4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 43 (Column by Gayatree arya 43)
पिछली किस्त का लिंक: बड़े होने पर बच्चों के भीतर का फरिश्ता मर जाता है
4 सितम्बर, जिस दिन मैं डिलीवरी के लिए हास्पिटल में एडमिट हुई थी, तुम्हारे जन्म की घटना और अपने जीवन की ‘महाघटना’ को मैं कबसे तुम्हारे साथ शेयर करना चाह रही हूं.
मैं शायद दुनिया की पहली मां होऊंगी जो अपने बेटे को गर्भ में भ्रूण से जन्म तक, ‘लेबर पेन से लेबर रूम’ तक की बात बताना चाहती है और बताएगी. वर्ना तो मांए सिर्फ अपनी बेटियों को ही ‘लेबर पेन से लेकर लेबर रूम’ की बात बताती हैं लेकिन मैं सोचती हूं कि ये समय और समाज की जरूरत है, कि बेटों को भी लेबर रूम के खौफनाक, दर्दनाक, बेशर्म और भयानक अनुभवों को बताया जाए लेबर रूम की बात का जिक्र करते हुए बार-बार मुझे एक बेहद ‘घृणित’ और ‘वीभत्स’ बात याद आ रही है रंग, जिसे तुम्हें बताने से मैं खुद को रोक नहीं पा रही हूं. ये बात मुझे मेरी बेहद करीबी दोस्त ने बताई जो कि किसी के प्रेम में थी यह बात मेरी दोस्त को उसके प्रेमी ने ‘एकतरफी चाहत’ से हो रहे सेक्स के दौरान कही थी. उसने कहा था, ‘यार, तुम भी कमाल करती हो, इतनी सी जगह से बच्चा निकल जाता है और तुम कह रही हो कि दर्द हो रहा है.’
यूं तो तुम्हारी मां को बातें (शब्दशः) बिल्कुल याद नहीं रहती रंग, लेकिन अपनी दोस्त के मुझे बताए गए ये शब्द, मैं मरने तक भी नहीं भूल पाऊंगी मेरे बच्चे मैं इसलिए ये शब्द नहीं भूल पाऊंगी मेरे बेटे, क्योंकि ये शब्द एक ‘प्रेमी’ ने अपनी ‘प्रेमिका’ को कहे थे, न कि बलात्कारी द्वारा किसी भी लड़की को कहे गए! मैं सोचती हूं वो ‘प्रेमी’ था या ‘बलात्कारी’ या फिर ‘बलात्कारी प्रेमी.’ तुम क्या कहते हो मेरी जान?
मैं नहीं चाहूंगी कि तुम ये या ऐसा कोई भी शब्द और वाक्य किसी भी लड़की से कहो, फिर प्रेमी-प्रेमिका तो कुछ और ही होते हैं सच्चे प्यार में हिंसा नहीं हो सकती, किसी भी तरह की हिंसा नहीं, न शारीरिक न ही मानसिक. तुम सच्चा प्रेम करोगे तो हिंसा से खुद ही बच जाओगे और वैसे भी तुम मेरे बेटे हो, हिंसक या हमलावर कैसे हो सकते हो. हां इसीलिए मैं तुम्हें लेबर रूम के भीतर का दृश्य दिखाना चाहती हूं, ताकि तुम उस दर्द और तकलीफ के ‘भयानक बवंडर’ का थोड़ा सा अहसास कर सको और ऐसी ‘वीभत्स’, भद्दी और असंवेदनशील बात किसी से कहना तो दूर, सोचो भी नहीं और दूसरों को भी ऐसा करने से रोक सको.
मिलट्री हॉस्पिटल आगरा की तरफ से मुझे एडमिट होने के लिए 25 अगस्त की तारीख दी गई थी, लेकिन मैं एडमिट नहीं हुई मेरी मां, सास और मेरा भी यही मानना था कि जब अपने आप ही लेबरपेन होगा, तभी एड़मिट होना सही रहेगा सब लोग ऑपरेशन की बजाए नार्मल ही डीलिवरी चाह रहे थे, हां मैं भी.
सच तो ये भी है बेटू, कि मैं डिलीवरी से डर रही थी इसीलिए शायद अंदर ही कहीं न कहीं एक-एक दिन डिले भी करना चाह रही थी, पर आखिर कब तक? दुनिया में आने वाले और दुनिया से जाने वाले को कोई रोक सका है भला.
3 सितम्बर 2009 की रात लगभग नौ बजे खाना खाने के समय मुझे नाभी के नीचे, वैजाइना से थोड़ा ऊपर दर्द शुरू हुआ गैस के दर्द जैसा ही था वो दर्द सास और तुम्हारे पिता के बार-बार पूछने पर भी हर बार मेरा एक ही जवाब था ‘हां गैस का ही दर्द है और ऐसा दर्द मुझे पहले भी हो चुका है’ खाना खाकर मैं लेट गई, पर दर्द की रफ्तार धीरे-धीरे बढ़ती ही गई रात में लगभग एक-दो बजे तुम्हारे पिता ने मुझे डाइजिन सिरप और सास के कहने पर थोड़ा हींग दिया. लेकिन दर्द बढ़ता ही गया. आधी रात तक मेरा दर्द जानलेवा हो चुका था कुछ पलों के गैप में बार-बार दर्द की आवृत्तियां हो रहीं थी दर्द में छटपटाती मैं कभी दांई करवट लेती कभी बांई, कभी पैर सिकोड़ती, कभी फैलाती. कभी बैठती, कभी लेटती. कभी गद्दी पैरों के बीच में दबाती, कभी दांतो से हाथ काटती.
बिना आवाज किये रात भर मैं अकेले दर्द में छटपटाती रही बार-बार मोबाइल की लाइट जलाकर टाइम देखती, क्योंकि मैंने सोचा था कि सुबह छः बजे से पहले मैं तुम्हारी दादी या पिता किसी को भी जगाकर उनकी नींद खराब नहीं करूंगी, सो मैं रातभर चुपचाप दर्द पीती रही. दर्द की वो एक रात, दर्द की एक पूरी सदी जीने जैसी थी मेरे बेटे!
एक बार भी मेरे मन ये ख्याल नहीं आया के कहीं ये प्रसव-पीड़ा ही तो नहीं शुरू हो गई. क्योंकि मेरी एक प्रेगनेंट दोस्त ने बताया था कि प्रसव का दर्द कमर से शुरू होगा, लेकिन कमर तो मेरी बिल्कुल ठीक थी.
(अभी तुम हंस रही हो मेरी ‘लाफिंग बर्ड‘ अभी तुम्हारा मस्ती करने का मन है, सो मैं जाती हूं… तुम्हें ही छोड़कर तुम्हारे ही पास फिर लिखती हूं)
11.10 पी.एम/19.02.10
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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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