मसूरी पहला हिल स्टेशन था, जहां स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था की गई. वेल्स बंदोबस्त के बाद सन् 1842 के नियम 10 के तहत इस क्षेत्र के नियमन के लिए एक स्थानीय समिति का गठन किया गया.
अंग्रेजों के आने से पहले मसूरी मुख्यतः चरवाहों का अड्डा था. यहाँ बहुतायत में उगने वाली मंसूर झाड़ी को उनके पशु चरते थे. इसी “मंसूर” झाड़ी के नाम पर इस का नाम मसूरी पड़ा.
शुरुआत में मसूरी का विकास अलग शहर के रूप में हुआ. मसूरी और लंढौर दोनों कुछ मूलभूत बातों में एक दूसरे से अलग थे. मसलन, लंढौर एक सैनिक क्षेत्र था, जबकि मसूरी का विकास एक असैनिक क्षेत्र के रूप में हुआ.
अनुकूल मौसम ने बहुत से ब्रिटिश नागरिकों को मसूरी की ओर आकर्षित किया. दून घाटियों और यहां की पर्वत श्रेणियों की लोकप्रियता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने सन् 1927 में लंढौर में सैनिकों के लिए स्वास्थ्य लाभ डिपो की स्थापित की.
इस शहर ने बहुत तेजी से विकास किया और 100 वर्षों के अंदर ही मैदानी भागों की गर्मी एवं धूल से परे मसूरी रोगग्रस्त अंग्रेजों के लिये स्वास्थ्य लाभ करने की जगह बन गया.
सन् 1828 में लंढौर बाजार की स्थापना की प्रक्रिया शुरु हुई. सन् 1829 में यहाँ दैनिक उपभोग के लिए जरूरी सामानों की बिक्री का व्यवसाय शुरु हुआ. यह व्यवसाय जिस भवन में प्रारंभ हुआ था आज उसमें ही डाकघर है. मसूरी में पहला विद्यालय सन् 1834 में श्री मैकिनोन द्वारा स्थापित किया गया और सन् 1836 में यहाँ क्राइस्ट चर्च की स्थापना हुई. इसकी स्थापना बंगाल इंजीनियर्स के रेनी टेलर ने करवाया था. मसूरी में हिमालयन क्लब की स्थापना 1841 में हुई. सन् 1850 में भारत की पहली बीयर की फक्ट्री भी मसूरी में ही बनी.
मसूरी में पहला बैंक सन् 1836 में स्थापित हुआ. इस बैंक का नाम था, उत्तर-पश्चिम बैंक. कुछ समय के लिए इसका उपयोग सरकारी बैंक के रूप में हुआ. यह मसूरी में रहने वाले सरकारी कर्मचारियों एवं उनके परिवार के लोगों की सुविधा के लिए पूंजी कोष के रूप में काम करता था. यह बैंक सन् 1842 में बंद भी हो गया.
इसके बाद सन् 1859 में बैंक ‘द डैल्ही एंड लंदन बैंक’ की स्थापना हुई और सन् 1862 में ‘द बैंक ऑफ अपर इंडिया’ की स्थापना हुई. सन् 1874 में ‘द हिमालय बैंक’ की स्थापना हुई. जो कि बाद में बंद हो गया और सन् 1891 में ‘एलायंस बैंक ऑफ शिमला’ को खोला गया. जिसे सन् 1917 में इलाहाबाद बैंक में मिला दिया गया.
सर जॉर्ज एवरेस्ट के उल्लेख के बिना मसूरी का इतिहास पूरा नहीं हो सकता. सर जॉर्ज एवरेस्ट भारत के पहले महा सर्वेक्षक थे. सन् 1832 में यहाँ महा सर्वेक्षक के कार्यालय की स्थापना हुई. मसूरी को विश्व के मानचित्र पर स्थापित करने में उनका बहुत बड़ा हाथ है. संसार की सबसे ऊंची चोटी “माउंट एवरेस्ट” का नाम इन्हीं के नाम पर पड़ा.
कैमिल बैक सेमेंट्री मसूरी का सबसे पुराना कब्रिस्तान है. यहाँ की कुछ कब्रों पर लिखी गयी तारीख मसूरी के शुरूआती दिनों की है. यहाँ मसूरी के निर्माणकर्ता, ब्रिटिश सेना के जनरल एवं उनके सैनिक, बच्चे, शिक्षक और बहुत सारे गणमान्य लोगों की कब्रें हैं. यहाँ पर ऑस्ट्रेलियाई मूल के उपन्यासकार जॉन लैंग की कब्र भी है. इनकी मृत्यु सन् 1864 में हई थी. पहाड़ी विल्सन के नाम से मशहूर फ्रैडिक विल्सन की कब्र भी यहीं है और क्रिमियन युद्ध में भाग लेने वाले अल्फ्रेड हिंडमार्श को भी यहीं दफनाया गया है.
मसूरी की मुख्य सड़क को मॉल रोड कहा जाता था. जो कि पिक्चर पैलेस से शुरू होकर लाइब्रेरी तक जाती थी. ब्रिटिश काल में भारतीय लोग मॉल रोड पर नहीं जा सकते थे. यहाँ की मॉल रोड के सामने लगे बोर्ड पर मोटे अक्षरों में लिखा था- भारतीयों और कुत्तों का प्रवेश वर्जित है.
सन् 1901 तक मसूरी की जनसंख्या 6,461 थी जो गर्मियों के समय में 15,000 तक हो जाती थी. 80 के दशक तक मसूरी की बाजार सर्दियों में तीन महीनों के लिये बंद रहती थी पर अब ये बाजार हमेशा खुली रहती है.
अप्रेल सन् 1959 में जब दलाई लामा चीन अधिकत तिब्बत से निर्वासित हुए थे तो वो मसूरी में ही आकर रहे और यहीं उन्होंने तिब्बत निर्वासित सरकार बनायी जिसे बाद में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थानांतरित कर दिया.
विनीता यशस्वी
विनीता यशस्वी नैनीताल में रहती हैं. यात्रा और फोटोग्राफी की शौकीन विनीता यशस्वी पिछले एक दशक से नैनीताल समाचार से जुड़ी हैं.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें