गायत्री आर्य

इस दुनिया में असंख्य लोग भूखे जी रहे हैं

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पिछली क़िस्त का लिंक: मातृत्व के महिमामंडन का जबर्दस्त दबाव प्रेग्नेंट महिलाओं पर रहता है

मेरे बच्चे! तुम्हें दो महीने मेरे भीतर आए हुए, अपनी जड़ जमाए हुए हो गए हैं लगभग, लेकिन मेरी तबीयत अभी भी वैसी ही है. दो-तीन उल्टियां रोज हो ही जाती हैं. अभी चार रोज पहले जब अपने गांव से वापस हॉस्टल आई थी, तो साढ़े तीन घंटे के सफर में मुझे सात उल्टियां हुई थी. अभी तुम मेरी उस स्थिति की कल्पना भी नहीं कर सकती मेरी बच्ची! लग रहा था कि जैसे अब आंते ही मुह से बाहर निकलनी बची हैं बस!

भूख की स्थिति अभी भी वही है. सुबह, शाम, और रात तीनों वक्त हॉस्टल के डायनिंग हॉल की तरफ पैर बड़े भारी उठते हैं. जरा भी मन नहीं होता खाना खाने का. पेट जैसे गैस चैम्बर बन गया है, खाली हो या भरा गैस बनती ही रहती है. ये सब सामान्य लक्षण हैं गर्भवती के उफ्फ! कल मेरा पी.एच.डी का प्रेजेन्टेशन है. काश! लंच के बाद मेरी तबीयत ठीक रहे, पता चला पेपर की जगह कुछ और ही ‘प्रेजेंट’ हो गया!

मुझे माफ करना मेरी बच्च, मैं तुम्हारे लिए कुछ पौष्टिक नहीं खा पा रही हूं. न जूस, न ही फल-फ्रूट, यहां तक की दूध भी नहीं. दूध पीने की जरा भी इच्छा नहीं हो रही. आज सोचा था मदर डेरी से आधा किलो दूध लाऊंगी, फिर लगा दूध पीकर फिर रात का खाना नहीं खा पाऊंगी. सो बिस्तर से उठी ही नहीं, पढ़ती रही और अब तुम्हें लिखने बैठ गई. पर इस हालत में मेरा दूध, जूस, या फलों का न खाना-पीना इतनी भी कोई चिंता की बात नहीं है. हमारे देश की करोड़ों औरतें बिना ये सब खाए-पिए ही बच्चे जनती जाती हैं, साल-दर-साल. समझ लो मैं भी उन्हीं जैसी हूं थोड़ी सी.मुझे तीन वक्त भरपेट खाना तो नसीब होता ही है न, लाखों-करोड़ों गर्भवतियों को तो वो भी नसीब नहीं होता. तुम घबराना मत मेरी बच्ची, लाखों-करोड़ों औरतों और उनके गर्भस्थ बच्चों से काफी अच्छी है मेरी-तुम्हारी स्थिति.

मुझे तो सिर्फ अपनी भूख मरने, खाने की इच्छा न होने की शिकायत है और कुछ दूसरी शिकायतें भी हैं. पर जिस दुनिया में तुम आने की तैयारी कर रही हो, वहां भूख, प्रचंड भूख,विकराल भूख फैली है हर तरफ. लोग ‘कुछ भी’ खाने को तैयार हैं और लोगों के पास खाना नहीं. एक वक्त का भरपेट खाना भी नहीं है लोगों के पास मेरी बच्ची. ये तस्वीर सिर्फ मेरे-तुम्हारे मुल्क की नहीं है. दुनिया के पता नहीं कितने देश ऐसी गरीबी और भुखमरी के चरम में जीने को अभिशप्त हैं. तुम्हारी मां तो सिर्फ कुछ सप्ताह और महीनों से ही अच्छे से खाना नहीं खा पा रही, पर इस दुनिया में ऐसे असंख्य लोग हैं मेरी जान, जो अपनी पूरी जिंदगी में भरपेट खाना नहीं खा पाते. जिनके बच्चों को भी जीवन भर पेटभर खाना नहीं मिलता. मनचाहा और अच्छा खाना नहीं बल्कि एक या दो वक्त का भरपेट खाना ही दुनिया के असंख्य लोगों का सपना है! दुनिया में ऐसे बहुत से देश हैं मेरी जान, जहां ‘कई पीढ़ियों’ ने भरपेट खाना नहीं खाया अपनी पूरी जिंदगी में!. तुम्हारे-मेरे लिए ये चीज अकल्पनीय है. पर ये उतना ही सच है जितना तुम्हारा मेरे भीतर होना.

दक्षिणी अफ्रीका के किसी देश में जाकर एक योरोपीय पत्रकार ने एक तस्वीर खींची थी. उस तस्वीर में भूख से कंकाल हुए एक बच्चे की तस्वीर है. बच्चा दूर पड़े एक मटके की तरफ जाने की चाहत में है शायद, लेकिन अपनी हालत के कारण अक्षम है और कुछ ही दूरी पर एक गिद्ध बैठा है, जो निश्चित ही उस बच्चे के मरने पर उसे खाने के इंतजार में है. इस फोटो को खींचने के लिए फोटोग्राफर को फोटोग्राफी का सबसे प्रतिष्ठित  ‘पुलित्जर पुरस्कार’ मिला था. लेकिन तुम्हें पता है पुरस्कार मिलने के कुछ समय बाद ही उस फोटोग्राफर ने आत्महत्या कर ली थी. संभवतः इस आत्मग्लानि से कि वैसी स्थिति में उस बच्चे के लिए कुछ करने की बजाए उसने उसकी सिर्फ तस्वीर खींची. उसे निश्चित तौर पर भयंकर अपराधबोध हुआ होगा. मुझे उस पत्रकार का नाम याद नहीं आ रहा, लेकिन उस तस्वीर वाले लेख को मैंने काटकर रखा है. तुम्हें दिखाने के लिए.

