कल है पहाड़ियों का लोकपर्व घ्यूं त्यार
कुमाऊं में भादों मास की संक्रांति घ्यूँ त्यार मनाया जाता है. इसे ‘ओलकिया’ या ‘ओलगी’ संक्रान्त भी कहते हैं. इस दिन घी खाने की परंपरा रही. इस कारण इसे घ्यूँ त्यार या घी... Read more
लोक में रचे बसे रंग और पहाड़ की कलाकारी
पहाड़ में अपनी भावनाओं को रेखाओं, आकृतियों का रूप दे उनमें रंग भर जीवंत कर देना हर घर-आँगन, देली-गोठ और देबता की ठया में दिखाई देता. इसमें हाथ का सीप होता. कुछ नियम कायदों के संग सीधी सादी म... Read more
जोजोड़ा : जौनसार-बावर की अनूठी विवाह प्रणाली
मेरी पैदाइश और परवरिश कई छोटे कस्बों एवं नगरों में हुई है, इसके बावजूद मेरा अपने पैतृक स्थान से अलग ही लगाव रहा है. मेरा ये विश्वास रहा है कि – आप चाहे कहीं भी रहें, कोई भी काम-काज करे... Read more
ढांटा ब्या उत्तराखण्ड के खशों में प्रचलित तथा सामाजिक मान्यता प्राप्त निरनुष्ठानिक विवाह का एक प्रकार था. इसमें कोई सधवा (परिव्यक्ता या अपरित्यक्ता) अपने पूर्व पति को अथवा विधवा स्त्री मृत प... Read more
महादेव के वीर गण लटेश्वर का मंदिर
थलकेदार से लगभग 2500 फीट की ढलान पर दुर्गम मार्ग को पार कर लटेश्वर नामक मंदिर आता है. यहाँ पर एक सम्पूर्ण विशाल शिला खण्डित होकर गुफा रूप में परिवर्तित हुई है जहाँ “लाटा” देव की... Read more
सावन के महीने देवता कैलाश में जुआ या अन्य बाजियां लगाते हैं : सीमांत की अनूठी मान्यता
सावन का महीना और आप यदि सीमांत के किसी गाँव मे जाते हैं तो हर घर में एक ही चीज आम होगी वो है, हर घर के दरवाजे और खिड़कियों में लगे काटें और बिच्छू घास की टहनियां. ये किसी भी नये व्यक्ति के... Read more
हरेला पर हो हल्ला नहीं, रोपें संस्कारों के बीज
जी रया, जाग रया, यो दिन यो मासन भेटनै रया … सिर पर हरेला (हरे तिनके) रखते हुए इन आशीर्वाद रूपी वचनों से हम खुद को धन्य समझते हैं. जिसका मतलब है, जीते रहो, जागते रहो और इस दिन से आपकी ह... Read more
हिमालयी लोकगाथाओं में कृष्ण को नागों का राजा अर्थात नागराज कहा जाता है. कृष्ण के जन्म और बचपन को लेकर अनेक गीत गाये जाते हैं. Birth of Devki Kumaoni Folk Myth ऐसे ही एक गीत का सार नीचे दिया... Read more
घर पर ऐसे बनती है पहाड़ियों की जनेऊ
जन्यौ पुन्यू के अवसर पर आपके कुल पुरोहित आपको जनेऊ भेट करने अवश्य आयेंगे, यदि वे बाजार से खरीदकर जनेऊ आपको दे रहे हों तो बात अलग है अन्यथा यदि वे स्वयं अपने हाथ से बनी जनेऊ आपको भेंट करें ,... Read more
क्यों रखते हैं किसी के सिरहाने लोहे की दरांती
सभी जानते हैं मनुष्य जाति द्वारा लोहे का इस्तेमाल किये जाने से पहले प्रस्तर युग और कांस्य युग थे. यही कारण था कि जहाँ शुरुआती धार्मिक अनुष्ठानों में लोहे के प्रयोग को वर्जित माना जाता था वही... Read more