कला साहित्य

लोककथा : जिद्दी औरत

एक गांव में एक औरत रहती थी. वह एक विरोधी स्वभाव व बहुत ईर्ष्यालु प्रवृत्ति की थी. कोई उसे कुछ भी सलाह दे वह उसका ठीक उल्टा करती. भले ही उसे कितना भी समझाया जाए, वह कितना ही नुकसान उठाये, परन्तु वह किसी की बात नहीं मानती थी. उसका पति उसकी इस प्रकार की सोच से बहुत परेशान था. वह भी कई जतन कर चुका था, परन्तु वह थी कि कभी नहीं मानी, जिससे उसके परिवार पर कुप्रभाव पड़ रहा था. वह भविष्य में कभी मान जाएगी यह उम्मीद भी बिल्कुल नहीं थी. पति कहता पूरब दिशा में जाना है तो वह पश्चिम को जाती. पति कहता मुझे भूख लगी है खाना बना दो तो वह उस दिन कुछ न कुछ बहाना बनाकर टाल देती या फिर कभी उस रोज घर में खाना ही नहीं बनता. उसके ससुराल के लोग आ जाते तो वह किसी न किसी प्रकार उन्हें चलता कर देती. इस सब आदतों से तंग आकर पति ने आखिर उससे छुटकारा पाने की ही सोच ली. (Folklore Ziddi Aurat)

बसंत पंचमी आयी तो गांव-गांव से लोग गंगा स्नान के लिए जाने लगे. पति ने अपनी पत्नी से कहा कि ‘…देखो तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती है, जाड़ों के मौसम में तो गंगा जी का पानी बहुत ठण्डा होता है, इसीलिए तुम नहाने मत जाना. वैसे मैं भी नहीं जा रहा हूँ…’ परन्तु उल्टी सोच वाली औरत को यह बात बहुत बुरी लगी. उसने अपने पति को डांटा. ‘अरे! तुम्हें नहीं जाना है तो मत जाओ. तुम तो एक डरपोक और आलसी किसम के आदमी हो. मैं तो नहाने जरूर जाऊंगी.’  इस पर पति ने उसे कहा कि ‘जाएगी तो खाली हाथ ही जाना, यह न हो कि कहीं तुम गुस्से में सिलबट्टे को उठाकर ही चल दो, बहुत भारी है वह.’ पत्नी ने फिर झिड़क दिया. ‘मैं खाली हाथ क्यों जाऊंगी? चाहे कितना ही भारी क्यों ना हो. मैं तो सिलबट्टे को लेकर ही जाऊंगी… तुम्हारे लिये तो नहीं ही छोड़ूंगी.’ मन ही मन खुश होते हुए पति ने आखिरी तीर छोड़ा. ‘अरे भाग्यवान! नहीं मानती हो और जाना ही चाहती हो तो जरूर जाओ परन्तु तुम किनारे पर ही नहाना. कहीं तुम जोश में आकर बीच में ना चले जाओ. नदी बहुत गहरी है…’ परन्तु इसके बाद भी इस विपरीत बुद्धि वाली औरत समझ ही नहीं पायी कि उसका पति क्यों ऐसा कह रहा है. वह तो उल्टा चलने वाली हुई. कभी उसने सोचा ही नहीं कि सही क्या है गलत क्या है. पति की इस बात को सुनकर वह फिर फुंकार उठी, ‘तुम तो जन्मजात डरपोक हो. किनारे पर नहाना भी कोई नहाना होता है. मैं तो बीच नदी में ही डुबकी लगाऊंगी और सिलबट्टे को भी साथ ही ले जाऊंगी.’

अंततः वही हुआ जो ऐसी विपरीत बुद्धि वाली औरतों के साथ होता है और जो उसका पति चाहता था. वह औरत सिलबट्टे के साथ नदी के बीच पानी में गहरे उतर गयी और वहीं जल समाधि ले ली.

देहरादून में रहने वाले शूरवीर रावत मूल रूप से प्रतापनगर, टिहरी गढ़वाल के हैं. शूरवीर की आधा दर्जन से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगातार छपते रहते हैं.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

लोककथा : दुबली का भूत

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल

-अशोक पाण्डे पहाड़ों में आग धधकी हुई है. अकेले कुमाऊँ में पांच सौ से अधिक…

9 hours ago

अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन

हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…

11 hours ago

नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम

जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी ‘नीचे के कपड़े’ उसका नाम…

12 hours ago

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

1 day ago

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

2 days ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

2 days ago