यहाँ धूप नहीं आती बस छाया है खिड़की के कोने से जो रोशनी आती है उस रोशनी में धूल के चमकीले कण नाचते से लगते है.
जीवन बरबस बरस रहा है. (cherry blossom and spring)
मेरे बचपन वाले घर के सामने एक पल्म का पेड़ था ,जिसकी टहनियाँ हर जाड़ो में काट दी जाती थी .वो टहनियाँ जिनमे पल्म (पूलम) से लदकर झुक जाती थी.
लोग शिकायत करते थे ये पेड़ जाड़ो कि धूप रोके खड़ा है . पर हर बार वसंत का पहला सन्देश यही तो लाता था . सफ़ेद फूल जिसे हवा के झोंके मेरे आँगन में बिखेर देते और फूल इतने नाज़ुक कि हाथ में उठाते ही पंखुड़िया अलग हो जाती.
जापान में जैसे चेरी ब्लॉसम होते हैं वैसे ही ये हमारा चेरी ब्लॉसम था.
चिड़िया का झुण्ड इस पर वसंत के नव गीत गाता था और उन्हें भेंट में माँ चावल के दाने खिलाती थी. चीं चीं के राग से सुबह की नींद खुल जाया करती थी.
घर पर आज भी गौरैया का झुण्ड रोज़ सुबह शाम दाने खाने के लिए आता है और माँ उन्हें दाना देना नहीं भूलती. पर यहाँ, इस घर में ढूंढे से भी गौरैया नहीं दिखती.
जाड़ों की ख़ास बात ये भी है कि कई पक्षी साइबेरिया से अपनी यात्रा के पड़ाव में, यहाँ (पुराने घर पर) विश्राम करते हैं. बचपन में मेरी बहिन और मैं अपने खिलौने वाले कैमरे से इनकी तस्वीरें लेते और इनके पीछे भागते. मेरी बहिन फिर कागज़ में इनकी तस्वीरें बना झूठ-मूठ की फोटो मुझे देती.
जैसे-जैसे हम बड़े होते चले गए ये पहाड़ सिमटते चले गए. ये पहाड़ जैसे अपनी आँखों से घूर घूर कर नए दौर को देख कर घबराते है और फिर दर्द से आँखे मूँद लेते हैं और कभी कभी अपनी बूढ़ी हो रही कमर को और झुका लेते है.
हर बार कुछ नया दिखता है, बेहतर? पता नहीं. पहाड़ चीरती नयी सड़क, ढाल पर नया मकान, कुछ नए कैफे.
पर पानी, सिर्फ बरसात में दिखता है, हर तरफ और ज़िन्दगी चींटी सी तिलमिलाती इधर-उधर भागती .
गौरय्या और वसंत का वाहक मेरा पेड़ भी बूढ़ा हो रहा है. कभी-कभी लगता है मेरा बचपन कहीं सिर्फ कहानी बनकर ही न रह जाए.

तपोवन , देहरादून की रहने वाली सिंधुजा चौधरी ने बी. टेक इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन, हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर से करने के बाद जिओ इंफ़ॉरमैटिक्स, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ट्वेंटे, नीदरलैंड्स से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया है. हिन्दी साहित्य लेखन एवम् पठन में दिलचस्पी रखती हैं.
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1 Comments
Rashmi
बहुत सुन्दर, मार्मिक और संवेदनशील लेख. . सिन्धुजा और भी लिखना पहाड़ों के बारे में.