आज मदहोश हुआ जाए रे, मेरा मन, मेरा मन, मेरा मन
बिना ही बात मुस्कुराए रे मेरा मन मेरा मन मेरा मन
ओ री कली, सजा तू डोली
ओ री लहर, पहना तू पायल
ओ री नदी, दिखा तू दर्पण
ओ री किरण ओढ़ा तू आँचल
इक जोगन है बनी आज दुल्हन
आओ उड़ जाएँ कहीं बनके पवन..
रोम रोम बहे सुर धारा
अंग अंग बजे शहनाई
जीवन सारा मिला एक पल में
जाने कैसी घड़ी ए आई
छू लिया आज मैंने सारा गगन
नाचे मन आज मोरा छूम छनन
आज मदहोश…
-नीरज
इस गीत में नवविवाहिता के मन का उल्लास देखा जा सकता है. पहाड़ी ढलान पर हिरनी सी छलांग लगाती हुई वह बेहद खुश नजर आती है. वह कुदरत से बातें करती है. कलियों से, किरणों से, लहरों से मन के भाव साझा करती है. उन्हें अपना श्रृंगार करने का न्यौता देती है. मन इतना हल्का, कि उसका उड़ जाने को जी चाहता है.
गीत दाम्पत्य प्रेम से ओतप्रोत है. दोनों बलखाती पहाडी नदी के निर्मल जल से अठखेलियाँ करते हैं, हरे-भरे दरख्तों की ओट में बैठते हैं. पीछे हरे-भरे पेड़ और ऊपर नीला-नीला आसमान.
इसी गीत में एक सैन्य परिवार की झाँकी दिखाई देती है. गीत के आखिरी अंतरे में माँ बनने का जो सुखद भाव है, उसे वह गहराई से महसूस करती है. भावी संतान के बारे मे सोचती है. नए मेहमान के लिए कुछ बुनती हुई मुग्ध सी नजर आती है.
नीरज के बोलों और एसडी बर्मन की धुन के बारे में तो कहना ही क्या.
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