4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 38 (Column by Gayatree arya 38)
पिछली किस्त का लिंक: तुम कम से कम रोओ, ज्यादा से ज्यादा खुश रहो
अभी तक यानी जन्म के तीन महीने तक तुम बेहद अच्छे बच्चे हो. अच्छे मतलब कि तुम तंग नहीं करते. बिना वजह रोते नहीं, बल्कि मैं देख रही हूं कि तुम भूखे होने पर भी नहीं रोते मेरी जान. बस सोने के लिए ही रोते हो. खूब हंसते हो, मुस्कुराते हो, अकेले ही पंखे को या किसी भी दूसरी चीज को देखकर मुस्कराते रहते हो, बातें करते रहते हो.
पता नहीं मैं तुम्हें बता चुकी या नहीं कि ‘पंखा’ तुम्हारा पहला दोस्त था. सोकर उठने पर तुम सबसे पहले पंखा देखकर मुस्कुराते हो, ऐसे जैसे ये तुम्हारा कोई पिछले जन्म का करीबी हो. तुम कितने प्यारे होते जा रहे हो रंग, तुम्हें हंसता-मुस्कुराता देखकर कितना प्यार आता है. क्या कहूं. मैं तुम्हारे प्यार के रंग में डूबती जा रही हूं मेरे बच्चे! तुम आजीवन स्वस्थ रहो और यूं ही हंसते-मुस्कुराते रहो और यही हंसी-खुशी और प्यार बांटते रहो, मेरी हर पल तुम्हारे लिए यही दुआ है.
इस वक्त तुम मेरी बगल में लेटे हुए हंस-खेल रहे हो. पंखे से बातें कर रहे हो और अपनी दोनों हाथों की मुठ्ठियां/उंगलियां बारी-बारी से मुह में डालकर चूस रहे हो. तुम्हें देखती हूं तो बस देखती रह जाती हूं, लिखना-विखना सब भूल जाती हूं. तुम क्या ‘काला जादू’ जानते हो रंग? नहीं तुम तो ‘सतरंगा’ जादू जानते होगे जरूर, तुम रंग जो हो. दुनिया के सारे रंग तुम्हारी पोटली में हैं, बारी-बारी से तुम उन्हें निकालकर अपनी मां के ऊपर बिखेरते रहते हो.
मैंने अभी तक तुम्हें तुम्हारे जन्म के बारे में नहीं बताया न. बहुत बार बताया है मेरे बच्चे, पर मन ही मन में. क्योंकि अभी तक तो मुझे बैठने में बहुत ही ज्यादा दर्द होता है और जब बैठ पाती हूं थोड़ा, तो वक्त ही नहीं मिलता. तुम्हारे साथ वक्त कहां, कैसे, उड़न छू हो जाता है पता ही नहीं चलता. इस बीच चार घंटे का लंबा गैप आया. तुमने सुस्सू, पॉटी की, दूध पिया और मैंने कुछ घर के काम निपटाए.
8.30 पी.एम / 30.11.09
अभी खाना खाते वक्त मैंने तुम्हारे पिता के साथ किसी अवार्ड विनिंग पोलैंड की फिल्म का छोटा सा टुकड़ा देखा. फिल्म की कहनी ये थी कि कोई लड़की अपने प्रेमी के साथ घर छोड़कर दूसरे देश जा रही है, और वहां जाकर वो प्रेमी उस लड़की को वैश्यावृत्ति के लिए बेच देता है. कुछ देर फिल्म देख के मैं टीवी के सामने से जानबूझकर हट गई, क्योंकि मैं परेशान होने लगी थी उसे देखकर. बर्तन धोते हुए मैं तुम्हारे बारे में सोचने लगी रंग, तुम लड़की होते तो मुझे तुम्हें कितनी चीजों से बचाना पड़ता.
मैं सोचने लगी कि तब मैं तुम्हें ये भी बताती कि मेरी बच्ची, जिससे तुम बहुत प्यार करने लगो, हो सकता है कि वो तुम्हें धोखा दे रहा हो, तुम्हारे साथ खिलवाड़ कर रहा हो या कि तुम्हे फंसा रहा हो. ऐसे में तुम चाहकर भी मेरी बात कर यकीन नहीं करती. क्योंकि प्यार करना शुरू करते ही हम सामने वाले पर खुद-ब-खुद विश्वास करने लगते हैं, कि वो सिर्फ हमारा भला ही चाहेगा. पर ऐसा है नहीं मेरी बच्ची. तभी मैं एक झटके में अपनी कल्पना से बाहर आई और सोचा, शुक्र है तुम लड़का हो. हालांकि ऐसा नहीं है मेरे बेटे, कि लड़कियां हमेशा अपने वादे पर ही रहें. कुछ लड़कियां नहीं भी निभाती अपने प्यार का वादा, लेकिन कम से कम प्रेमिकाएं, अपने प्रेमी को प्रेम के नाम पर वैश्यावृत्ति में तो नहीं ही धकेलती. वे अपने प्रेम में धोखा देकर भी अपने प्रेमी को कोठे पर तो नहीं ही बेचती.
