उत्तराखण्ड के तीन जिलों – पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी – की सीमाएं चीन से लगती हैं. अस्सी के दशक तक इन तीनों जिलों में रहने वाली आबादी का नब्बे प्रतिशत से अधिक हिस्सा ग्रामीण था.... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 64
डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ने एक जगह लिखा है – “लोकोक्तियाँ मानवीय ज्ञान के चोखे और चुभते सूत्र हैं.” यदि वृहद हिंदी कोश का सन्दर्भ लिया जाए तो उस में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई... Read more
कोसी कटारमल का सूर्य मंदिर
कोसी कटारमल के सूर्य मंदिर कैम्पस में खड़े होकर एक पत्थर जिसमें अजीब सी भाषा में कुछ लिखा हुआ है, की ओर इशारा करते हुए शम्भू राणा जी ने मुझसे कहा – ‘क्या तुम इस भाषा के बारे में कुछ जान... Read more
गगास के तट पर : उत्तराखंड की समाजार्थिकी पर केन्द्रित हिंदी का पहला उपन्यास
गगास के तट पर : जगदीश चन्द्र पांडे (1968) (इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार : सोलहवीं क़िस्त) हिंदी समाज की विडंबना है कि पाठक साहित्यिक जानकारी को लेकर इतना लापरवाह है कि वह न तो अपने... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 63
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मं... Read more
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 12
गुडी गुडी डेज़ (स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण में है…) अमित श्रीवास्तव न गर्मी न जाड़े के गुदगुदे से दिन थे गुडी गुडी में. सुबह के ठीक सात बजे थे. देवकीनंदन पाण्डे अपना गला खंखार चुके... Read more
हल्द्वानी-नैनीताल मार्ग पर हल्द्वानी से करीब पंद्रह किलोमीटर दूर दोगांव नामक स्थान पिछले कुछ सालों से भट्ट जी के भुट्टों की वजह से खासा नाम कमा चुका है. अनेक चैतन्यकारी मसालों से बने मसाले-च... Read more
कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 62
पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. वे नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मं... Read more
अल्मोड़ा कैंट में शरद
अल्मोड़ा का कैंट एरिया अल्मोड़ा के बीचों बीच होते हुए भी प्रतिदिन कंक्रीट के जंगल में तब्दील होते जा रहे अल्मोड़ा में प्रकृति प्रेमियों और घूमने के लिए सबसे मुफीद जगह है. सर्दियों में प्रकृत... Read more
लड़के फल नहीं खाएंगे, तो कौन खाएगा
[पूर्वकथन: ललित मोहन रयाल की यह सीरीज खासी लोकप्रिय रही है और इसे हमारे पाठकों ने न केवल पसंद किया है इसे खूब सारे फेसबुक शेयर्स भी मिले हैं. इस सीरीज का यह अंतिम हिस्स्सा है. अपने पैतृक गाँ... Read more