पहाड़ में नीली क्रांति को समर्पित कुमकुम साह
पंडा फार्म पिथौरागढ़ में कभी कभार ताजी साग सब्जी खरीदने, अंडा मुर्गी लेने जाना होता. जर्सी नसल की गायों का दूध भी मिलता. यह चीजें मिलने का टाइम तय होता. सुबह और शाम. सारा माल बिलकुल ताज़ा और... Read more
गिर्दा: जनता के कवि की दसवीं पुण्यतिथि है आज
गिरदा भौतिक रूप से आज हमारे बीच में नहीं हैं एक शरीर चला गया लेकिन उनका संघर्ष, उनकी बात, उनके गीत, उनकी लोक नाटकों में उठाये गये मुद्दे और जो कुछ वह समाज को दे गये वह सारा कुछ हमेशा जनसंघर्... Read more
बचपन में हम बच्चों की एक तमन्ना बलवान रहती थी कि गांव की बारात में हम भी किसी तरह बाराती बनकर घुस जायें. हमें मालूम रहता था कि बड़े हमको बारात में ले नहीं जायेंगे. पर बच्चे भी उस्तादों के उस... Read more
हरतालिका से सम्बंधित मान्यताएं
हरतालिका तीज के दिन महिलायें खासकर शादीशुदा महिलाएं पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. यह तीज ब्राह्मणों के एक खास वर्ग तिवारी, त्रिपाठी, बमेटा आदि, के लिए बहुत ही महत्व रखती है क्योंकि... Read more
गढ़वाल से ग्लोब तक मेरे कैसे-कैसे कमरे
तुम्हें अपने कमरे से जाने की ज़रूरत नहीं है. अपनी मेज के पास बैठे रहो और सुनो. बल्कि सुनो भी मत, बस इंतज़ार करो, ख़ामोश रहो, स्थिर और अकेले. तुम्हारे सामने ये दुनिया ख़ुदबख़ुद अपना नक़ाब उता... Read more
उत्तराखण्ड की मंदाकिनी-उपत्यका में आज से ठीक सौ साल पहले एक कवि जन्मा था जो सही मायने में हिमालय का सुकुमार कवि था. अल्पायु और छायावाद को अपनी कविता का प्रस्थान-बिंदु बनाने के कारण उनकी तुलन... Read more
पहाड़ में अब भी बड़े बुजुर्ग कहते हैं सबका बैर झेला जा सकता है पटवारी का बैर नहीं. अब भले पटवारी की शक्ति उतनी नहीं है फिर भी वह अपनी पट्टी में राजा से कम नहीं है. आज भी कई ऐसे मामले हैं जहां... Read more
पहाड़ की यादों को कैद करने वाला पिताजी का कैमरा
जिस आदमी ने ताज़िंदगी कलाई पर घड़ी न पहनी हो, अपने खरीदे रेडियो-टीवी में खबर न सुनी हो उस आदमी के पास भी कोई गैजेट रहा हो, क्या ये कहीं से सम्भव लगता है. पर ऐसा था. पिताजी के पास अपना एक कैम... Read more
उत्तराखंड की देवभूमि कई प्रकार की वनस्पतियों व प्राकृतिक संपदाओं से भरी हुई है. जिन संपदाओं में एक विशिष्ट संपदा है- भेकुए का पेड़. यह पेड़ उत्तराखंड में बहुतायत से पाया जाता है. इस पेड़ का... Read more
मैंने मुनस्यारी से 15 किमी दूर धापा गांव में सन् 1991 में जन्म लिया. तब गांव में न बिजली थी, न टीवी और न फोन. संस्कृति का मतलब फेसबुक में पोस्ट डालना या फोन में पहाड़ी गीत देखना नहीं था बल्क... Read more