बिल्कुल ये शर्म से डूब मरने की बात है हम लोगों के लिए, कि हम दुनिया के तमाम समर्थ लोग, समर्थ देश मिलकर भी भूख के स्याह समंदर में डूबे हुए अपने भाई-बहनों, साथियों के लिए कुछ भी नहीं कर रहे हैं सिवाय तमाशा देखने के! तुम्हें नहीं पता मेरी बच्ची, पर ये वही समय है जब विज्ञान और तकनीक ने अथाह तरक्की कर ली है. कम जमीन पर ज्यादा उत्पादन के दावे हो रहे हैं, बंजर जमीन पर उत्पादन के दावे हो रहे हैं, कम समय और लागत में ज्यादा उत्पादन की तकनीकें खोज ली गई हैं. पर दुनिया के करोड़ों-अरबों बच्चे, बूढ़े, जवान, आदमी-औरत फिर भी भूखे हैं. इस दुनिया में असंख्य लोग भूखे जी रहे हैं, भूख से मर रहे है. पूरी दुनिया का विज्ञान, तकनीक और विकास की विशालकाय योजनाएं मिलकर भी इस धरती से भूख को नहीं भगा सके! क्या ये शर्म की बात नहीं हैं मेरी बच्ची?

तुम एक सभ्य समय और समाज में जन्म लेने जा रही हो मेरी बच्ची, लेकिन तुम्हारी मां इस ‘सभ्य विकास’ पर बेहद आश्चर्यचकित और दुखी है. इंसान को इंसान से दूर करने वाला, मनवता को सोखने वाला, विकास और समाज सभ्य क्यों कहा जा रहा है? इसे सभ्य और विकसित कैसे कहा जा सकता है? लेकिन कहा तो जा रहा है. ये परेशान करने वाले सवाल हैं मेरी बच्ची. सिर फटने वाली, दिमाग की नसें तान देने वाली चीजें है ये और ऐसी पता नहीं कितनी चीजें हैं इस दुनिया में. कितने सवाल हैं ऐसे जो दिमाग की नसें तड़काने लगते हैं, लेकिन इन सुलगते सवालों के जवाब देने वाला कोई नहीं है मेरी बच्ची. क्योंकि ऐसे तमाम दहकते हुए सवालों के जवाब, सिर्फ उन समस्याओं के हल हैं और जो बेहद-बेहद मुश्किल जरूर हैं लेकिन असंभव तो नहीं.

इन सवालों के हल बहुत से हो सकने वाले काम, नीतियां, कानून और व्यवहार हैं मैं चाहती हूं कि तुम ऐसी किसी भी समस्या के समाधान का, ऐसे किसी भी सवाल के जवाब का हिस्सा बनो मेरी जान! चाहे जिस भी रूप में, चाहे जिस भी स्तर पर ये मेरी तुमसे अपेक्षा भी है, तुम्हें आदेश भी है और तुम्हारे लिए दुआ भी है. तुम एक बेहद जटिल, जोखिम भरे और समस्याओं से जूझते समय में आ रही हो मेरी बच्ची. कैसे मैं तुम्हें इन सवालों से दूर रख सकती हूं और भला कब तक? क्या मुझे सच में तुमसे सिर्फ अच्छी-अच्छी बातें ही करनी चाहिए?

ये सवाल, दशकों क्या बल्कि सदियों से चले आ रहे हैं और सदियों तक रहने वाले हैं. ऐसे में ये स्थितियां बहुत भयानक और विकरालता की तरफ और ज्यादा बढ़ती जा रही हैं. ये भयानकता एक तरह का डिप्रेशन भी लाती है, बहुत-बहुत निराश करती है और निराशा में रखती है. लेकिन थिंक पॉजिटिव के नाम पर मैं तुम्हें इन सवालों, इन स्थितियों से दूर रखूं भी, तो भला कब तक मैं ऐसा कर सकती हूं? मैं कब तक तुम्हें इस सबसे दूर, सिर्फ एक सुंदर दुनिया दिखाते हुए रह सकती हूं? क्योंकि तुम हमेशा सिर्फ सुंदर यानी प्रकृति और संगीत की दुनिया में तो नहीं रहोगी न. वैसे भी सिर्फ अच्छी, प्यारी चीजों के बारे में सोचकर, सुनकर, देखकर, जीकर और देश-दुनिया के दुखों से अछूता रहकर हम कोई अच्छा काम नहीं करते. इस तरह के घोर स्वार्थ के चलते, और दूसरों की रत्ती भर फ़िक्र न करने के रवैये के चलते ही तो ये सवाल आज विकराल हो गए हैं. यदि हम सबने मिलकर समय रहते कुछ ठोस नहीं किया, तो समाज के एक बड़े हिस्से के ये सवाल, एक न एक दिन पूरी दुनिया को निगल जाएंगे!

उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.

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Sudhir Kumar

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