[पिछली क़िस्त: हल्द्वानी की सबसे पुरानी संगीत संस्था] नैनीताल में दुर्गालाल साह पुस्तकालय की अलग पहचान है. इस पुस्तकालय की स्थापना 1914 में अंग्रेजों ने की थी. उसी तरह हल्द्वानी मंं 15... Read more
भैरव मंदिर से आगे कि ओर जहाँ गुरुद्वारा है, उसके पीछे की गली जो कसेरा लाइन से दूसरी ओर मिलती है, पीपलटोला नाम से जानी जाती थी. यहाँ तवायफें रहा करती थीं और मुजरे के शौक़ीन लोग यहाँ जाया करते... Read more
नैनीताल में दुर्गालाल साह पुस्तकालय की अलग पहचान है. इस पुस्तकालय की स्थापना 1914 में अंग्रेजों ने की थी. उसी तरह हल्द्वानी में 15 अक्तूबर 1953 में एक पुस्तकालय की स्थापना की गयी. इस पुस्तका... Read more
हल्द्वानी की सबसे पुरानी संगीत संस्था
[पिछली क़िस्त: जमरानी बाँध का अजब किस्सा ] बची गौड़ धर्मशाला से लगी मटरगली नाम से धीरे-धीरे एक बाजार विकसित हो गयी. पहले यहाँ बीच बाजार से होकर जाने वाली नहर थी. उस बंद नहर के ऊपर कुछ लोग बै... Read more
उत्तराखण्ड में चाय की खेती का इतिहास 150 वर्ष पुराना है. उत्तराखण्ड में भी चाय की खेती यूरोपियनों के आने के बाद ही शुरू हुई. सन् 1824 में ब्रिटिश लेखक बिशप हेबर ने कुमाऊं क्षेत्र में चाय की... Read more
अंग्रेजों के जमाने में उत्तराखंड के पुल
उत्तराखंड में अनेक नदियां बहती हैं और इन नदियों को पार करने के लिये यहां अनेक पुल हैं. पहाड़ी इलाकों में आज भी रस्सी के पुराने झूला पुल देखने को मिल जाते हैं. उत्तराखंड में पुल ग्रामीण जीवन... Read more
जमरानी बाँध का अजब किस्सा
[पिछली क़िस्त: हल्द्वानी में नहरों का जाल बिछाया था हैनरी रामजे ने] कहा गया था कि जमरानी बाँध बनाने से तराई-भाबर ही नहीं पीलीभीत, रामपुर और बरेली तक के खेतों में हरियाली आएगी. वर्षा के अनिय... Read more
जॉन हेरॉल्ड एबट का बनवाया हुआ चर्च – डाक्टर डेथ यानि डाक्टर मॉरिस के खतरनाक प्रयोगों की दास्तान (Abbot Mount Haunted Remains of Raj) हिमालय की तराई से चलकर जब आप टनकपुर से शिवालिक पहाड... Read more
कुमाऊं में चन्द शासन काल के कुछ महत्वपूर्ण विवरण
एटकिंसन के अनुसार डोटी कल्याण चन्द्र का शासनकाल सन् 1730-47 ई.तक माना जाता है. डोटी कल्याण चन्द्र का राज्याभिषेक 1730 में किया गया. 1747 ई. को अपने मृत्यु समय के अन्तिम मास में उसनें अपने अब... Read more
पिछली क़िस्त : जब हल्द्वानी के जंगलों में कत्था बनाने की भट्टियां लगती थी उस जमाने में भाबर का यह इलाका घने जंगलों से भरपूर था. साल, शेषं, खैर, हल्दू आदि मूल्यवान प्रजाति के वृक्षों से हराभरा... Read more