मां आज भी सभी सिक्कों को डॉलर ही कहती है
ब्रह्म ने पृथ्वी के कान में एक बीज मंत्र दे दिया हैउसी क्रिया की प्रतिक्रिया मेंजब बादल बरसते हैं,तो स्नेह की वर्षा होने लगती हैऔर पृथ्वी निश्चल भीग उठती है.आज भी बादलों के गरजने औरधरती पर फ... Read more
गोविन्द वल्लभ पन्त की कहानी ‘फटा पत्र’
प्रजापति और मास्टरों के घंटों में इतनी शरारत नहीं करता था, जितनी पंडित श्रानंदरन साहित्य-शास्त्रीजी के घंटे में. वे जब लड़कों की कापियाँ शुद्ध करते थे, तब लड़के उनकी मेज को चारों ओर से घेर ल... Read more
फागुन के आखिरी दिनों में रफल्ला, गाँव के नजदीक के गधेरे में अपना घाघरा धो रही है. बसंत इन दिनों से एक हाथ आगे होता है. इन एकदम उदास मटमैले दिनों में लगभग सभी चीजें खुद-ब-खुद कहीं डूब गयी सी... Read more
अमरीका के सबसे ज़्यादा बिकने वाले समकालीन लेखकों में से एक क्रिस्टोफ़र पॉलीनि अब सैंतीस साल के हैं. जब उनकी पहली किताब प्रकाशित हुई थी तो उनकी उम्र महज़ सत्रह साल की थी. उन्नीस साल का होने स... Read more
शेरदा अनपढ़ और नरेन्द्र सिंह नेगी की जनप्रतिनिधियों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी
लगभग चौबीस सौ साल पहले जन्मे महान दार्शनिक अरस्तु द्वारा शासन सम्बन्धी व्यवस्था पर प्रतिपादित अपने तीन वर्गीकरण में से जनतांत्रिक शासन ही आज भी लोकप्रिय शासन माना जाता है. अब्राहम लिंकन ने ल... Read more
जिस राष्ट्र में यह कहा जाता हो कि “तीन कोस पर पानी बदले, नौ कोस पर बोली”, जहाँ हर प्रकार की मिट्टी, विभिन्न जलवायु, सभी धर्मों के लोग पाये जाते हो, वहाँ यह समझने में थोड़ी कठिनाई होती है कि... Read more
पुन्यों सी उजली देबुली और नरिया के जीवन की एक झलक
छिलुके की रोशनी में चौथर का कोना कोना खिल उठा था. कई महीनों बाद दो दिन पहले ही चौथर लिपा घिसा गया था. छिलुके की रोशनी में धान कूटते देबुली की चूड़ियों की खनक किसी साज पर सजी अंगुलियों की करत... Read more
ऋषि गंगा के मायके में : 1934 का यात्रा वृतांत
एवरेस्ट अभियान से लौटने के कुछ महीनों के बाद ई. ई. सिम्पसन ने मुझे गढ़वाल के एक छोटे अभियान का सुझाव दिया. मैं उनके साथ हो लिया. हमारा तीसरा साथी पूर्वी अफ्रीका का डा. नियोल हसुफर था. लेकिन... Read more
रोज की तरह, सात साल का गुट्टू मुन्ना अपनी हमउम्र पड़ोसिन चुनमुन के पास खेलने पहुँचा. चुनमुन उसे अपने मकान के दालान में खड़ी मिली. वह बड़े चाव से कुटुर-कुटुर शक्करपारे खा रही थी. गुट्टू मुन्न... Read more
ठेठ गढ़वाल के जीवन से जुड़ी चीज़ों को समझने के लिए एक तरह का रोचक शब्दकोश है ‘काऽरी तु कब्बि ना हाऽरि’
बचपन में नए साल के ग्रीटिंग कार्ड बनाने के दौरान एक युक्ति सीखी थी. रंग में डुबाया हुआ धागा लेकर (रंग के नाम पर अमूमन हमारे पास स्याही ही होती) सादे कागज़ पर हौले से अगड़म-बगड़म आकार में रख... Read more