मोहनजोदड़ो की आखिरी सीढ़ी से -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं साइमन न्याय के कटघरे में खड़ा हूं प्रकृति और मनुष्य मेरी गवाही दे! मैं वहां से बोल रहा हूं जहां मोहनजोदड़ो के तालाब के आखिरी सीढ़ी है... Read more
वे तुम्हारी नदी को मैदान बना जाएंगे
अमृतलाल वेगड़ और रजनीकांत के नर्मदा वृत्त के आगे यह नर्मदा की दुर्दशा की अगली कहानी है. शिरीष खरे की यात्रा के लंबे कथोयकथन का यह एक अंश है. लेखक ने यह यात्रा कुछ साल पूर्व ‘तहलका’ में... Read more
कुछ कद्दू चमकाए मैंने -वीरेन डंगवाल कुछ कद्दू चमकाए मैंने कुछ रास्तों को गुलज़ार किया कुछ कविता-टविता लिख दी तो हफ़्ते भर ख़ुद को प्यार किया अब हुई रात अपना ही दिल सीने में भींचे बैठा हूँ हा... Read more
तुम किसकी चौकसी करते हो रामसिंह ?
रामसिंह -वीरेन डंगवाल दो रात और तीन दिन का सफ़र तय करके छुट्टी पर अपने घर जा रहा है रामसिंह रामसिंह अपना वार्निश की महक मारता ट्रंक खोलो अपनी गन्दी जर्सी उतार कर कलफ़दार वर्दी पहन लो रम की ब... Read more
वीरेन डंगवाल (5.8.1947,कीर्ति नगर,टिहरी गढ़वाल – 28.9.2015, बरेली,उ.प्र.) हिंदी कवियों की उस पीढ़ी के अद्वितीय, शीर्षस्थ हस्ताक्षर माने जाएँगे जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जन्मी और सुमित्रानं... Read more
फ़ितूर सरीखा एक पक्का यक़ीन
आज वीरेन डंगवाल की चौथी पुण्यतिथि है. हिन्दी कविता और पत्रकारिता में अपनी ख़ास जगह रखने वाले इस महान व्यक्ति की कविता के बहाने इस लेख में हमारे साथी शिवप्रसाद जोशी बहुत सारा और कुछ कह रहे हैं... Read more
दो बाघों की कथा -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं तुम्हें बताऊंगा नहीं बताऊंगा तो तुम डर जाओगे कि मेरी सामने वाली जेब में एक बाघ सो रहा है लेकिन तुम डरो नहीं बाघ को इस कदर ट्रेंड कर रखा है मैंने... Read more
आसमान में धान बो रहा हूँ: विद्रोही की कविता
नई खेती -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं किसान हूँ आसमान में धान बो रहा हूँ कुछ लोग कह रहे हैं कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता मैं कहता हूँ पगले! अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है त... Read more
पाब्लो नेरुदा से एक बातचीत
पाब्लो नेरुदा (12 जुलाई 1904 – 23 सितंबर 1973) की रहस्यमय -सी मृत्यु पर हिन्दी दुनिया में विशेष चर्चा नहीं हुई‐ शायद इसलिए कि उससे कुछ ही पहले नेरुदा को नोबेल पुरस्कार मिलने पर पक्ष-वि... Read more
ग्राहक विष्णु खरे दो बार चक्कर लगा चुकने के बाद तीसरी बार वह अंदर घुसा. दूकान ख़ाली थी सिर्फ़ एक पाँच बरस का ख़ुश बच्चा आईने के सामने कुर्सी पर बैठा हुआ था जिसका बाप लम्बी बेंच से आधी निगाह... Read more