कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 105
डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने एक जगह लिखा है – “लोकोक्तियाँ मानवीय ज्ञान के चोखे और चुभते सूत्र हैं.” यदि वृहद हिंदी कोश का सन्दर्भ लिया जाए तो उस में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई... Read more
शमशेर सिंह बिष्ट का एक आत्मीय संस्मरण
शमशेर सिंह बिष्ट ठेठ पहाड़ी थे. उत्तराखंड के पहाड़ी ग्राम्य जीवन का एक खुरदुरा, ठोस और स्थिर व्यक्तित्व. जल, जंगल और ज़मीन को किसी नारे या मुहावरे की तरह नहीं बल्कि एक प्रखर सच्चाई की तरह जी... Read more
गुप्तकाशी: जहाँ शिव गुप्तवास पर रहे
उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में बसा है (Guptkashi) गुप्तकाशी. यह क़स्बा केदारघाटी में मन्दाकिनी नदी के सुन्दर तट पर बसा है. कर्णप्रयाग, गौचर, रुद्रप्रयाग और अगस्त्यमुनि होते... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 19 (पोस्ट को लेखक सुन्दर चंद ठाकुर की आवाज में सुनने के लिये प्लेयर के लोड होने की प्रतीक्षा करें.) ठुलीगाड़ के पास जो जौं की ताल है, जो इन दिनों चौबीस पहर सन्नाटे... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 104
डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने एक जगह लिखा है – “लोकोक्तियाँ मानवीय ज्ञान के चोखे और चुभते सूत्र हैं.” यदि वृहद हिंदी कोश का सन्दर्भ लिया जाए तो उस में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई... Read more
किसने आख़िर ऐसा समाज रच डाला है
हमारा समाज -वीरेन डंगवाल यह कौन नहीं चाहेगा उसको मिले प्यार यह कौन नहीं चाहेगा भोजन वस्त्र मिले यह कौन न सोचेगा हो छत सर के ऊपर बीमार पड़ें तो हो इलाज थोड़ा ढब से बेटे-बेटी को मिले ठिकाना द... Read more
1984 में अल्मोड़े के विज्ञापनों की दुनिया
इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि सफ़ेद को सुंदर और काले को बदसूरत मानने के चलन में विज्ञापन की कितनी बड़ी भूमिका है. लेकिन इस बात के पूरे साक्ष्य उपलब्ध हैं कि सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुओं ने... Read more
फिल्म ‘कथा’ (1982) का बैकड्राप, खरगोश-कछुए की कथा पर आधारित है. बदलते हुए परिवेश में, परिवर्तित होते नैतिक मूल्यों को फिल्म में प्रतीकात्मक ढंग से दिखाया गया है. राजाराम (नसीरुद्दीन शाह) एक... Read more
भट का जौला नहीं टर्टलबीन्स रिसोटो कहिये जनाब!
हल्द्वानी (Haldwani) के रहने वाले हेम पाण्डे फिलहाल पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया (Australia) के किम्बरली इलाके के ब्रूम नाम के एक तटीय कस्बे के लोकप्रिय रेस्तरां मैट्सो’स में चीफ शेफ हैं. हेम बताते ह... Read more
‘नशा नहीं रोजगार दो’ के 35 बरस
आज ‘नशा नहीं रोजगार दो’ आन्दोलन को पूरे 35 साल हो चुके हैं. इस आंदोलन पर नैनीताल समाचार ने 1 सितम्बर, 1984 को “पहाड़ आंदोलित है” शीर्षक से एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी. शराब... Read more