आज उत्तराखण्ड की चार धाम यात्रा के सभी पड़ाव सड़क व वायु मार्ग से जुड़े हुए हैं. यात्रा मार्गों पर गढ़वाल मंडल विकास निगम समेत द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं के अलावा भी सैकड़ों होटल, सारे, होम स्टे व धर्मशालाएँ मौजूद हैं. यहाँ श्रद्धालु अपनी क्षमतानुसार खाना खा सकते हैं और आराम व रात्रि विश्राम कर सकते हैं.
एक समय इन धामों तक सड़क मार्गों की कोई पहुँच नहीं हुआ करती थी. तब इस दुर्गम पैदल यात्रा के दौरान तीर्थ यात्रियों के आराम करने की जगहों को गढ़वाल में चट्टी कहा जाता था.
चारधाम यात्रा मार्ग पर तीर्थयात्रियों के आराम व रात्रि प्रवास के लिए स्थानीय व्यवसाइयों व श्रद्धालुओं द्वारा पड़ाव बनाये जाते थे. इन्हें चट्टी (विश्रामस्थल) कहा जाता था. यहाँ पर यात्रियों के आराम करने के अलावा भोजन बनाने के भांडे-बर्तन, ईधन इत्यादि की भी व्यवस्था होती थी. अभावग्रस्त यात्री खुद कच्चा राशन लेकर अपना भोजन बनाते थे. कुछ धार्मिक संस्थाओं द्वारा यात्रियों को कच्चा राशन भी मुफ्त दिया जाता था.
काली कमली वाले बाबा द्वारा उत्तराखण्ड के चारों धामों तक हर 10 मील के बाद चट्टियों का निर्माण करवाया गया था. बाद में काली कमली धर्मशालाओं का भी निर्माण किया गया था. स्वामी विशुद्धानंद उर्फ़ काली कमली वाले बाबा द्वारा निर्मित चट्टियों में निशुल्क आवास और कच्चे राशन का बंदोबस्त हुआ करता था. धर्मशालाओं में आवास के साथ लंगर की व्यवस्था थी. अपने इस नेक काम के लिए काली कमली वाले बाबा को देश-विदेश में पहचाना जाता है. उनके द्वारा संचालित चट्टियां व धर्मशालाएँ आज भी मौजूद हैं.
इन चट्टियों में दी जाने वाली सुविधाओं के एवज में यात्रियों से किसी तरह का शुल्क नहीं लिया जाता था. यहाँ साफ़-सुथरी, आरामदायक आवासीय सुविधाओं के साथ ही प्राथमिक चिकित्सा के लिए जरूरी सुविधाएँ भी हुआ करती थीं.
वक़्त के साथ आधुनिक सुख-सुविधाओं में बढ़ोत्तरी के बाद ज्यादातर चट्टियां उजड़ गयीं. आज भी ऋषिकेश से आगे अलकनंदा के दक्षिणी तट तक इन चट्टियों के अवशेष विद्यमान हैं.
कुछ प्रसिद्ध चट्टियों के नाम हैं— जानकी माई चट्टी, मंडल चट्टी, भैरों चट्टी, फूल चट्टी, हनुमान चट्टी.
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