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हर रोज सुबह का होना मेरे लिए एक बहुत बड़ी वजह है कभी खत्म न होने वाली सकारात्मक उम्मीद की. वह उम्मीद जो मुझे पल-पल रोशनी दिखाती है. मन में नई उमंग जगाती है. (Column by Upasana Vaishnav)
आज सुबह मैं फिर एक वॉक के लिए निकल गयी. कहीं और जाने का इरादा लेकर निकली थी पर सड़क पर पहुँचते ही मेरे कदमों ने उस तरफ न जाकर किसी दूसरी ओर ही जाने का फैसला किया. बस मैं निकल पड़ी. यूं ही चल पड़ने के बाद मेरे कदम फिर बस एक ही जगह पर रुके.
वह जगह एक छोटा सा हरा-भरा खुला मैदान सा है. इस मैदान पर कदम रखते ही दो पेड़ मिलते हैं और उन दोनों पेड़ों के बीच हैं दो छोटे, पुराने सीमेंट के बीम. शायद कभी वहाँ कोई गेट हुआ करता होगा, पर अब बस बीम ही बच गए हैं. उन दोनों पेड़ों पर गिलहरियाँ रहा करती हैं. सुबह कुछ तोते भी दिख जाया करते हैं. जिनके लिए अक्सर ही कुछ अनाज और चौड़े मुँह वाले मिट्टी के प्याले में पानी वहाँ रखा रहता है. लाल चोंच वाले खूबसूरत तोते और छोटी प्यारी गिलहरियों को चहकते, फुदकते देख मन वाकई खुश हो जाता है.
थोड़ी देर तक ये नजारा देख लेने के बाद मैंने भीतर की ओर दो-चार कदम रखे ही थे कि मुझे नीचे दो खूबसूरत फूल गिरे दिखाई दिए. जिन दो पेड़ों का मैंने पहले जिक्र किया उनमें से एक पेड़ सफेद चमेली का है, ये फूल उसी पेड़ से गिरे थे. ये सफेद फूल, बहुत ही मुलायम पंखुड़ियों वाले है. जो कि अंदर की तरफ पीले रंग के हैं.
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वैसे तो कविताओं में सफेद चमेली को पवित्रता, प्यार, मासूमियत, कामुकता का प्रतीक बताया गया है, जो सटीक लगता भी है. पर मेरे लिए ये इससे थोड़ा और बढ़कर है. मैं जब इस फूल देखती हूं तो लगता है जैसे सब्र की तपिश में जलकर निखर आई खूबसूरत शै हो, इसलिए मुझे ये इंतजार की निशानी सा लगता है. इन फूलों को देखने के बाद मुझे वह दिन याद आ रहा है जब मैं सुबह के वक्त आखिरी दफा यहां आई थी.
खैर, मैं सुबह के समय इस जगह पर बस दूसरी ही बार आई हूं. जब मैं पहली बार यहाँ आई थी वह समय कुछ खास था. आज मैं यहां अकेली हूँ लेकिन उस दिन कोई साथ था. उस दिन आज के मुकाबले ज्यादा चहल-पहल भी थी, या शायद मुझे लग रही थी. क्योंकि मेरे लिए वाकई वहाँ कोई था. मेरे साथ. तोते और गिलहरियां इसी तरह आपस की मटरगश्ती में थे. हम बिल्कुल इन्हीं बीमों के बीच से भीतर दाखिल हुए थे. इसी चमेली के पेड़ के आगे से निकलते हुए इस जगह के एक छोर पर पहुँचे; जहाँ पर दूसरा खूबसूरत दरख़्त है, जिस पर गुलाबी फूल आते हैं. उस दिन भी उस पेड़ से गिरे एक गुलाबी फूल को मैंने उठाया था. कुछ देर वही ठहरकर, ठीक उस पल में हमने कई बातें भी कीं. कहीं-न-कहीं हम भी अपनी बातों की मटरगश्ती में थे. बिलकुल उन तोते और गिलहरियों की तरह. आखिर उस पल को खत्म होना ही था और उस पल से बाहर निकल कर मैंने कहा—- चलें?
उसने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि सीधे चलना शुरू कर दिया जैसे मैंने सवाल नहीं कोई आदेश दिया हो.
एक मिनट… ठीक अभी-अभी मुझे याद आया कि उस दिन वहां सिर्फ़ हम दो ही नहीं थे, हम तीन थे. मैं, वह और उसकी साइकिल. जिसे वह हैंडल पकड़कर बस घसीटे जा रहा था.
फिर बातें करते-करते उस दिन बहुत लम्बा रास्ता हमने पैदल ही तय किया. उस दिन तो मौसम भी जैसे हमारी खिदमत में हाजिर था. न धूप तेज थी और न बारिश ही हुई. बस बादल मौज से आसमान में बैठे थे. जब तक रास्ता था, जो कि बहुत ही खूबसूरत था, तब तक सब कुछ बहुत प्यारा था. इस रास्ते के चारों ओर हरियाली थी. दोनों ओर लम्बे पेड़ थे और बीच में यह रास्ता. न ज्यादा शोर शराबा, न ही कोई भीड़-भाड़. लेकिन आज मुझे लग रहा है कि बात रास्ते की खूबसूरती की नहीं सिर्फ साथ की थी. वरना तो मैं आज फिर इसी रास्ते पर हूँ.
अब ठीक इसी पल में मैं अपनी यादों के ताने-बाने से फिर खुद को बाहर खींच रही हूं. और इन चमेली के फूलों को हाथों पर पकड़े, इनकी खूबसूरती निहारते हुए आंखो में इंतजार लिए खड़ी हूं. एक वैसी ही सैर आए मेरी जिंदगी में दोबारा किसी सुबह. हाँ! जैसा मैंने शुरू में ही कहा कि हर सुबह का आना मेरे लिए कभी न खत्म होने वाली उम्मीद का आना है. (Column by Upasana Vaishnav)
रामनगर की रहने वाली उपासना वैष्णव देहरादून में पत्रकारिता की छात्रा हैं. उपासना एक अच्छी अभिनेत्री होने के साथ ही अपने भावों को शब्द भी देती हैं.
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1 Comments
Harish raaj
Its verry precious your words
You are as beautiful as your words.💕