परीक्षा माने – ‘पर इच्छा’
दो दोस्त थे. दोनों में काफी घनिष्ठता थी. दाँत काटी दोस्ती समझ लीजिए. ये बात, इस नजरिए से बखूबी साबित होती थी कि, बेहद नाजुक मौकों पर भी दोनों ने हमेशा एक ही जैसे कदम उठाए. मास्टर डिग्री के द... Read more
जिस दौर में टी.वी.चैनलों का मतलब ही शोर और हुल्लड़बाज़ी हो गया हो, ‘गुफ़्तगू’ के 300 एपीसोड पूरा होना एक घटना है. राज्यसभा चैनल का यह इंटरव्यू शो सिर्फ़ भारत नहीं, ग्लोब के दूसरे हिस्सों में... Read more
ट्रेल पास अभियान भाग – 2
पिछली कड़ी पहली जून 1994 को जब अस्कोट-आराकोट अभियान दल मुनस्यारी पहुंचा, दल के अधिकांश सदस्य मेरे पूर्व परिचित मित्र थे. उनके आवास तथा भोजन की उचित व्यवस्था की गई. मैंने लेह-लद्दाख भ्रमण का क... Read more
फूलन और मनोहरश्याम की जुबान के बगैर कोई लेखक बन ही कैसे सकता है जैसे पराई धरती पर पौधा नहीं रोपा जा सकता, इसी तरह परायी भाषा से रचना का पौधा नहीं जमाया जा सकता. आजादी के बाद हिंदी में आंचलिक... Read more
माफ़ करना हे पिता – 5
(पिछली क़िस्त: माफ़ करना हे पिता – 4) माँ की मौत के साल बीतते-बीतते पिता जब्त नहीं कर पाये और दूसरी शादी की बातें होने लगीं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मुझे बताया गया कि मेरी देखभाल कौन कर... Read more
पिछला भाग जागृत महिला समाज के इन प्रयत्नों के फलस्वरूप ही कुछ समय के लिए पौड़ी व नन्दप्रयाग में महिलाओं के आक्रोश को देखते हुए प्रशासन ने शराब की दुकानें बंद कर दी थी. दूसरी ओर स्वयं जागृत मह... Read more
लगता है कि अच्छी फिल्मों का दौर फिर से लौट आया है. बॉलीवुड में तो अच्छी – अर्थपूर्ण फिल्में बन ही रही हैं, क्षेत्रीय सिनेमा, खासतौर से मराठी, भोजपुरी और दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी पिछ... Read more
रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 5
(पिछली क़िस्त का लिंक – रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 4) सुबह उजाला हुआ तो मैं बाहर निकल आयी. मौसम साफ है. आसमान में कोई बादल नहीं हैं. आज पहली बार मैं नीला आसमान और धू... Read more
रंग उसे बीजगणित की जटिल वीथियों में ले जाते थे
मून फ्लोरिस्ट वो जब भी इस दुकान के आगे से गुज़रता, हल्का सा ठिठक जाता.. . और सोचने लगता कि चाँद पर उगने वाले फूल किस तरह के होते होंगे. उनका रंग क्या धरती पर उगने वाले फूलों जैसा ही होता होगा... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 2
पिछली कड़ी गुडी गुडी डेज़ -अमित श्रीवास्तव बतकुच्चन मामा फैल गए थे. ये बात उनको नागवार गुज़री थी. वैसे तो अपने ख़िलाफ़ चूं भी उनको नागवार गुज़रती थी ये तो चों थी. उन्होंने फनफनाते हुए लौंडों को दे... Read more