रानीखेत-कर्णप्रयाग मार्ग पर आदिबद्री से थोड़ी सी दूरी पर सड़क से 200 मीटर की ऊंचाई पर एक दुर्ग के अवशेष हैं. चमोली जिले के चांदपुर क्षेत्र में स्थित इस दुर्ग से लगा एक विष्णु का मंदिर है. दुर्ग से नीचे की ओर आटागाड़ की मुख्यधारा दिखती है. आटागाड़ आगे अनेक छोटी-छोटी गाड़ों से मिलकर पिंडर से मिलती है, जहां आटागाड़ पिंडर से मिलती है वहां इसका स्थानीय नाम भरारीगाड़ है. यह दुर्ग है चांदपुर का दुर्ग.
कत्यूर शासकों के बाद उत्तराखंड में गढ़वाल वाला हिस्सा अनेक छोटे-छोटे गढ़पतियों के हाथ आ गया. इन गढ़पतियों ने अनेक गढ़ बनाये, जिनमें चांदपुर गढ़ एक महत्वपूर्ण, शक्तिशाली और लोकप्रिय गढ़ के रूप में जाना जाता है.
चांदपुर गढ़ के संबंध में कहा जाता है कि यह राजा कनकपाल द्वारा बनाया गया था. कनकपाल न केवल पवार वंश का संस्थापक माना जाता है बल्कि चांदपुर को राजधानी बनाने का श्रेय भी कनकपाल को ही जाता है. कनकपाल कहा से आया था इस पर अभी भी विवाद है.
चांदपुर गढ़ी में स्थित वर्तमान अवशेषों में कुछ भवन आकृति के अवशेष, कुछ पत्थर, एक कुआं आदि है. दीवारों की पत्थरों पर कहीं कहीं देवी-देवताओं की आकृति भी उकेरी गयी है.
चांदपुर गढ़ी के संबंध में भारतीय पुरातत्तव सर्वेक्षण देहरादून मंडल उत्तराखण्ड ने अपनी वेबसाईट पर लिखा है कि
ऐसी मान्यता है कि यह राजा कनकपाल का किला था जो कि वर्तमान गढ़वाल राजवंश के संस्थापक था तथा जिनके उत्तराधिकारी अजय पाल ने गढ़वाल राज्य को मजबूत किया. यह किला सड़क से 100 मीटर की ऊंचाई पर एक टीले की चोटी पर स्थित है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा करवायी गयी वैज्ञानिक तरीके की सफाई ने चोटी पर किले के अवशेष तथा ढाल पर आवासीय संरचनाएं प्रकाश में आयी. यह दुर्ग बहुमंजिला स्थापत्य का उदाहरण है जिसमें सहायकों के कमरों की व्यवस्था की गयी है. इसके अलावा काम करने की जगह, पानी संग्रहण हेतु गोल आकार का कुंआ जिसमें चूना का लेप किया गया है, आदि प्राप्त हुये हैं. इसका निर्माण काल 14वीं शताब्दी ईसवीं का माना जाता है.
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मूलरूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले नरेन्द्र सिंह परिहार वर्तमान में जी. बी. पन्त नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरमेंट एंड सस्टेनबल डेवलपमेंट में रिसर्चर हैं.
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