भाबर नि जौंला…
मौसमी परिवर्तनों के चलते आई कठिनाइयां रहीं हों या रोजगार, काम-धाम की तलाश, शीत ऋतु शुरू होते ही परंपरागत पर्वतीय समाजों में हिमालय के वाशिंदे फुटहिल्स पर फैले भाबर में सदियों से ऋतु-प्रवासन... Read more
क्वी त् बात होलि
सुदि त क्वी नि देखदु कै सणी… विशुद्ध रूप से चेष्टा-भाव पर आधारित इस गीत में युवती की चेष्टाओं को देखकर युवक के हृदय में जो आकर्षण-विक्षोभ उत्पन्न होता है, उसका निहायत सजीव चित्रण हुआ ह... Read more
फूलदेई के बहाने डांड्यौं कांठ्यूं का मुलुक…
गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ऐसे चितेरे कवि-गायक हैं जो अपने गीतों में लोकजीवन, लोक-संस्कृति के साथ कुदरत का समूचा चित्र उकेरते हैं. जहां एकओर उनके गीतों में लोक तत्त्वों का गहरा समावेश रहता है... Read more
सिनेमा का शौक और शब्दभेदी वरदान
उस समय फिल्मों का इतना क्रेज हुआ करता था कि लड़के खुद को रोक नहीं पाते थे. किसी भी छत पर वीसीआर पर एक ही रात में तीन-तीन फिल्में दिखाई जातीं. मार्च में परीक्षाएं निबटने के बाद लड़के बिंदास ह... Read more
अविस्मरणीय कथाकार शेखर जोशी को श्रद्धांजलि
बीती 30 सितंबर को प्रतुल जोशी जी से मुलाकात हुई. वे कथाकार पिता के प्रतिनिधि के तौर पर द्वितीय विद्यासागर नौटियाल सम्मान प्राप्त करने देहरादून आए हुए थे. पिता की नासाज हालत को लेकर वे खासे उ... Read more
पुस्तक समीक्षा – भंवर: एक प्रेम कहानी
भंवर: एक प्रेम कहानी- अनिल रतूड़ी का हाल ही में प्रकाशित उपन्यास है. उपन्यास में लेखक ने लोक-जीवन से भरपूर जितने चित्र और चरित्र उकेरे हैं, कुदरत के चित्र उससे कहीं कमतर नहीं दिखते. लेखक को... Read more
चारधाम यात्रा का मुख्य द्वार होने के चलते ऋषिकेश को ट्रांसपोर्ट नगरी भी कहा जाता है. आज के सूचना प्रौद्योगिकी के युग में कैब सहज ही उपलब्ध हो जाती है. ये उबेर, ओला का युग है. ट्रैवल एजेंसियो... Read more
तब यातायात के साधन सुलभ नहीं थे. उस समय इन दुर्गम पर्वतीय तीर्थों की यात्रा करना अति कठिन कार्य था. तो भी बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु इन तीर्थों के दर्शन करके धर्म-लाभ करते थे तथा पुण्य... Read more
त’आरुफ़ : कोतवाल का हुक्का
ज़ाहिर सी बात है ‘कोतवाल का हुक्का’ शीर्षक कहानी-संग्रह में प्रतिनिधि कहानी तो ‘कोतवाल का हुक्का’ ही होगी. इसके अलावा संग्रह में कुछ लंबी कहानियाँ हैं तो बहुत सी लघु... Read more
लोकप्रिय सिनेमा में ऋषिकेश
रियासत-काल में रास्ते दुरुह-दुर्गम थे. तब भी चारधाम यात्रा तो चलती ही थी. सन् 1880 में परिव्राजक विशुद्धानंद जी, जिन्हें लोग कालीकमलीवाले बाबा के नाम से जानते थे, के प्रयत्नों से यात्रा कुछ... Read more