झन दीया बोज्यू छाना बिलौरी
लागला बिलौरी का घामा
हाथे कि कुटली हाथे में रौली
नाके की नथुली नाके में रौली
लागला बिलौरी का घामा
बिलौरी का धारा रौतेला रौनी
लागला बिलौरी का घामा.
यह एक ऐसा कुमाऊंनी लोकगीत है जो उत्तराखंड में अधिकांश लोगों ने सुना होगा. इस लोकगीत में एक युवती अपने पिता से कह रही है कि छाना बिलौरी गांव मेेें मेरी शादी मत करना वहां की धूप बीमार कर देती है. हाथ की कुदाल हाथ ही में रहेगी. बिलौरी की धार में रौतेला लोग रहते हैं.
गाने के बोल से सबको लगता है कि छाना बिलौरी बड़ी ही गर्म जगह होती होगी तो कुछ लोगों को लगता है कि छाना बिलौरी किसी गीतकार की कल्पना मात्र होगी. दरसल दोनों ही बातें सही नहीं हैं. गीत में आगे है:
न्हे ज्यूला बोज्यू छाना बिलौरी
लागला बिलौरी का घामा
आसीस देयां भिटणे रैय्यां
लागला बिलौरी का घामा
बागेश्वर में अल्मोड़ा-बागेश्वर वाली सड़क में झिरोली मैग्नेसाइट से एक किमी दूरी पर गांव है छाना बिलौरी. अगर आपने कभी काफलीगैर बाजार का नाम सुना होगा तो वहीं से एक किमी की दूरी पर छाना बिलौरी गाँव स्थित है. घाटी के बीच में एक उभरे हुये टीले पर बिलौरी गांव बसा है. उंचाई के कारण यहां दिन में काफी गर्म होता है.
छाना बिलौरी गांव मेहनतकश लोगों से भरा हुआ है. गांव में अच्छी खेती भी होती है और एक जरुरी बात यह गांव बहुत गर्म भी नहीं है. बागेश्वर घाटी से इस तो इस गांव का तापमान बहुत कम है. फिर यह गाना कहां से आ गया यह एक भी एक रोचक सवाल है.
जनवरी 2015 में अमर उजाला में आनंद नेगी की छपी एक रिपोर्ट के अनुसार 83 बरस के हयात सिंह रौतेला और 81 बरस के रतन सिंह रौतेला बताते हैं कि तकरीबन 75 साल पहले कांडा के ठंडे इलाके से एक लड़की की शादी बिलौरी में हुई. कांडा से यहां का मौसम कुछ गर्म तो जरूर है. कहते हैं कि उसकी सास से नहीं पटी. एक दिन तनातनी की गर्मी सिर चढ़ गयी, बहाना पक्का हो गया और लड़की मायके गई. मायके में उसने बताया कि छाना बिलौरी में बीमार करने वाली धूप पड़ती है सो वह अब ससुराल नहीं जाएगी. इसके बाद वह ससुराल नहीं आई. गांव के बाहर के किसी व्यक्ति ने महिला के पलायन को गीत का रूप दे दिया और छाना बिलौरी गांव की पहचान घाम के साथ जुड़ गई.
बांसुरी वादक प्रताप सिंह और मोहन सिंह रीठागाड़ी के इस लोकगीत को गाने के बाद यह लोकप्रिय हो गया था. रेडियो पर पहली बार यह लोकगीत बीना तिवारी ने गाया था. छाना बीलौरी गीत इतना लोकप्रिय हो गया कि लोग अपनी बेटी बिहाने से पहले वहां के लोगों से घाम को लेकर सवाल पूछने लगे. इसी कारण से गोपालबाबू गोस्वामी ने एक गीत बनाया जिसकी शुरुआती चार पंक्ति कुछ यूं हैं :
छाना बिलौरी कै भलो लांगुं, छाना बिलौरी का ज्वाना
ओ दी दिया बौज्यू छाना बिलौरी
ओ दी दिया बौज्यू छाना बिलौरी, नि लांगना हो घाम
झुटि यो कैले बात कै दे छ, खालि करो बदनाम
– काफल ट्री डेस्क
वाट्सएप में पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
View Comments
काफलिगैर में नौकरी के दौरान ही पता चला छाना बिलौरी गाने के बारे में।
छाना ओर बिलौरी दो अलग अलग गांव है गांव में गर्मी होती ही है इसका यह कारण है कि यह गांव गहरी घाटी में है और मुख्य कारण यह कि इन गांव के चारो ओर पत्थरो की चट्टाने है dolamite, मैग्नेसाइट ओर स्लेट भरपूर मात्रा में है जो धूप से गर्म हो जाता है और गर्मी बढ़ती रहती है
छाना बिलोरी गांव एक घाटी में में बसा हुआ गांव है इस गांव में गर्मी सामान्य से कुछ ज्यादा होती है
इसका मुख्य कारण यह है कि यह गांव जहा बसा हुआ है वहाँ चारो ओर पत्थर की चट्टाने है जिनमे dolamite ,megenesite , स्लेट की चट्टाने भरपूर मात्रा में है जो गर्मी के मौसम में काफी गर्म हो जाती है ओर घाटी हो जाने के कारण गर्म हवा ये घाटी में ही रह कर इसे गर्म करती है
मैं भी आज से करीब 30-31 साल पहले 1988 में एक बारात में काफलिगैर गया था। बारात रामनगर काशीपुर से आई थी। हम लोग पिथौरागढ़ से थल, कांडा, बागेश्वर होते हुए लौटते हुए उस बारात में काफलिगैर में शामिल हुए थे।