लोककथा : मेंढक राजकुमार
ऊँचे पहाड़ों की चोटी पर एक गरीब दम्पत्ति रहते थे. अपने ढलवां खेतों पर फसल बोकर वे किसी तरह गुजारा करते. पहाड़ी के निचले ढलानों पर उन दोनों मेहनती पति-पत्नी ने अपने खेत बनाये हुए थे. (Folklor... Read more
कहानी : ज़िंदगी से प्यार
-जैक लंडन “सब कुछ में से बस यह बचा रह जाएगा-उन्होंने जिन्दगी जी है और अपना पासा फ़ेंका हैखेल में बहुत कुछ जीता जाएगापर पासे का सोना तो हारा जा चुका है.” (Story by Jack London) वे दर्द से लँग... Read more
बहुत कुछ घुमड़ रहा था उसकी आँखों में
बहुत कुछ घुमड़ रहा था उसकी आँखों में. आँखों में देखकर बातें नहीं कर रहा था वो. सामने मेज पर पर एल आई सी का टेबल कैलेण्डर था. उसकी तरफ शायद जून था. जून का एक चित्र था. चित्र में एक परिवार था.... Read more
कहानी : बीस साल बाद
-ओ हेनरी एक पुलिस अधिकारी बड़ी फुर्ती से सड़क पर गश्त लगा रहा था. रात के अभी मुश्किल से 10 बजे थे, लेकिन हलकी-हलकी बारिश तथा ठंडी हवा के कारण सड़क पर बहुत कम आदमी नजर आ रहे थे. सड़क के एक छ... Read more
ईदगाह : मुंशी प्रेमचंद की यादगार कहानी
1 रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है. कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है. वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है. आज का सूर्य देखो, कितना... Read more
अनुपमा का प्रेम
ग्यारह वर्ष की आयु से ही अनुपमा उपन्यास पढ़-पढ़कर मष्तिष्क को एकदम बिगाड़ बैठी थी. वह समझती थी, मनुष्य के हृदय में जितना प्रेम, जितनी माधुरी, जितनी शोभा, जितना सौंदर्य, जितनी तृष्णा है, सब छ... Read more
कहानी : कोतवाल का हुक्का
आज सुबह तीन पानी के पास उस फ़कीर की लाश मिली थी. कुछ दिन से शहर में एक फ़कीर को देखा जा रहा था. फ़कीर क्या, लोग तो उसे पागल समझ रहे थे. वो तो उसने जब, यूं ही बेवजह आँखें नहीं झपकाईं, किसी की... Read more
कहानी : धनिया की साड़ी
लड़ाई का ज़माना था, माघ की एक साँझ. ठेलिया की बल्लियों के अगले सिरों को जोडऩे वाली रस्सी से कमर लगाये रमुआ काली सडक़ पर खाली ठेलिया को खडख़ड़ाता बढ़ा जा रहा था. उसका अधनंगा शरीर ठण्डक में भी... Read more
लीला गायतोंडे की कहानी : ओ रे चिरुंगन मेरे
माँ की मौत के दो दिन गुज़रे थे. उसकी याद में मुझे बार-बार रोना आ रहा था. पिता जी दिन-रात सिर पर हाथ रखे कोने में बैठे रहते. उन्हें देख कर तो मुझे माँ की याद और भी सताती थी. हर रात माँ मुझे ब... Read more
ज्ञानरंजन की कहानी ‘छलांग’
श्रीमती ज्वेल जब यहाँ आकर बसीं तो लगा कि मैं, एकबारगी और एकतरफा, उनसे फँस गया हूँ और उन्हें छोड़ नहीं सकता. एक गंभीर शुरुआत लगती थी और यह बात यूँ सच मालूम पड़ी कि दूसरे साथियों की तरह, मैं ल... Read more