मैं कितनी ही चिंताओं से सिर्फ और सिर्फ इसलिए बच गई रंग, कि तुम एक लड़के हो. ऐसा कतई नहीं है कि लड़कों को फंसाया नहीं जाता या उनके ऊपर यौन हमले नहीं होते. लेकिन लड़कियों के लिए ये दुनिया, यहां के लोग, रीति-रिवाज, परंपरा, संस्कार, जितने क्रूर हैं, उतने लड़कों के लिए नहीं हैं. हम दुनिया भर की बच्चियां, लड़कियां, औरतें इतने व्हशीपन और क्रूरता से भरे माहौल में भी पता नहीं कैसे जी लेती हैं और जीती ही जाती हैं. सिर्फ ये दुनिया ही नहीं यहां तक कि प्रकृति भी बहुत हद तक मुझे तो मर्दो के पक्ष में ही लगती है मेरे बच्चे.
अब देखो न, तुम्हारे पिता बिना किसी दर्द और तकलीफ से गुजरे, पिता होने का सुख भोग रहे हैं और मैं डिलीवरी के चौथे महीने में भी दर्द से पूरी तरह उबर नहीं पाई हूं. मुझे बैठने में अभी भी हिप में दर्द होता है मेरे बच्चे. इस दर्द और तकलीफ से बिना गुजरे भी तुम्हारी हंसी/मुस्कुराहट तुम्हारे पिता को उतना ही दीवाना बनाती है, जितना मुझे. कभी-कभी मैं सोचती हूं कि यदि मुझे मातृत्व और पितृत्व में से किसी एक को चुनने का मौका मिले, तो मैं अब शायद पितृत्व को ही चुनना चाहूं अगले जन्म में. दूध पिलाने और पेट के भीतर तुम्हारी हलचल को महसूस करने से अलग पितृत्व में सारे सुख हैं. लेकिन उन सुखों के लिये पिताओं को कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती, जबकि मांओं को मातृत्व निभाने के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.
एक बेटी को बहुत शिद्दत से चाहने वाली मां बार-बार इसलिए शुक्र मनाती रही थी, तुम लड़की नहीं हो. सिर्फ तुम्हारे लड़की न होने के कारण मैं बच गई थी बहुत सारी चिंताए लादने से. तुम लड़के हो तो इस कारण मुझे तुम्हें किसी दोस्त के घर भेजने में चिंता नहीं होगी. मुझे किसी पुरुष के साथ अकेले छोड़ने में उतनी ज्यादा चिंता नहीं होगी. ये भी चिंता मेरे जहन में नहीं है अब, कि 13-14 की उम्र तक आते-आते मुझे तुम्हें पीरियड्स के बारे में बताना होगा और तुम्हारी पीरियड्स की तकलीफ में खुद भी घुलना होगा. अब मुझे उतनी चिंता नहीं होगी कि कहीं कोई तुम्हारा यौन शोषण न करे, कहीं कोई बलात्कार न कर दे, कहीं प्रेम में कोई तुम्हें धोखा देकर तुम्हारा शारीरिक और भावनात्मक शोषण न कर दे और तुम टूट जाओ. क्योंकि लड़कियां अक्सर लड़कों की अपेक्षा भावनात्मक रूप से ज्यादा जुड़ती हैं और धोखा मिलने पर बुरी तरह टूट जाती हैं. अब मुझे ये भी चिंता नहीं थी कि कोई शादी के बाद दहेज का नाम पर तुम्हें जला सकता है. सच में बड़ा कलेजा चाहिए लड़की की मां होने के लिए. हालांकि छोटे लड़कों को भी यौन शोषण होता है, पर लड़कियों के साथ तो ये चिंता तमाम उम्र रहती है.
लेकिन तुम्हारी मां अभी भी चिंतामुक्त नहीं है मेरे बच्चे. वो इसलिए कि लड़कियों की जिंदगी ज्यादातर जिन लोगों के कारण इतनी मुश्किल है तुम उस वर्ग में से हो! पुरुष वर्ग से, सीधे शब्दों में कहूं तो ‘हमलावर वर्ग’ से. मेरी चिंता का विषय है कि तुम मेरे बच्चे होने के कारण, कभी भी जाने-अंजाने किसी लड़की/स्त्री के प्रति हिंसा का हिस्सा न बनो. बल्कि मैं कहूंगी कि तुम किसी भी इंसान के ऊपर चढ़कर मत जाना अैर न ही अपने ऊपर किसी को चढ़ने देना.
मेरे बच्चे! तुमने एक बेहद हिंसक और क्रूर दुनिया में जन्म लिया है. यहां हर एक पल और ज्यादा हिंसा, हमला, युद्ध, की तैयारी चल रही है. दुनिया के किसी न किसी कोने में हमेशा धुंए के बादल मंडराते ही रहते हैं. मुठ्ठी भर सिरफिरे स्वार्थियों और कट्टपंथियों के कारण हमेशा औरतें और बच्चे खून में नहाने को मजबूर होते हैं. पहले लोग प्राकृतिक आपदाओं में ज्यादा मरते थे, युद्ध में भी मरते थे. लेकिन जैसे-जैसे हम सभ्य हो गए हैं, लोग आपसी खून-खराबे और हमलों में ज्यादा मरने लगे हैं. मैं शर्मिंदा हूं कि तुमने एक ‘खूनी सभ्यता’ में जन्म लिया है मेरे प्यार!
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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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बहुत ही नकारात्मक निराशावादी भावना के साथ लिखा गया लेख।
आज के हालातों पर सटीक बैठती हैं ये बातें.