अर्जन्या: पहाड़ के लोक से जुड़ी कहानी
यकायक मुझे सब कुछ रहस्यमय लगने लगा. घर-आंगन. पेड़-पौधे. लोग. यहां तक कि अपने इजा (मां) और बौज्यू (पिता) भी. मैं घर की देहरी पर बैठा था और मेरी नजर आंगन पर थी. यह आंगन जैसा आंगन नहीं था. जगह-... Read more
देवता भी चले गए लेकिन गुरु ने गांव नहीं छोड़ा
आज रेवती का श्राद्ध है. हीरा गुरु दरवाजे पर बैठकर पूरन और भास्कर दत्त जी का इंतजार करते हुए बहुत देर से सामने डांड़े को ताक रहे थे. घर के आगे सीढ़ीनुमा बंजर खेत बहुत गहराई तक फैले हैं. डांड़... Read more
उम्मीद-भरी प्रतीक्षा के बाद निराशा की जो अथाह थकान होती है, उसी को लेकर टूटी डाल की मानिंद-थकी-माँदी काकी लौट गई थीं. उनका जाना निश्चित था. हम कोशिश करते तब भी वे रुकनेवाली नहीं थीं. किसी ने... Read more
सच्चा उपहार
-ओ हेनरी एक डालर और सत्तासी सेंट. बस ! इनमें से भी साठ सेंट के पैनी. पैनी, जो कभी धोबी, कभी भाजीवाले, कभी कसाई के साथ होशियारी बरत कर, एक-एक दो-दो करके बचाये गये थे, जिनसे सौदा करने में कंजू... Read more
सत्यजित रे की कहानी : सहपाठी
अभी सुबह के सवा नौ बजे हैं. (Story of Satyajit Ray) मोहित सरकार ने गले में टाई का फंदा डाला ही था कि उस की पत्नी अरुणा कमरे में आई और बोली, ‘तुम्हारा फोन.’ ‘अब अभी कौन फोन... Read more
अन्तोन चेख़व की कहानी : वान्का
नौ वर्ष का वान्का झूकोव, जिसे तीन महीने पहले अल्याखिन मोची के यहाँ काम सीखने भेजा गया था, बड़े दिन से पहले वाली रात को सोने नहीं गया. वह इन्तजार करता रहा और जब उसका मालिक और मालकिन तथा वहाँ... Read more
‘कथा कहो यायावर’ देवेन्द्र मेवाड़ी की नई किताब
यह मन ही तो है, जो नन्हे बीजों को उगते, फूलों को खिलते, तितलियों को उड़ते, नदियों को बहते, झरनों को झरते , सागरों को गरजते, बारिश को बरसते, बादलों को उमड़ते और सितारों को चमकते हुए देखने के... Read more
कहानी : मिसेज ग्रीनवुड
अल्मोड़ा के उत्तर की ओर सिंतोला वन पड़ता है. बाँज, देवदार, चीड़ और काफल के घने गाछों से घिरे सिंतोला वन में मिसेज ग्रीनवुड अपनी छोटी-सी ‘ग्रीनवुड कॉटेज’ में रहती हैं. मिसेज ग्रीन... Read more
स्त्रियों के लिये वर्जित नंदादेवी राजजात की पहली महिला यात्री ‘गीता गैरोला’ के यात्रा वृतांत: ये मन बंजारा रे
पहाड़ों की तेज ठंडी ताकतवर हवा, मुझे मेरे पिट्ठू के साथ सर्पीली पगडंडियों पर सहलाती हुई मेरी थकान उतार देती हैं. मेरी आँखें घनी गहरी हरियाली से सजे जंगलों, दूर ऊँची बर्फ़ीली छोटी से तेजी से... Read more
माफ़ करना हे पिता
सभी के होते हैं, मेरे भी एक (ही) पिता थे. शिक्षक दिवस सन् २००१ तक मौजूद रहे. उन्होंने ७१-७२ वर्ष की उम्र तक पिता का रोल किसी घटिया अभिनेता की तरह निभाया मगर पूरे आत्म विश्वास के साथ. लेकिन म... Read more