भारत में उत्तराखंड की चार धाम यात्रा की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है. दुर्गम और उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित होने के कारण यह चार धाम यात्रा, मात्र धामों के दर्शन की परंपरा नहीं थी बल्कि अमूमन बानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करने और मोक्ष की कामना के साथ यह यात्रा प्रारंभ की जाती थी.
(Char Dham Uttarakhand Pramod Sah)
कठिन चार धाम यात्रा का प्रारूप ऐसा था की तीर्थ यात्री महीनों की तैयारी के साथ अपने घर से निकलते हरिद्वार में गंगा स्नान के बाद पैदल रास्ते चलकर यात्रा मार्ग में स्थित छोटी-छोटी चट्टियों में विश्राम करते, अपना भोजन खुद ही बनाते या धर्मशाला में प्राप्त करते. भक्ति, त्याग और अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने की भावना के साथ, प्रारंभ की जाने वाली यह चार धाम यात्रा बिना किसी हड़बड़ी के बहुत तसल्ली से की जाने वाली यात्रा थी.
सबसे पहले यात्री यमुनोत्री पहुंचते जहां अपने यम अर्थात विष यानी सांसारिक राग द्वेष से उत्पन्न नकारात्मकता को यमुना में प्रवाहित करते और फिर गंगोत्री में चित्त की आध्यात्मिक शुद्धता प्राप्त कर मां गंगा का शुद्ध जल भरकर भगवान केदारनाथ को अर्पित कर महादेव की कृपा प्राप्त करते फिर बद्रीनाथ पहुंचकर स्वयं के पितृदोष, जन्म-जन्मांतर के पापों के शमन की प्रार्थना भगवान विष्णु के श्री बद्रीश स्वयंभू रूप के समक्ष करते हुए अपने पित्रों को भी मोक्ष प्रदान करने की मंशा से ब्रह्म कपाल में अपने पितरों का श्राद्ध कर स्वयं तथा पित्रो को भी जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त करते थे.
(Char Dham Uttarakhand Pramod Sah)
चार धाम की यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व गांव के नाते रिश्तेदार इन तीर्थ यात्रियो से भेंट करते, उन्हें शुभकामनाएं देकर विदा करते और तीर्थ यात्री इस मार्ग में स्वयं की मुक्ति की कामना करते हुए आगे बढ़ता. यदि चारों धामों को पूरा कर वह घर वापस होते तो उसके बाद एक सात्विक और साधु समान जीवन तीर्थ यात्री व्यतीत करते थे. लेकिन समय का चक्र बदला, चार धाम यात्रा मार्गों पर अवस्थापना विकास ऑल वेदर रोड तथा नई पीढ़ी द्वारा तीर्थाटन, पर्यटन और साहसिक पर्यटन का घालमेल एक साथ कर देने से. चार धाम यात्रा में यात्रियों का अत्यधिक दबाव बड गया है. जबकि इन यात्राओं का पूर्ण पुण्य प्राप्त करने के लिए केदारनाथ के साथ अन्य शिव के चार रूप का जब हम दर्शन करते हैं तब पंच केदार की यात्रा पूर्ण होती है. यह पंच केदार हैं –
- केदारनाथ : यहां शिव का पृष्ठ भाग के दर्शन प्राप्त करते हैं. (दो दिन)
- मधमहेश्वर : जहां भगवान शिव की मध्य यानी नाभी भाग के दर्शन होते हैं. यहां पहुंचने के लिए रांसी गौंडार तक सड़क है फिर 16 कि.मी.शानदार पैदल ट्रैक (दो दिन)
- तुंगनाथ : शिव तुंग स्वरूप अर्थात भुजाओं के रूप में दर्शन देते हैं, यह नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के अंतर्गत बेहद खूबसूरत स्थल है और सभी केदारों में सबसे ऊंचा लगभग 12500 हजार फिट है. यहां पहुंचने के लिए आप चोपता तक सड़क मार्ग से और फिर उसके बाद साढेतीन किलोमीटर का पैदल ट्रैक (एक दिन)
- रुद्रनाथ : भगवान शिव महाकाल इंदौर की भांति अपने मुख के श्रृंगार रूप में दर्शन देते हैं जो 11800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां पहुंचने के लिए गोपेश्वर सगर गांव से लगभग 22 किलोमीटर का एक कठिन ट्रैक है इस चतुर्थ केदार की खूबसूरती यहां किलोमीटरों फैले, मनोहरी बुग्याल और सुंदर पर्वत श्रृंखलाएं हैं.(दो दिन)
- कल्पेश्वर : यह बद्रीनाथ मार्ग पर हेलंग से ब्रांच रोड पर 16 किलोमीटर सड़क मार्ग पर स्थित है यहां शिव के जटा रूप में दर्शन होते हैं.
हजारों वर्ष पहले भगवान केदार के साथ पांच केंदारो की भी स्थापना इसलिए की गई थी, कि हम सांसारिक हड़बड़ी को छोड़कर लंबे समय तक शैव भूमि में विचरण करें. शिव तथा प्रकृति के विभिन्न रूपों को देखकर हमें धैर्य, दर्शन और शिवत्व की प्राप्ति हो. हम जीवन के आध्यात्मिक उद्देश्य को प्राप्त कर सकें. यदि आप उत्तराखंड के चार धाम पहुंच रहे हैं तो कृपया सैर, सपाटा और फर्राटे के भाव को छोड़कर आएं. यहां उत्तराखंड के अलग-अलग धाम में कुछ समय गुजार कर अपने अंतस को शुद्ध करें और शिवत्व को प्राप्त हों.
(Char Dham Uttarakhand Pramod Sah)
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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