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2 Comments

  1. deven mewari

    पहले यह अज़ीबो-गरीब पोशाक नहीं थी हमारे छोलैतियों की। न जाने क्या सोच कर उन्हें फ्रिल वाले झगूले और टोपी पहना दी गई।

  2. संतोष सिंह बोरा

    बहुत ही शर्मनाक और निरादर है कुमाऊ में आजकल इस नृत्य कला का, वैसे ये कोई नृत्य कला नहीं, अपितु एक मार्सल आर्ट है, जो युद्ध का अभ्यास ओर सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए किया जाता था,
    पोशाक- ये रंग बिरंगे परिधानों में जोकर बन कर नाचा नही जाता था तब, अब तो एक हिंजड़ा बनके भी नाचने लगे है। स्वेत रंग का झगोला होता था, जो सैनिकों की पहचान होती थी।
    हां किशी क्षत्रिय की बारात में ये काम दिख जाता था, नगाड़े ओर नीसाण के साथ,

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