गायत्री आर्य

एक बच्चा अपनी मां को बहुत ख़ास महसूस करवाता है

4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 58 (Column by Gayatree Arya 58)
पिछली किस्त का लिंक: तुम्हारा ऐसे देखना मुझे कितना ख़ास महसूस करवाता है 

अभी-अभी तुम नींद के बीच में जगे, तो मैं अपनी गोद में लेकर तुम्हें फिर से सुलाने लगी. मेरी गोद के आगे अभी तुम्हारे लिए दुनिया की सारी चीजें बेकार, फालतू और रंगहीन हैं. वाऽऽओ! कितना स्पेशल बनाया है तुमने मुझे. अभी-अभी एक बात मेरे दिमाग में आई, कहीं यह भी तो एक महत्वपूर्ण कारण नहीं, कि औरतें दूसरी बार, तीसरी बार, बार-बार मां बनना चाहती हैं.

ऐसी भी बहुत स्त्रियां हैं, जिन्हें खुद से तीन-चार बार मां बनने में कोई शिकायत होती ही नहीं. जैसे बच्चे पैदा करना और पालना कोई हंसी-खेल हो या जैसे ‘प्रसव पीड़ा’ चाकू से हल्की सी उंगली कटने जैसा हल्का-फुलका दर्द हो. मुझे तो लगता है बच्चों की मां के प्रति इसी दीवानगी में वे कई-कई बच्चे पैदा करने का सोच पाती हैं. हालांकि बड़ा सच तो यही है, कि ज्यादातर औरतों पर आज भी मातृत्व थोपा ही जाता है, बेटे पैदा करने के लालच में. लेकिन कुछ जो इस बारे में निर्णय करने को आजाद हैं, वे भी कई बार, एक से ज्यादा बच्चे पैदा करना चाहती हैं. ऐसी एक स्त्री तो तुम्हारी मामी ही हैं जो अपने निर्णय से कई बच्चों की मां बनना चाहती थीं और एक थी मेरी प्यारी मामी, जो खुद डॉक्टर थीं. वे भी स्वेच्छा से कई बच्चे पैदा करना चाहती थीं, पर दिल की मरीज होने के कारण डॉक्टर ने उन्हें ऐसा करने से मना किया था.

तुमने मुझे जितना ‘स्पेशल’ महसूस करवाया है या जिस तरह से तुम मुझे ‘बेहद विशेष’ होने का दर्जा देते हो, बिना एक शब्द भी बोले. तुम्हारी वो अदा, वो प्यार, मेरे लिये तुम्हारी दीवानगी मुझे तुम्हारा दीवाना बनाती है मेरे बच्चे! पर फिर भी मैं एक से ज्यादा बच्चा पैदा करने का तो कतई नहीं सोच सकती. हां लेकिन मैं छः महीने की एक बच्ची को गोद लेना जरूर पसंद करूंगी.

तुम्हारा मुझे ‘खास’ महसूस करवाना, एक अलग ही अवर्णनीय आनंद देता है. ऐसे में उन औरतों/लड़कियों के मां बनने के बाद के अहसास की तो मैं सहज ही कल्पना कर सकती हूं, जिन्हें जिंदगी में कभी ‘प्यार’ तक नहीं मिला, ‘सम्मान’ या ‘खास’ होने का अहसास तो बहुत दूर की बात, अक्सर मां-बाप और पति कभी किसी लड़की को इतना-इतना ज्यादा ‘खास’ या ‘विशेष’ नहीं महसूस करवाते, जितना एक बच्चा अपनी मां को महसूस करवाता है. फिर भला वे क्यों नहीं चाहेंगी बार-बार मां बनना, बार-बार ‘विशेष’ महसूस करना? दुनिया की कोई ताकत मां को ‘विशेष’ या ‘बेहद खास’ होने के उस अहसास से वंचित नहीं कर सकती, जो कि उसका बच्चा उसे कराता है. कोई भी शराबी, हिंसक, शक्की, या गुस्सैल पति, कैसी भी तरकीब लगाकर, स्त्री को ‘बेहद खास’ होने के उस गुरूर से नहीं निकाल सकता, जिसमें मां बनकर वो पहुंच जाती है. कोई भी मां को खास होने के उस अहसास से तब तक नहीं निकाल सकता, जब तक कि बच्चा बड़ा होकर खुद ही दोस्त, खेल, आजादी में न रमने लगे.

यूं तो पहली बार मेरे पहले प्रेमी ने मुझे अहसास दिलाया था कि मैं ‘खास’ हूं उसके लिए. लेकिन जल्दी ही इस ‘खासपने’ की हवा भी निकाल दी उसने. कुछ समय बाद तुम्हारी अक्ल की दुश्मन मां को समझ आया कि उस प्रेमी ने मुझे खास क्यों महसूस करवाया, वह जल्द से जल्द मुझे भोगना चाहता था. मेरा पहला प्रेमी कुछ अलग नहीं था, लगभग सारे ही प्रेमी (अपवाद छोड़कर) अपनी प्रेमिकाओं को ज्यादा खास इसलिए महसूस करवाते हैं, ताकि वे जल्द से जल्द उन्हें भोग सकें. ये एक कड़वा सच है मेरे बच्चे! पर किसी के लिए सच में ‘खास’ होने में बड़ी बात है.

ओह! तुम आज ‘गुडलू’ चले हो पहली बार. हे भगवाऽऽन! तुम अपने घुटनों और नन्हीं हथेलियों के बल चलकर आए मेरे पास, आज पहली बार. ओह! आज 15 मई 2010 को अक्षय तृतीया के दिन तुम पहली बार चले और खड़े भी हुए हो. मान्यता है कि आज के दिन हम जो भी काम करते हैं, उसका ‘क्षय’ नहीं होता, वह ‘अक्षय’ रहता है. मेरी यही दुआ है मेरे बच्चे तुम हमेशा आगे बढ़ते रहो. तुम चलने लगे याऽऽर!. क्या कहूं, मैं खुशी से पागल हो रही हूं. तुम्हें डबलबैड पर बिठाकर गई थी रसोई में. तुम्हारे पिता ऑफिस से लौटे, तो देखते हैं कि तुम बैड से नीचे खड़े हो बैड़ का किनारा पकड़ के. तुम कैसे नीचे आए मेरी जान? तुम गिरे भी नहीं. अब तुम्हें बिस्तर पर बैठाना सच में खतरनाक है. अभी मैं लिखना बंद करती हूं और सबको फोन करके बताती हूं कि तुम आज पहली बार चले हो. मेरे मन में लड्डू फूट रहे है. बल्कि लड्डू नहीं रसगुल्ले. आज से तीन दिन पहले तुम मुझे पकड़ कर पहली बार खडे़ हुए थे.
5.30 पी.एम /15/05/10

उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.

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Sudhir Kumar

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