बूबू की धुपैणी में महकती अनोखी जड़ – सम्यो
तीन बाखली के छोटे से गाँव में मालगों (ऊपर का गाँव) के बीचों-बीच हमारे एक बूबू रहते थे. बहुत मीठे स्वभाव और बाल सुलभ मुस्कान के धनी थे. बच्चों और बकरी के पट्ठों से बहुत प्यार करते थे इसलिए हम... Read more
निर्धनता पर नोबल पुरस्कार
दुनिया में गरीबी है. सत्तर करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें पेट भर भोजन आज भी नहीं मिलता. कंगाली उनका पीछा करती है. बदहाली उन्हें जीने नहीं देती. भूख उनकी सांसों में है, बीमारी तन में. मुफलिसी तंग... Read more
हल्द्वानी से हैड़ाखान रोड (भीमताल ब्लॉक) पर गांव पड़ता है गुमालगांव. अचानक वहां से गुजरते हुए नाक में बिस्कुट बेक होने की खुशबू घुसी ही थी कि सामने छोटी सी बेकरी दिखाई दी. (Delicious Handmad... Read more
कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के.एस. राना एक बार फिर विवाद में फंस गए हैं. इस बार भी वे विवाद में अपने एक पत्र को लेकर ही फंसे है. अब उन्होंने उत्तराखण्ड के मुख्य निर्वाचन आयुक्त को प... Read more
छोटी-छोटी चीजों के स्वाद से बना जीने का ज़ायका
4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – अट्ठाइसवीं क़िस्त पिछली क़िस्त का लिंक: मेरे भीतर से जन्मा बच्चा तुम आठवें महीने में लग गए हो मेरे बच्चे. लेकिन नहीं, ये कहना ज्यादा सही होगा कि मेरे गर्भ... Read more
बनारस के निष्कलुष हास्य और शार्प विट से बुना गया है आशुतोष मिश्रा का पहला उपन्यास
‘राजनैत’ लेखक आशुतोष मिश्र का पहला उपन्यास है. अपनी पहली ही रचना में उन्होंने प्रवाहमय विट-संपन्न गद्य लिखा है. उनमें एक समर्थ प्रतिभाशाली लेखक की झलक मिलती है. Review Ashutosh M... Read more
सन् 1971 में जब मैंने हाईस्कूल पास किया तब अंग्रेजी पाठ्य पुस्तक में सरोजनी नायडू की एक कविता थी- ‘वीवर्स’ यानि बुनकर. कवियित्री बुनकरों से पूछती है- यह प्यारा-सा कपड़ा किसके लिए बुन रहे हो?... Read more
अब आपको जो बातें शेयर करने वाला हूँ, उससे आपको चौंक जाना चाहिए. खनन, रियल स्टेट, मंडी के कारोबार के बाद स्कूल व अस्पताल के धंधे वाले अपने शहर हल्द्वानी में ड़ेंगू से अब तक 17-18 लोग जान गंवा... Read more
शैलेश मटियानी की एक अमर कहानी
पापमुक्ति – –शैलेश मटियानी Paap Mukti Story Shailesh Matiyani घी-संक्रांति के त्यौहार में अब सिर्फ दो ही दिन शेष रह गए हैं और त्यौहार निबटते ही ललिता अपने घर, यानी अपनी बड़ी दीदी... Read more
दूर कहीं किसी पर्वतीय अंचल में पतली-पतली पगडंडियों पर चलता हुआ एक अलग सा जुड़ाव व खिंचाव लगता है कदमों में. पहले पहल तो मैं इसे थकावट व ऊबासी लेती हुई चाल समझ रहा था. पर ये थकावट की चाल... Read more