उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल में चैत्र नवरात्र में मनाया जाने वाला त्यौहार है चैतोल. मुख्यतः पिथौरागढ़, चम्पावत जिलों के विभिन्न हिस्सों में मनाये जाने वाले इस त्यौहार के स्वरूप में स्थान के अनुसार भिन्नता पायी जाती है. सोर घाटी में चैत्र नवरात्र की अष्टमी से चैतोल की धूम मचनी शुरू हो जाती है.
शिव के रूप देवल समेत देवता
यहाँ इस उत्सव के केंद्र में होता है बिण गाँव में देवल समेत देवता का मंदिर. देवल समेत भगवान शिव के ही रूप माने जाते हैं. देवल समेत देवता का सम्बन्ध मूलतः नेपाल से माना जाता है. किवदंती है कि इन्हें नेपाल से स्थापना के लिए काली कुमाऊँ लाया गया. किन्हीं कारणों से देवलसमेत की स्थापना काली कुमाऊँ में नहीं की जा सकी, तब सोर घाटी में इनकी स्थापना कर दी गयी.
22 गांवों में भगवती स्वरूप बहनों से होती हैं भेंट
सबसे पहले देवल समेत बाबा की छात (छतरी) व डोला तैयार किया जाता है. चतुर्दशी के दिन देवल समेत का डोला निकलकर उसे बिण क्षेत्र के आसपास के 22 गांवों में घुमाया जाता है. इन गाँवों की अपनी यात्रा के दौरान देवलसमेत द्वारा सभी गांवों की देवियों की आराधना की जाती है. इस भ्रमण के दौरान देवल समेत द्वारा भिटौली की रस्म अदायगी की जाती है. चैत के महीने में उत्तराखण्ड में भाइयों द्वारा बहनों से मुलाकात कर उन्हें उपहार दिए जाने की परंपरा है. बहनों को भेंट दिए जाने की इस परंपरा को भिटौली कहा जाता है.
अच्छी फसल और प्राकृतिक आपदा से रक्षा
प्रचलित जनश्रुति के अनुसार चार बहनों की 22 बहने हुआ करती थीं जिन्हें इन 22 गाँवों में ब्याहा गया था. अतः भिटौली के महीने में देवल समेत देवता अपनी बहनों को भिटौली देने इन 22 गांवों में जाया करते हैं. कहा जाता है कि ये 22 बहने माँ भगवती के रूप में इन 22 गांवों में विद्यमान हैं. देवल समेत इन गांवों में पहुंचकर स्वयं अपनी बहनों को भेंट देते हैं और सभी ग्रामीणों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद भी देते हैं. इन मंदिरों में देवता स्वयं मानव शरीर में अवतरित होकर लोगों को आशीर्वाद भी देते हैं. कहा जाता है कि देवता के आशीर्वाद से फसल अच्छी होती है और प्राकृतिक आपदा का खतरा भी टल जाता है.
इन 22 गांवों से गुजरती है यात्रा
डोले के यात्रा मार्ग में बिण, मखनगाँव, कुटोली, बरड़, सिमखोला, रिखाई, चैंसर, कुमडार, दल्ल्गांव, बसते, नैनी, सैनी, ऊर्ण, उड़माया, जामड़, घुंसेरा, भड़कटिया, मढ़, सितौली, कासनी, कुसौली, रुइना, और जाखनी आदि गाँव आते हैं.
चतुर्दशी के दिन बिण के देवल समेत मंदिर से शुरू होने वाली इस यात्रा का समापन बिण के देवल समेत मंदिर में ही होता है.
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2 Comments
कार्तिक भाटिया
Thank you very much sir for sharing my clicks….. हर हर महादेव
Krishan Nagarkoti
पोस्ट अच्छी है लेकिन अधिकांश गांवों के नाम गलत लिखे गए हैं जैसे मखन गाँव नहीं है मखौली गांव है।