़ी तो खूब लगती थी पर खाने वालों का नाम कम ही लोगों को पता होता था. इस सीक्रेट मिशन में धोखे की संभावना भी खूब होती पर हमारे बुजुर्ग इसका एक ख़ुफ़िया इलाज भी दे गये. ककड़ी के उपरी हिस्से को काटकर उसे ककड़ी में रगड़कर उसका कड़वापन दूर किया जाता है उसके बाद कटे हुये हिस्से को पेट में चिपकाया जाता है जिसके पेट में ककड़ी का कटा हुआ उपरी हिस्सा चिपक जाता है वही ककड़ी चोर है.
अगर ठेठ पहाड़ियों के अनुभव के आधार पर ककड़ी चोरी के लिये एक गाइडेंस बुक बनाई जाये तो कुछ नियम तो कायदे से पूरे पहाड़ में जरूर लागू होंगे. जैसे कि ककड़ी चोरी के समय घर के बड़े बुजुर्ग की कमीज या कुर्ता पहन कर जायें. इसके अपने कुछ फायदे हैं. फैले और बड़े होने की वजह से इनके भीतर ककड़ी आसानी से छुप जाती है और सिन्ना लगने से भी यह बचाव करता है. बुजुर्गों के कपड़े होने से पहचान अलग छुप जाती है.
(Cucumber in Uttarakhand)
दूसरा कायदा, ककड़ी तोड़ने के लिये तेजधार वाली ब्लेड या छोटी चाकू ले जायें, घुमाकर ककड़ी तोड़ने में समय लगता है जहां समय लगता है वहां पकड़े जाने की संभावना भी दोगुनी हो जाती है. और अंतिम कि आदमी को लौकी और ककड़ी की पहचान होना जरुरी है क्योंकि अक्सर रात के अंधेरे में किये जाने वाले इस पूरे मिशन के फेल होने में समय नहीं लगता है.
(Cucumber in Uttarakhand)
ककड़ी के असल स्वाद के लिये इसे भी पढ़िये: ककड़ी खाने का असल तरीका पहाड़ियों के पास ही हुआ
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