अपने भीतर घिरते जाने की कविताः आलोक धन्वा के बारे में -शिवप्रसाद जोशी अगर हिंदी कविता में इधर सबसे बेचैन और तड़प भरी रूह के पास जाना हो तो वो आलोक धन्वा के पास है. अपने दौर के तूफ़ानी कवि के... Read more
नैनीताल की रामलीला
नैनीताल की रामलीला का इतिहास नैनीताल में मल्लीताल की रामलीला की शुरूआत सन 1918 में राम सेवक सभा की स्थापना के साथ ही शुरू हो गयी थी. शुरूआती दौर में यह रामलीला खुले मैदान में होती थी जिसे आल... Read more
पहाड़ और मेरा बचपन – 3
पिछली क़िस्त पहाड़ और मेरा बचपन – 2 मां आस-पास की ऐसी औरतों को जानती थी, जिन्होंने खुद भी गाय पाली हुई थीं. ये सभी महिलाएं आपस में मिलकर घास का कोई पहाड़ खरीद लेतीं और फिर मिलकर घास काटने जात... Read more
माफ़ करना हे पिता – 6
(पिछली क़िस्त: माफ़ करना हे पिता – 5) एक रोज सीढ़ियों से लुढ़क कर मैं अपना माथा फुड़वा बैठा. लोगों ने घाव में चीनी चरस ठूँस कर कपड़ा बाँध दिया. कुछ दिन बाद घाव पक कर रिसने लगा, उसमें मवा... Read more
रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 6
(पिछली क़िस्त का लिंक – रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 5) सुबह 4 बजे उठी और सबसे पहले बाहर देखा. आसमान अभी भी खुला है इसलिये तसल्ली हो रही है कि ट्रेक अच्छे से हो जायेगा... Read more
धौली और नन्दा की कथा
कार्तिग के महीने गांव के ऊपर नीचे की सारियां फसल काटने के बाद खाली हो जाती. आसमान बरसात के बाद गहरा नीला ये स्यो (सेब) जैसे बड़े बड़े तारों से अछप रहता. हम सब बच्चे चौड़ी फटालों वाले आँगन में अ... Read more
परीक्षा माने – ‘पर इच्छा’
दो दोस्त थे. दोनों में काफी घनिष्ठता थी. दाँत काटी दोस्ती समझ लीजिए. ये बात, इस नजरिए से बखूबी साबित होती थी कि, बेहद नाजुक मौकों पर भी दोनों ने हमेशा एक ही जैसे कदम उठाए. मास्टर डिग्री के द... Read more
फूलन और मनोहरश्याम की जुबान के बगैर कोई लेखक बन ही कैसे सकता है जैसे पराई धरती पर पौधा नहीं रोपा जा सकता, इसी तरह परायी भाषा से रचना का पौधा नहीं जमाया जा सकता. आजादी के बाद हिंदी में आंचलिक... Read more
माफ़ करना हे पिता – 5
(पिछली क़िस्त: माफ़ करना हे पिता – 4) माँ की मौत के साल बीतते-बीतते पिता जब्त नहीं कर पाये और दूसरी शादी की बातें होने लगीं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मुझे बताया गया कि मेरी देखभाल कौन कर... Read more
रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 5
(पिछली क़िस्त का लिंक – रहस्यमयी झील रूपकुंड तक की पैदल यात्रा – 4) सुबह उजाला हुआ तो मैं बाहर निकल आयी. मौसम साफ है. आसमान में कोई बादल नहीं हैं. आज पहली बार मैं नीला आसमान और धू... Read more