फूलों का मौसम आ गया
पहाड़ में इन दिनों वनों में लाल-लाल बुरांश के फूल खिल गए हैं. हरे-भरे वनों में जहां नजर डालो, लगता है बुरांश के पेड़ों ने लाल ओढ़नी ओढ़ ली है. बचपन में सुना वह गीत कानों में गूंजने लगा हैः (... Read more
भिटौली : भाई-बहिन के प्यार का प्रतीक
उत्तराखंड में चैत्र माह में प्यूंली के पीले और बुरांश के लाल फूल खिल कर वसंत ऋतु के आगमन का संदेश दे देते हैं, बच्चों की टोलियां अपनी नन्हीं टोकरियों में रंग-बिरंगे फूल भर कर चैत्र माह के पह... Read more
चंद्र दत्त पंत मास्साब की स्मृति में
मैं उनसे पहली बार आज से ठीक 58 वर्ष पूर्व मार्च 1962 में मिला था. मैंने वहां लीलावती पंत इंटर कालेज से इंटर की परीक्षा दी थी. अपनी पुस्तक ‘मेरी यादों का पहाड़’ में मैंने उस समय को शिद्दत से... Read more
क्रिसमस ट्री : सिर्फ पेड़ नहीं, परम पिता परमेश्वर में हमारी आस्था व विश्वास का प्रतीक
क्रिसमस का त्यौहार आ गया है. आइए, आज ‘क्रिसमस ट्री’ की बात करते हैं. (Christmas tree Deven Mewari) क्रिसमस ट्री यानी वही हरा-भरा, प्यारा-सा पौधा जिसे क्रिसमस यानी बड़े दिन के त्योहार पर घर म... Read more
पहाड़ की चोटी पर बसे अपने गांव में शीत ऋतु से सामना बचपन में ही हो चुका था. सर्दियां शुरू होतीं और सुबह-शाम ठंड से शरीर कंपकंपाने लगता, दांत किटकिटाने लगते. ठंडी सूखी हवा से होंठ फट जाते. सु... Read more
अनोखी शख्सियत थे कैलाश साह यानी कैलाश दाज्यू
एक अनोखी शख़्शियत थे कैलाश साह यानी कैलाश दाज्यू. एक में अनेक थे वे, किसी के लिए पत्रकार, किसी के लिए समर्पित विज्ञान लेखक, किसी के लिए गजब के किस्सागो, किसी के लिए हमदर्द दोस्त, तो किसी के... Read more
पहाड़ों में पाया जाने वाला फल जिसे चंगेज खां अपने सैनिकों को उनकी याददाश्त बढ़ाने के लिये खिलाता था
कुछ समय पहले पहाड़ से कवि-कथाकार मित्र अनिल कार्की ने नन्हे, सुंदर, सिंदूरी फलों से लदे एक अनजाने पौधे का फोटो भेजा. लिखा था, ‘सिरदांग में हमने इसका जूस पीया था. आपका परिचय जरूर होगा इस पेड़... Read more
कहां गया हमारे पहाड़ का चुआ
अब तो भूले-बिसरे ही याद आता है हमें रामदाना. उपवास के लिए लोग इसके लड्डू और पट्टी खोजते हैं. पहले इसकी खेती का भी खूब प्रचलन था. बचपन में मंडुवे यानी कोदों के खेतों के बीच-बीच में चटख लाल, स... Read more
दूर उत्तराखंड के पहाड़ों से रैबार देने वाले पत्रकार साथी संजय चौहान और शैलेंद्र गोदियाल का कहना है कि उत्तरकाशी और टिहरी जिले के जंगलों में इन दिनों नील कुरेंजी के फूलों की बहार आ गई है. खास... Read more
बम्बइया पिक्चर की कहानी, दिल्ली की थकान और कुमाऊं का लोकगीत: देवेन मेवाड़ी की स्मृति में शैलेश मटियानी
सन् साठ के दशक के अंतिम वर्ष थे. एम.एस.सी. करते ही दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में नौकरी लग गई. आम बोलचाल में यह पूसा इंस्टिट्यूट कहलाता है. इंस्टिट्यूट में आकर मक्का की फसल पर शो... Read more